|| माली ||
|| माली ||
किसान का जीवन तो संघर्ष से भरा रहता है उसकी कमाई के अन्न से तो सिर्फ दो समय का भोजन हीं मिल जाए तो बहुत है कलिया (कालिदास )भी इसी परिस्थिती से गुजर रहा था कि उसके घर में बेटी रूपी लक्ष्मी का जन्म हुआ गाँव के लोगों ने बहुत बात कही लेकिन कलिया ने कहा बेटी भी बेटा होता है लेकिन परिवार की जिम्मेदारी बढ़ गई कुछ साल बाद बेटा भी हुआ लेकिन अब तो कलिया दिन रात मेहनत करने लगे और उनकी एक हीं अभिलाषा थी कि उनके बच्चे बहुत पढ़े और कष्ट में उनका जीवन नही बीते इसलिए वह उन्हें गाँव से कुछ दूर अच्छे स्कूल में नाम लिखवा दिए फिर शहर पढ़ने के लिए भेज दिए। बेटी की पढ़ाई खत्म होते हीं शिक्षा विभाग में नौकरी लग गई। अब उसकी शादी की चिंता धनवंती (पत्नी )और कलिया को सताने लगी। जिन्दगी भर की कमाई बच्चों की पढ़ाई में लगा दी थी। गाँव के लोग ताना देने लगे और पढाओ बेटी को। लायक लड़का और शादी के लिए पैसे कहाँ से आएँगे लेकिन सच्चे इन्सान को भगवान की दया रूपी छाया मिल हीं जाती है। एक अच्छे परिवार से रिश्ता आया लड़का वकील था। था उसने अपने सामर्थ्य के अनुसार बहुत धूमधाम से बेटी की शादी की। उसमें शशिकांत आया था लेकिन शादी के तीसरे हीं दिन निकल गया। कुछ महीनों बाद पता चला की उसने शादी कर ली है |कालिदास की आँखें छलक गई लेकिन ऊँचे स्वर में बोला धनवंती आजकल का जमाना अलग है। मै कोई लड़की से करवाता तो वह वैसी नही होती जैसा मेरे बेटे ने किया होगा देखना दो –चार दिन में आशीर्वाद लेे आएगा। पत्नी को धैर्य बंधाते हुए वह खेत की ओर निकल गए |महीनों गुजर गए लेकिन शशिकांत नही आया अब तो खत आना भी बंद हो गए थे। एक दिन खबर आया कि उषा{ बेटी ) को बेटी हुई कलिया –धनवंती खुशी से झूम उठे। बहुत दिनों के बाद ख़ुशी ने दरवाजा खटखटाया था |दूसरे हीं दिन कलिया अपनी बेटी से मिलने चले गए। दोपहर का समय था करीब दो बज रहे होंगे एक गाड़ी दरवाजे पर आ कर रुकी धनवंती ने देखा तो ख़ुशी का ठिकाना न रहा। वह जोर जोर से चिल्लाने लगी शशि आया शशि आया है। खुशी से वह झूम उठी। बहू को अंदर ले गई गाँव के लोगों का भीड़ बढ़ने लगा। धनवंती ने कहा अभी तो आए हैं ,थके हैं बेचारे कल आना बुरा मत मानना। शशि खड़ा हो कर इधर-उधर देख रहा था और बार –बार रुमाल से पसीने पोछ रहा था फिर अचानक बोला माँ पिताजी कहाँ हैं ?
उत्तर सुन कर बोला माँ हमलोग चलते हैं |माँ बोली आज तो रुक जा पिताजी को आ जाने दो फिर चले जाना। सोना (शशि की पत्नी )ने भी कहा रुक जाते हैं पिताजी से मिलकर हीं सुबह-सुबह निकल जाएँगे लेकिन शशि किसी की नही सुना और चला गया। जब कालिदास शाम में आया तो दिन की घटना सुनकर थोड़े देर के लिए विचलित हो गया फिर बेटी की कहानी सुनाकर धनवंती को बहलाया। देखते- देखते दो साल बीत गए बीच –बीच में उषा और उसकी बेटी के आ जाने से घर की रौनक बढ़ जाती थी और कुछ समय के लिए उनदोनों का घुटन कम हो जाती थी | धनवंती के गुजर जाने के बाद कलिया और अकेला हो गया |वह मन हीं मन सोच रहा था माँ के गुजरने के बाद शशि आया था लेकिन अब उसे देखने की इच्छा हो रही है। दूसरे दिन वह निकल पड़ा। शहर पहुंच कर पता पूछते हुए बेटे के दरवाजे पर पहुँचा तो उसकी हालत देखकर नौकर अंदर नही आने दे रहा था |पत्नी के स्वर्गवास के बाद कपड़े का ध्यान कौन रखता ,वही मैली सी धोती जो एक दो जगह फटी हुई थी। शशि ने दूर से देखकर शर्म से कहा आने दो मेरे गाँव का माली है और दफ्तर चला गया | एक नौकर ने कुर्सी दी लेकिन धूप बर्दास्त नही हो रही थी तो वह वहीं पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया | बहुत समय बाद सोना आई और हाथ जोड़कर नमस्ते की और पूछी आप मेरे गाँव से आए हैं कालिदास ने हाँ में उत्तर दिया फिर सोना ने पुछा क्या आप माली हैं? कलिया ने हल्की मुस्कान के साथ कहा हाँ बेटी मै माली हूँ |कभी कभी अपने पेड़ को देखने की इच्छा यहाँ वहाँ ले जाती है। सोना को समझते देर न लगी वह तुरंत पैर पर गिर गई और बोली माफ कर दीजिए पिताजी और बड़े आदर से घर के अंदर ले गई तभी शशि भी आ चुका था सोना ने अपने पिता समान ससुर की सेवा की और अपने साथ रहने का आग्रह भी किया लेकिन कलिया ने इंकार कर दिया और कहा बहू तुम बेटी नही बेटा हो तुम खरा सोना हो। शशि आज अपने कर्म से शशि आज शर्मिंदा।