Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Swapnil Vaish

Drama Inspirational Romance

3.8  

Swapnil Vaish

Drama Inspirational Romance

तुम चौंदहवीं का चाँद हो

तुम चौंदहवीं का चाँद हो

13 mins
2.2K


बात तब की है जब मेरी नई नई शादी हुई थी और हम नोएडा में रहते थे। बहुत दिनों से अपने सामने रहने वाले अंकल आंटी से बात करना चाह रही थी, पर कभी मौका ही नहीं मिलता था। अंकल आंटी अकेले रहते थे, और हर वीकेंड पर उनके दोनों बेटे घर आ जाया करते। पूरे हफ्ते एक दम शांत दिखने वाला फ्लैट मानों अलग अलग तरह की आवाज़ों से शोभायमान हो जाता था।

आंटी को जब भी देखती तो मेरे मन को एक अजीब सी शांति का अनुभव होता था, उनके चेहरे पर मानों इतना संतोष था जो मेरे तक पंहुचता हो। उनकी उम्र शायद 70 साल थी पर फिर भी बिल्कुल सीधी चलती थीं, चमक धमक रंग और नए नए फैशनेवल कपड़े पहनतीं। उनको देख कर लगता ही नहीं था कि वो टीन एजर बच्चों की दादी होंगी। मैं उनसे बहुत प्रभावित थी, इतनी उम्र में भी इतनी फिट और खूबसूरत, सो एक दिन काम निपटा कर उनके घर पहुंच गई।

"हेलो आंटी... आप फ्री हैं न, कहीं आपको डिस्टर्ब तो नहीं कर दिया मैंने?"

"अरे नहीं बेटा जी, कैसी बात करती हो। बैठो मैं अभी शर्बत लाती हूँ, बहुत गर्मी है आज।"

जब तक आंटी किचन से शर्बत और नाश्ता लेकर आयीं, अंकल भी अपने कमरे से बाहर आ गए और मुझसे बातें करने लगे।

"अंकल आपको कितने साल हो गए रिटायर हुए?"

"मुझे बेटा जी 13 साल हो गए हैं, पर मैं खाली नहीं बैठता हूँ, तुम्हारी आंटी का हाथ बाँटता हूँ, देखो इन्हें हैं न ख़ूबसूरत"

"जी अंकल आंटी सच में बहुत सुंदर हैं।"

"अब शुरू मत हो जाओ रमेश, लो बेटा जी ये खस का शर्बत पीकर देखो कैसा है, मेरा भाई अमृतसर से लाया था।"

"हम्म्म आंटी बहुत बढ़िया है, लगता है अब बार बार आना पड़ेगा इसके लिए तो" मैंने हँसते हुए कहा।

इतने में अंकल का फ़ोन आया और वो कमरे में चले गए। आंटी ने भी मुझसे मेरे परिवार और पति के बारे में बातें कीं और अपने बेटे बहूओं के बारे में भी बताया। उनके दोनों बेटे और बहुयें बाहर जॉब करते थे, एक गुरुग्राम में और दूसरा मेरठ में। नोएडा दोनों के लिए करीब था सो अंकल आंटी को वहीं शिफ्ट करा दिया। आंटी ने बताया उनके बेटे और बहू बहुत अच्छे हैं, हमें किसी बात की कोई कमी नहीं होने देते। मैं तो बड़े बेटे के पास रहना चाहती थी पर तेरे अंकल का ही मन नहीं किया बोले बच्चे नौकरी करेंगे या हमारी तुम्हारी देख भाल, वहाँ भी तो अकेले ही रहेंगे, इससे अच्छा है यहीं अपने हिसाब से रहते हैं। कोई परेशानी होगी तो बच्चे आ ही जायेंगे हमारे पास।

बातों में पता ही नहीं चला कि दोपहर हो गयी, हसबैंड का कॉल आया पूछने के लिए कि कहाँ हो तब सुध आयी कि उन्हें खाना देना है, तब पति जी दोपहर को खाना खाने घर आया करते थे। मुझे नए दोस्त बनाने के लिए छेड़ने लगे तो मैंने उन्हें अंकल आंटी के बारे में बताया।हँस कर बोले अरे अपनी उम्र की दोस्त बनाओ वो आंटी तो बहुत बड़ी हैं तुमसे।

मैंने रोटी सेंकते हुए कहा मेरी उम्र की औरतों को अपने ससुराल वालों की बुराई करने में ज़्यादा रुचि है पर मुझे उनकी संगत पसन्द नहीं, आंटी से एक अजीब सी बॉंडिंग महसूस की है, कितनी अच्छी बातें सीखने को मिलेंगी उनसे।

देखते ही देखते कई महीने बीत गए और करवाचौथ भी आ गयी, मेरी पहली करवाचौथ थी बहुत उत्सुक थी मैं और घबराहट भी हो रही थी कि कहीं गलती से पानी न पी लूँ। सुबह नहा कर मैं आंटी और अंकल से आशीर्वाद लेने पहुंच गई। आंटी अंकल के लिए हलवा बना रही थीं, मैने दोनों के पैर छू कर आशीर्वाद लिया और करवाचौथ की बधाई भी दी। आंटी ने शाम को साथ में पूजा करने को कहा तो मैं भी राजी हो गयी, इसमें भला हर्ज भी क्यों होता।

किसी तरह दिन बीत गया, घर की पूजा करके मैंने खाना भी तैयार कर लिया, तभी पतिदेव भी आ गए। मुझे मेरे शादी के जोड़े में देख कर बहुत खुश हुए और थोड़ी सी ही सही तारीफ भी कर दी। मैंने उनसे छत पर जाकर चांद निकला कि नहीं चेक करने को कहा। मैंने आंटी के घर की डोरबेल बजायी तो अंकल ने दरवाज़ा खोला और बताया कि आंटी कथा पढ़ रही हैं, मैं ड्राइंग रूम में बैठ कर उनके आने का इंतजार करने लगी जैसे ही आंटी पूजा घर से निकल कर आई, मैं उन्हें देखती ही रह गयी।

लाल रंग का लहँगा, उनके गोरे चेहरे को जैसे और चमकदार बना रहा था, हाथों में लाल लाल चूड़ियाँ जिनके बीच में कुछ कुंदन के कड़े भी थे, लाल सिन्दूर से लंबी भरी मांग, गले में मंगलसूत्र के साथ और भी बहुत सी मालाएं और छम छम बजती पायलें, मैं उनका रूप देख कर स्तब्ध थी, इतनी उम्र होने पर भी सजने सँवरने में कोई कमी नहीं थी आंटी में। जहाँ दूसरी ओर सुहागिनों को मैंने ये कहते सुना था कि अरे ये सब सजना हमनें बहुत कर लिया, अब इस उम्र में क्या ये सब अच्छा लगता है, वहीं आंटी ने इन सब बातों को गलत साबित कर दिया था।

मैंने उनसे कहा -

"आंटी आप बहुत सुंदर लग रही हैं, मैं तो हैरान रह गयी आपको देख कर । क्या ये आपका शादी का जोड़ा है?"

"नहीं पगली मेरी शादी का जोड़ा क्या अब तक बचेगा, वो तो कब का खराब हो गया। ये लहँगा मेरी बड़ी बहू लायी थी, इन्होंने उसे साफ निर्देश दिया था कि रंग लाल ही होना चाहिए। वो बेचारी दुकान से वीडियो चैट पर इन्हें सारे लहँगे दिखा रही थी, करीब 12 लहँगों के बाद इन्हें ये पसन्द आया। दुकानदार भी हँस रहा था, इनकी इस बात पर।"

"ओहो तो ये अंकल की पसन्द है, क्या बात है अंकल आपने तो आंटी के रूप में चार चांद लगा दिए।"

इतने में मेरे हसबैंड भी नीचे आ गए, अभी चाँद नहीं निकला था, मेरे सब्र की न जाने कितनी परीक्षा बाकी थी जो चाँद आने में इतना विलंब कर रहा है। मेरे सोच के घोड़े तब थमे, जब मैंने हसबैंड को कहते सुना

"आंटी यू आर लुकिंग वंडरफुल, अंकल इज रियली वेरी लकी"

"पता है ये लहँगा अंकल ने ही पसन्द किया है आंटी के लिए, आपसे तो एक दुप्पटा भी नहीं पसन्द किया जाता मेरे लिए",

मैंने आँखे तरेर कर अपने हसबैंड से कहा।

"थैंक यू बेटा जी, पर ये सब सजना संवरना, इन्हीं की वजह से है और इन्हीं के लिए भी। तुम दोनों को एक सीक्रेट बताती हूँ",

आंटी ने मुझे और मेरे हसबैंड से कहा।

हम भी अपनी जगहों पर सम्भल कर सीक्रेट सुनने को बेताब से हो गए, फिर आंटी बोलीं |

"हमारी शादी बहुत छोटी उम्र में हो गयी थी, मैं 15 साल की थी और ये 18 साल के थे। पहले तो हम हर छोटी बात पर लड़ा करते थे, लेकिन ज्यूँ ज्यूँ किशोरावस्था से निकलने लगे ,हमारी लड़ाइयां प्यार में बदल गईं । हम खूब घूमा करते थे, मुझे सजने का बहुत शौक था सो ये मेरी सास से छुप कर मेरे लिए पाउडर, लिपस्टिक और मीना कुमारी जैसे बूंदे लाया करते थे।

एक दिन इन्होंने मेरा हाथ थाम के मुझे कहा कि मैं तुमसे हमारी शादी का 8वां वचन चाहता हूँ। मैंने कहा क्या वो 7 वचन काफी नहीं थे जो अब एक और मांग रहे हो। तब ये बोले मुझे तुमसे बस ये वचन चाहिए कि तुम सदा यूँ ही सज धज कर रहोगी, यूँ ही हाथों में चूड़ियां, पैरों में पाजेब और चटक कपड़ों में, मेरे दिल को तुम्हें ऐसे देख कर संतोष मिलता है। वादा करो कि तुम उम्र की उल्हाना न देकर हमेशा ऐसे ही सजोगी और बच्चों मैंने इन्हें वो 8वां वचन दे दिया, तभी से मेरा नया नाम रखा गया "चौंदहवीं का चाँद ",

जो ये मुझे अकेले में बोलते हैं। अब बहुएं भी इन्हीं का साथ देती हैं और मेरे लिए लेटेस्ट फ़ैशन के कपड़े लाती हैं। पर सच कहूँ तो मुझे भी अब ये सब अच्छा लगता है, एटलीस्ट मैं उन बुज़ुर्ग औरतों में से नहीं जो खुद को गिवउप कर देतीं हैं, खुद का ध्यान नहीं रखतीं और उम्र को दोष देकर अपनी इच्छाओं को कि दूसरे क्या कहेंगें के बोझ तले दबा देती हैं। हम दोनों भले ही उम्र के आखरी पड़ाव पर क्यों न हों पर दिल जवाँ हैं और उसमें बसा प्यार अभी भी ताज़ा है।"

"वाओ आंटी आपकी और अंकल की लव स्टोरी तो मस्त है, काश हम भी बूढ़े होकर दिल से जवाँ रहें" मैने अपने हसबैंड की तरफ देखते हुए कहा। तभी पटाखे बजने लगे और लोग चांद निकल आया कि आवाज़ें लगाने लगे। हमनें भी पूजा कर अपने पतियों की लंबी उम्र की प्रार्थना की ।

खाना खाते खाते मैं और मेरे हसबैंड अंकल आंटी की ही बातें कर रहे थे, कि काश सबमें ऐसा ही प्यार और अंडरस्टैंडिंग हो तो कोई रिश्ता न टूटे।

कई और महीने बीत गए, और एक दिन पता चला कि मेरे हसबैंड का ट्रांसफर अहमदाबाद हो गया है। उन्हें तुरंत जॉइन करना था, सो वो अगले हफ्ते चले गए। वहाँ इंतज़ाम करके मुझे बुलाने का प्लान बना। भारी मन से मैंने उन्हें विदा किया।

अब अकेले घर में मन नहीं लगता था तो ज़्यादातर आंटी के यहाँ रहती। एक दिन आंटी ने बताया कि अंकल को कुछ दिनों से ठीक से नींद नहीं आ पा रही है। मैंने उनसे डॉक्टर के पास चलने को कहा तो अंकल ने ये कहते हुए टाल दिया कि इस उम्र में नींद कम ही आती है, पर उनकी हालत कुछ ठीक नहीं लग रही थी। अगले दिन शनिवार था तो सोचा उनके बच्चे आ जाएंगे तो खुद ही ज़िद करके डॉक्टर के पास ले जाएंगे।

हसबैंड के ट्रांसफर के बाद से मैं देर से ही सोकर उठती थी, जल्दी उठने का कारण तो अहमदाबाद में था। उस दिन भी मैं 9 बजे उठी, नहाने के बाद नाश्ता बनाया और जब खाने बैठी तो एकदम ख्याल आया कि आज आंटी के घर में इतनी शांति क्यों है, आज तो उनके बच्चों के आने का दिन है फिर इतनी खामोशी क्यों।

बहरहाल मैंने नाश्ता खत्म किया और रहस्योद्घाटन के लिए चल दी आंटी के घर। ताला देख कर मैं हैरान रह गयी, फिर सोचा हो सकता है दोनों मंदिर गए हों। मैं घर पर आकर टी वी देखने लगी, करीब 1:30 घंटे बाद कुछ हलचल महसूस हुई तो मैं जल्दी से बाहर गयी तो देखा आंटी की छोटी बहू घर का ताला खोल रही थी, वो थोड़ी घबराई हुई थी। मैंने उससे पूछा तोआँखों के आँसू पोछते हुए बोली

"भाभी पापाजी को साइलेंट हार्ट अटैक आया था कल रात को, मम्मी को पता भी नहीं चला, आज सुबह जब पापाजी देर तक सोते रहे तो वो समझीं कि कई दिनों की नींद निकाल रहे हैं सो उन्हें हिलाया डुलाया भी नहीं। पर जब हम सब आये तब मम्मी को बड़ी हैरानी हुई कि पापाजी अभी तक उठे क्यों नहीं। बड़े भैया ने जब उन्हें हिला कर उठाने का प्रयास किया तो उनके शरीर में कोई हलचल नहीं हुई, तभी फ़ौरन हॉस्पिटल लेकर गए तो डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया और बताया कि इन्हें गुज़रे हुए 6 से 8 घंटे बीत चुके हैं।"

"मैं बस कुछ सामान लेने आए थी और घर पर पापाजी के पार्थिव शरीर को रखने का इंतज़ाम भी करना है। " कह कर वो मुझसे लिपट कर रोने लगी। मैं भी खुद को रोक नहीं पाई और अंकल के साथ बिताय सारे लम्हें एकदम जैसे मेरी आँखों के पर्दो पर छा गए, जिन्हें याद करके ऑंखें सैलाब बनी जा रही थीं। मन सोच रहा था, कि न जाने आंटी का क्या हाल होगा वो तो बिल्कुल टूट गईं होंगीं।

मैंने आंटी की छोटी बहू के साथ घर पर काम कराया और हम दोनों सबके आने का इंतजार करने लगे। वह क्षण ऐसे थे मानों बोलने के लिए कुछ बचा ही नहीं था और हाथ पैर जैसे छूटे जा रहे थे, ईश्वर ऐसा इंतज़ार किसी के नसीब में न लिखे।

जब अंकल की बॉडी को घर लाया गया तब तक सोसाइटी के दूसरे लोग भी उनके घर पहुंच गए थे। इतनी भीड़ में मैंने बड़ी मुश्किल से आंटी को देखा, जो अंकल का हाथ थामे हुई थीं। दूसरी बुजुर्ग आंटियों ने मुझे पीछे हटाते हुए आंटी को अंकल का हाथ छोड़ने को कहा, इस पर आंटी बोली "मैंने कहां इनका हाथ पकड़ा है, देखो तो यही हाथ नहीं छोड़ रहे हैं"

बड़ी कठिनाई से उन्हें दूसरे कमरे में लाया गया तो मैं भी वहाँ पहुँच गयी। इतनी खुशनुमा और ज़िन्दगी को गले लगा कर रखने वाली मेरी आंटी को आज ऐसी हालत में मैं देख नहीं पा रही थी सो उनकी बहू से कह कर अपने घर लौट आयी और मन हल्का करने के लिए हसबैंड को कॉल करके सब कुछ बता दिया।

मुझे अकेली जान कर उन्होंने मुझे हिम्मत दिलायी और अगले हफ्ते साथ ले जाने को कहा। मैं बालकनी में खड़ी दूर न जाने क्या देख रही थी, और सोच रही थी कि इंसान कितना बेबस होता है। क्या बीती होगी आंटी पर जब उन्हें पता चला होगा कि अंकल रात को सोते सोते ही गुज़र गए, क्या पता उन्होंने आंटी को आवाज़ लगाई भी हो पर वो सुन ही न पायी हों, नींद में। रात को यही सोच कर सोई होंगी कि कल भी एक नया दिन आएगा, लेकिन क्या पता था उन्हें कि ऐसा पहाड़ टूट पड़ेगा।

मैं यही सब सोच सोच कर पागल हुई जा रही थी, कि बाहर से चीखने की ऐसी आवाज़ें आयीं कि दिल दहल गया। दरवाज़ा खोला तो आंटी को सब संभाले हुए थे, वो अंकल को जाने नहीं देना चाहती थीं, लेकिन आज इस सफर में वो पीछे छूट गयी थीं। मैं उनकी हालत देख कर घबरा रही थी कि कहीं इन्हें न कुछ हो जाये।

शाम को जब खाना लेकर गयी तो देखा आंटी की कुछ बूढ़ी रिश्तेदार उन्हें चूड़ियाँ, सिंदूर और बिछिये उतारने को मजबूर कर रहीं थीं, मुझे ये देख कर बिल्कुल अच्छा नहीं लगा, लेकिन मैं बोल भी क्या सकती थी। इतने में आंटी की बड़ी बहू ने मुझे देखा तो मेरे पास आकर बोली

"अरे आप खाना ले आयीं, अभी मैं सोच ही रही थी कि किससे कहूं खाना लाने को। आपने मुश्किल हल कर दी।"

"कोई बात नहीं, मैं रोज़ खाना दे जाउंगी जब तक शुद्धि नहीं हो जाती। लेकिन ये आंटी के साथ क्या चल रहा है?"

"मम्मी को बुआ और ताईजी, चूड़ियां और बाकि सुहाग की निशानियाँ उतारने को बोल रही हैं, लेकिन मम्मी मानती ही नहीं बस एक ही रट लगाई हुई हैं, मैंने इनको वचन दिया है मैं कुछ नहीं छोड़ूगीं। उन्हें तो मानों होश ही नहीं है खुद का"।

इतने में आंटी के बड़े बेटे ने उनसे कुछ बात की और अपनी बुआ और ताई को माँ के साथ कोई ज़ोर ज़बरदस्ती न करने को कहा। मैं वापस आ गयी।

अगले हफ्ते मेरे हसबैंड भी आ गए, हमने पैकिंग शुरू की और जाने का इंतजाम भी हो गया। अगले दिन जाने से पहले सोचा अब तो 10 दिन हो गए हैं, अब आंटी शायद ठीक होंगी तो उनसे भी मिल लूँ, इतने दिनों में जैसे हिम्मत ही नहीं हुई मेरी उनसे बात करने की पर आज बात करना ज़रूरी था।

मेन डोर खुला था सो मैं आंटी को आवाज़ लगाती हुई अंदर चली आयी

"अब आयी है तू, देख तेरे अंकल मुझे अकेला छोड़ गए।"

"आंटी चिंता मत करिए, सब ठीक हो जाएगा, अंकल आज भी आपके साथ हैं, आप परेशान होंगी तो उन्हें दुख होगा, वैसे ही रहिये जैसा वो चाहते थे आपको"

" अरे मैं जानती हूं, मेरे बिना उनका मन कहाँ लगेगा, वो मेरे ही साथ रहेंगे। तभी तो मैंने किसी की बात नहीं सुनी और ये सादे कपड़े फेंक दिए, अपनी चूड़ियां, पायलें, बिछिये, बिंदी नहीं उतारीं, उन्हें दिया वचन मुझे याद है बेटा, आखिर मैं उनका "चौंदहवीं का चाँद ", जो हूँ... है ना"।

"जी आंटी बिल्कुल ठीक किया आपने। जो आपको अच्छा लगे वही करिए। मैंने आपको बताया था न कि मुझे जाना होगा, इनका ट्रांसफर हो गया है। तो आज मैं जा रही हूँ आंटी, आपकी बहुत याद आएगी, आपसे मैंने बहुत कुछ सीखा है। आई विल मिस यू"।

"मैं भी अब गुरुग्राम जा रही हूँ बेटा, यहाँ जी नहीं लगेगा। खूब खुश रहो।"

मैं चली आयी, पर मेरे साथ था प्यार करने और उसे निभाने का एक नया सलीका। प्यार है बोलने से कुछ नहीं होता उसे निभाना आना चाहिए। अंकल आंटी की शादी को 50 साल हो गए थे लेकिन फिर भी उनका प्यार कभी पुराना नहीं हुआ, और न ही उनका प्यार किसी तोहफे या केंडल लाइट डिनर का मोहताज ही था, वो तो छोटी छोटी खुशियों में पनपता था और एक के जाने के बाद भी दूसरे की ज़िन्दगी को महकाता रहेगा। आंटी ने अपना 8वां वचन इसलिए निभाया क्योंकि वो अंकल के साथ प्रेम के ऐसे सूत्र में बंधी थीं जो मृत्यु भी नहीं तोड़ पाई।

आज के युवाओं को ऐसे ही प्यार की आवश्यकता है, जो मात्र चैटिंग, वीडियो कॉलिग तक ही सीमित न रहे वरन एक दूसरे की आत्मा तक पहुंच कर अपनी शीतलता से सब तृप्त कर दे।

दोस्तों, हम भी ऐसे ही प्यार की शुरुआत करते हैं, वो कहते हैं न कि प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती और प्यार में खो जाने में कभी देर नहीं लगानी चाहिए, न जाने जिंदगी कब धोखा दे जाए।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama