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अनमोल

अनमोल

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एक साथ दो-तीन बार घंटी बजने से चिढ़ते मानसी ने दरवाज़ा खोला तो सामने एक सब्जी वाले को देख उसे गुस्सा आ गया, "सब्ज़ी नहीं लेना मुझे।" रूखे स्वर में कहते हुये वो दरवाज़ा बंद करने को हुई कि सब्जी वाले ने उसके सामने एक पैकेट कर दिया, "ये आपके लिए।"

पैकेट में 2-3 प्रकार के फल और कुछ ताज़ी सब्जियाँ देख मानसी ने हैरानी से पूछा, "ये किसने भिजवायें हैं ?"

"मेरी तरफ से। आप ने मुझे नहीं पहचाना।"

कहते हुए उसने जेब से थैली में पैक एक दस रूपये का फटा-पुराना नोट उसे दिखाया। ये आपने मुझे दिया था। उस दिन आपकी बात दिल से जा लगी थी। एक संस्था से अपाहिजों के लिए बनी हाथ गाड़ी मुझे मिली थी। उसी पर ये छोटी सी ट्राली कुछ पैसे उधार लेकर जुड़वाई और सब्जी बेचने का काम शुरू किया है।"

मानसी ने एक बार फिर उस व्यक्ति को देखा। उसे लचक कर चलते देख उसे याद आ गई वो घटना।

"भीख माँगने वालों से चिढ़ने वाली मानसी ने इसके भीख माँगने पर चिढ़ते हुए काम करने की सलाह दे डाली थी। अपाहिज होने का हवाला देते हुए इसने फिर से याचना की, तो मानसी ने ये फटा नोट उसको दे दिया था।

"एक रूपये के बदले ये लोगे ?"

वो खुश हो गया था, "क्यों नहीं बहनजी, ये तो दस रुपये हैं।"

"पर नोट फटा है न" मानसी ने फिर से कहा था।

"फटा है तो क्या, कीमत तो दस रुपये ही है न" उसने ज़वाब दिया।

"फटा होने से नोट की कीमत कम नहीं हुई तो एक पाँव थोड़ा लचकने से तुम जैसे इन्सान की कीमत कम कैसे हो गई ?"

मानसी अपनी सोच से वापस आई।

मानसी के हाथ में पैकेट थमा वह विह्हल होते हुए बोला, "ये नोट मैंने सम्भाल कर रखा है। आपके ही कारण मुझे अपना वास्तविक मूल्य पता चला।"


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