कैन्सर
कैन्सर
दोनों ही डॉक्टर, कब दिल का लगाव जुड़ गया दोनों ही न जान पाये, सपने सजने लगे।
सर्जन पेशे से, सृजन प्रेम का। कहीं कोई रुकावट नहीं। अपनी दुनिया अपना घर। रुकावट हो भी कैसे, विचार एक से, पेशा भी एक, प्यार भी खूब, पर प्यार की पाबंदी की कोई सीमा नहीं।
हमारे समाज में केन्सर से भी एक घातक रोग है जाति। डॉक्टर मनीष आदिवासी और डॉक्टर पूनम उच्च कुल ब्राह्मण। पढ़ा लिखा वर्ग भी इस रोग से जीत नहीं पाया।
बस दो दिल बिखरने लगे। पूनम ने जैसे ही अपना फैसला परिवार को दिया, घर मे मातम पसर गया, पिता ने धमकी दे डाली- "अगर तुम ऐसी वैसी कोई हरकत करती हो तो मैं और तुम्हारी माँ दोनो ही आत्महत्या कर लेंगे।"
पूनम इकलौती सन्तान, अगर सच में पापा ने ऐसा किया तो। अंदर तक सहम गई वो। सोचा किसी न किसी तरह मना लेगी उनको पर वट वृक्ष कभी झुका है। हार कर पूनम ने कहा- "आप डॉ मनीष से मेरा विवाह स्वीकार नही करेंगे तो मै आजीवन शादी नही करुँगी।"
पिता चुप रहे, अब इस चुप्पी को पूनम क्या समझे। समय अपने समय से खिसकता रहा। सब अपनी अपनी जगह अड़े रहे।
"माँ मैं और मनीष कोर्ट मेरेज कर रहे है।" पूनम ने कहा। मात्र तीन प्राणियों के घर मे इस सूचना से भूचाल आ गया। पिता ने जोर से चिल्ला कर कहा- विधवा होना चाहती हो "?"
आप अपनी बेटी को विधवा बनाएँगे।
"तू उस आदिवासी से शादी करे, ब्राह्मण कुल में पैदा होकर। मैं सहन नहीं कर पाऊंगा, चाहे इसके लिये मुझे कुछ भी करना पड़े, हम मर तो सकते हैं। तू इसे कोरी बात ना समझना।"
जाति, समाज, बिरादरी के रोग पिता के शरीर मे घर कर गए। बिस्तर पकड़ लिया उन्होंने। अब तो पूनम को माँ ने भी कोसना शुरु किया- "इतना पढ़ाया लिखाया ये दिन देखने के लिये। उस मुए मनीष का ख्याल छोड़ क्यों नहीं देती।"
उम्र किसी के लिये कहाँ रुकी। मनीष ने पूनम से कहा- "घर के लोग बहुत जोर दे रहे शादी के लिये, माँ कहती है क्या बुढ़ापे में शादी करोगे।"
"पापा की तबीयत ठीक नहीं है। ऐसे में अपनी शादी की बात कैसे सोचूं।"
"बताओं मैं क्या करुं, घर वालों ने लडडकी भी मेरे लिये पसंद कर ली है। वे और देर नहीं करना चाहते।"
"आपकी मर्जी" पूनम ने कहा।
डॉ मनीष का विवाह हो गया। पूनम पिता की सेवा कर रही है। पिता का रोग अच्छा होने लगा है पर समाज मे फैला ये जाति का कैन्सर युवा प्यार की धड़कनों को खत्म करता रहेगा।