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सुलगती आग

सुलगती आग

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नितिन घर पर बने अपने दफ्तर में एक महत्वपूर्ण केस की फाइल पढ़ रहा था। पत्नी सीमा उसकी बेटी पलक को लेकर एक रिश्तेदार के यहाँ विवाह समारोह में गई हुई थी। 

शाम को उसकी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही थी। इसलिए आज वह कोर्ट से जल्दी वापस आ गया था। सीमा उसकी तबियत को लेकर फिक्रमंद रहती थी। जब वह समय से पहले घर लौटा तो वह घबरा गई। ज़िद करने लगी की डॉक्टर के पास चलो। नितिन ने समझाया कि "परेशान होने वाली बात नहीं है। केस के चक्कर में रात देर तक जागना पड़ा इसलिए नींद पूरी नहीं हो सकी। सर में दर्द है। आराम करने से ठीक हो जाएगा। वह परेशान ना हो शादी में चली जाए।" पर वह उसे छोड़ कर जाने को तैयार नहीं थी। बहुत समझने पर वह मानी। लेकिन लतिका को उसकी देखभाल के लिए छोड़ गई।

लतिका की उम्र अभी बीस की थी पर वह विधवा हो गई थी। सीमा उसे अपने मायके से यह सोच कर ले आई कि उसकी पढ़ाई पूरी करवा कर उसे आत्मनिर्भर बनने में मदद करेगी। लतिका से उसका कोई संबंध नहीं था। वह तो उसके पिता के यहाँ काम करने वाले एक कर्मचारी की बेटी थी। वह उन्हें चाचा जी कहती थी। लतिका को अपनी छोटी बहन मानती थी। 

लतिका की माँ नहीं थी। उसके पिता ने अट्ठारह वर्ष की उम्र में ही उसका ब्याह कर दिया। लेकिन विवाह का एक साल भी पूरा नहीं हुआ कि उसके पति की दुर्घटना में मृत्यु हो गई। ससुराल वालों ने उसे उसके पिता के पास भेज दिया। पिता भी बेटी के विधवा होने का दुख अधिक दिन तक नहीं सह सके। उनकी मृत्यु के बाद लतिका अकेली पड़ गई। 

सीमा पिछली बार जब मायके गई तो लतिका की दशा देख कर उसे बहुत दुख हुआ। उसने निश्चय कर लिया कि वह उसे अपने साथ ले जाएगी। नितिन सीमा को बहुत चाहता था। उसकी हर इच्छा का सम्मान करता था। वह जानती थी कि वह उसके इस फैसले का समर्थन करेगा।

नितिन को लतिका के आने से कोई परहेज नहीं था। भगवान का दिया बहुत कुछ था। यदि उसमें से कुछ किसी के जीवन को संवारने में लग जाए तो बुरा क्या है। वैसे भी उसके परिवार में लोगों की सहायता करने की परंपरा थी। वह स्वयं समाजसेवी संस्थाओं को दान देता रहता था। लेकिन उसे केवल एक ही बात का खयाल था कि एक जवान विधवा स्त्री को घर में रखना सही होगा कि नहीं। पर सीमा का मानना था कि वह पराई नहीं है अपितु उसकी छोटी बहन जैसी है। 

लतिका कुछ ही समय में घर में रम गई। सीमा ने उसका दाख़िला कॉलेज में करवा दिया। समय के साथ लतिका के व्यवहार में बहुत से बदलाव आए। अब उसमें पहले से अधिक आत्मविश्वास था। वह जानती थी कि उसके जीवन में आए इस बदलाव का श्रेय सीमा को जाता है। कोई रिश्ता ना होते हुए भी उसने उसे छोटी बहन की तरह अपनाया था। अतः वह सीमा की बहुत इज्ज़त करती थी। उसे बड़ी बहन का सम्मान देती थी। नितिन के साथ बहनोई की तरह ही पेश आती थी। 

नितिन का परिवार कई सालों से शहर का इज्ज़तदार परिवार था। एक वकील के तौर पर नितिन ने शहर में अच्छी साख बना ली थी। लोग उसकी खूब इज्ज़त करते थे। 

पर नितिन के लिए उसका छोटा सा परिवार ही सब कुछ था। नितिन और सीमा का वैवाहिक जीवन बहुत सुखी था। दोनों एक दूसरे को बहुत चाहते थे। दोनों को एक दूसरे पर पूरा भरोसा था। पलक के आने से वह रिश्ता और भी मजबूत हुआ था। सीमा की उसके लिए चाहत और उस पर अटूट भरोसा ही उसकी सबसे बड़ी पूंजी थे। 

लतिका उस कली की तरह थी जो समय की मार के कारण कुम्हला गई थी। लेकिन यहाँ आने के बाद सीमा से मिले प्यार और अपनेपन ने जैसे उस कुम्हलाई कली में जान फूंक दी थी। शहर आ कर उसने कई नई बातों का अनुभव किया था। जिनकी झलक उसके पहनावे और बातचीत के ढंग में दिखाई देने लगी। कुम्हलाई कली अब ताज़ा गुलाब सी खिल गई थी। 

वह नितिन को जीजाजी कह कर बुलाती थी। लेकिन उसके दिल में नितिन के लिए बड़े भाई या पिता की तरह सम्मान था। वैसे तो सीमा ही नितिन की हर चीज़ का खयाल रखती थी। लेकिन यदि कभी पलक की देखभाल करते हुए वह नितिन का कोई काम नहीं कर पाती थी तो लतिका बहुत खुशी से वह काम कर देती थी। हालांकि नितिन ने कई बार सीमा को समझाया था कि वह उसके काम के लिए लतिका को परेशान ना किया करे। यदि वह व्यस्त हो तो उसे बता दिया करे। वह स्वयं ही वह काम कर लेगा। पर सीमा का कहना था कि लतिका अपनी खुशी से उसका काम करने के लिए आगे आती है। ऐसे में उसे मना कैसे करे। 

लतिका खुद को उनके एहसान के नीचे दबा हुआ महसूस करती थी। अतः चाहती थी कि सीमा और नितिन के अधिक से अधिक काम आ सके।

नितिन लतिका पर अधिक ध्यान नहीं देता था। जब भी वह किसी काम से उसके पास आती थी तो बस जितना ज़रूरी हो उससे बात करता था। कभी नज़र भर कर उसकी ओर देखता भी नहीं था। स्त्रियों को ले कर उसमें एक झिझक थी। वह कभी भी लड़कियों से दोस्ती नहीं कर सका। आरंभ में सीमा के साथ भी वह झिझक महसूस करता था। समय के साथ ही यह झिझक दूर हो पाई।

पुष्प की सुंदरता को कोई कब तक अनदेखा कर सकता है। लतिका के निखरते रूप पर नितिन की उचटती निगाहें भी अब अटकने लगी थीं। वह चोर नज़र से उसके रूप को निहार लेता था। धीरे धीरे उसके रूप ने उसके मन के शांत सरोवर में कंकड़ियां मारनी शुरू कर दी। लतिका अब अपने वैधव्य के दुख को भुला कर आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थी। अतः सदा खुश रहने का प्रयास करती थी। अक्सर सीमा के साथ हास परिहास करती थी। जब भी वह हँसती थी तो ऐसा लगता था कि कोई निर्झर निर्बाध गति से बह रहा हो। उसकी यह उन्मुक्त हँसी नितिन को सबसे ज्यादा आकर्षित करती थी। 

नितिन के मन सरोवर में अब बुरी तरह हलचल होने लगी थी। लतिका का सौंदर्य एक चुंबक की तरह उसे अपनी तरफ खींच रहा था। उसे पा लेने की चाहत उसे अंदर ही अंदर सुलगा रही थी। वह अजीब सी स्थिति में था। वह भलीभांति जानता था कि लतिका के लिए उसके मन में जो भी है वह महज दैहिक आकर्षण है। उसके ह्रदय में केवल सीमा के लिए ही प्यार है। वहाँ कोई और प्रवेश नहीं कर सकता है। पर वह आकर्षण इतना तीव्र होता जा रहा था कि वह किसी भी प्रकार लतिका को पा लेना चाहता था। नितिन पूरी कोशिश कर रहा था कि लतिका के लिए उपजे इस आकर्षण पर काबू पा सके। यदि एक बार वह उस पर काबू पा सका तो उसे कुचल कर रख देगा।

सीमा और लतिका दोनों ही नितिन के मन में उपजे इस विकार से अनभिज्ञ थीं। सीमा बहुत ही भावुक व सरल ह्रदय स्त्री थी। अपने पति पर उसे अटूट विश्वास था। वैसे अब तक नितिन का आचरण भी ऐसा रहा था कि कोई भी उसके बारे में ऐसी बात नहीं सोच सकता था। सीमा तो सर से पैर तक उसके प्यार में डूबी थी। जहाँ तक लतिका का सवाल था उसने नितिन को अपनी श्रद्धा का पात्र बना रखा था। उसके लिए नितिन उस विशाल वृक्ष की तरह था जिसकी छाँव में वह खुद को सुरक्षित महसूस करती थी। लतिका कभी यह सोच भी नहीं सकती थी कि नितिन के मन में उसके लिए कभी इस तरह के विचार आ सकते हैं। वह उसी निश्चिंतता के साथ उसके पास जाती थी जैसे वह अपने पिता के पास जाती थी। 

काम की तपिश आग की जलन से कई गुना अधिक होती है। नितिन अपने मन पर नियंत्रण करने की जितनी अधिक कोशिश करता था लतिका उतना ही अधिक उस पर हावी हो रही थी। नितिन उस योद्धा की तरह हो गया था जो लड़ते हुए थक गया था। जिसे पूरा यकीन था कि वह किसी भी समय हथियार डाल देगा। या यूं कहें कि वह अब लड़ना चाहता ही नहीं था। उसने अपनी इस जलन के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया था। अब तो वह बस अपनी इच्छा पूरी करना चाहता था।

सीमा के दूर के एक चाचा की बेटी का विवाह था। उनके साथ सीमा के संबंध बहुत घनिष्ठ थे। एक ही शहर में रहते हुए भी यदि वह ना जाती तो उसके चाचा को बुरा लगता। अतः नितिन की तबियत खराब होने के बावजूद वह मन मार कर गई। नितिन यह जानता था कि सीमा के लिए विवाह में जाना ज़रूरी है। वह एक योजना के साथ ही बीमारी का बहाना कर जल्दी घर आ गया था। वह जानता था कि सीमा उसे इस हाल में अकेला नहीं छोड़ेगी। उसे लतिका पर बहुत विश्वास है। अतः यदि जाएगी तो उसे देखभाल के लिए छोड़ जाएगी। हुआ भी वही।

नितिन सोच रहा था कि वह स्वयं लतिका के कमरे में जाए या बहाने से उसे यहाँ बुला ले तभी लतिका वहाँ आ गई। 

"जीजाजी आपकी तबियत ठीक नहीं है। अब और काम ना करिए। जा कर सो जाइए।"

उसे सामने देख नितिन के मन में बैठा काम का सर्प अपना फन फैला कर खड़ा हो गया। उसकी आँखों में वासना उतर आई। किसी हिंसक पशु की तरह उसने लतिका को अपने शिकंजे में जकड़ लिया। लतिका सिंह के मुख में फंसी हिरनी सी छटपटाती रही। अपने ज्वर के उन्माद में नितिन ने लतिका की श्रद्धा और सीमा के अटूट विश्वास की धज्जियाँ उड़ा दी। 



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