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वड़वानल - 32

वड़वानल - 32

5 mins
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 बरामदे  में  जूतों  की  आहट  सुनाई  दी।  सन्तरी  सावधान  हो  गए।  ये  किंग  था। सन्तरियों   ने   सैल्यूट   मारा।

‘‘सेल खोलो। मुझे दत्त से बात करनी है। तुम दोनों उधर दूर जाकर ठहरो।’’ किंग  ने  कहा।

सेल   का   दरवाजा   खोलकर   सन्तरी   दूर   चले   गए।

''Good evening, how are you sonny.'' जितना सम्भव था उतने अपनेपन से किंग ने पूछा।

''Oh, fine! Thank you!'' दत्त  ने  जवाब  दिया।  किंग  को  अचानक  आया देखकर वह कुछ परेशान   हो गया।

‘अब यह यहाँ क्यों आया है ? शायद जानकारी लेने के लिए। सुबह की घटना के बारे में पूछताछ... सियार से पाला  पड़ा है। सावधान रहना होगा।’ उसने  तर्क  किया।

‘‘ताज्जुब   हो   रहा   होगा   तुम्हें।   तुम्हारा   अभिनन्दन   करने   आया   हूँ।’’

‘‘मेरा   अभिनन्दन ?   वो   किसलिए ?’’

‘‘मैं अंग्रेज़ हूँ यहाँ की अंग्रेज़ी हुकूमत का एक हिस्सा हूँ, ऐसा होते हुए भी  तुम्हारा  बर्ताव, अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ खड़े होने की तुम्हारी हिम्मत...इसके लिए हृदयपूर्वक बधाई देने आया हूँ। तुम्हें आश्चर्य हो रहा  होगा,  मगर यह  सच  है।’’

दत्त   किंग   की   ओर   देखता   ही   रहा।

‘‘ऐसे क्या देख रहे हो मेरी ओर? मैं यह बात दिल से कह रहा हूँ। चाहे मैं अंग्रेज़ हूँ तुम्हारा शत्रु हूँ, मगर सबसे पहले मैं एक सैनिक हूँ। युद्धभूमि पर शत्रु का डटकर मुकाबला करने और युद्धभूमि के बाहर उसके शौर्य की प्रशंसा करने की उदारता हर सैनिक में होनी चाहिए ऐसी मेरी राय है। यह उदारता मेरे पास   है।’’

''Thank you, Commander King!" गिरफ्तार होने के बाद आज वह पहली बार कमाण्डर किंग को आदर से सम्बोधित कर रहा था। ‘‘आज आपके व्यक्तित्व  का  एक  नया  पहलू  देखने  को  मिला,’’  दत्त  किंग के उद्देश्य के प्रति आशंकित   था।

‘‘मगर एक बात मैं समझ नहीं पा रहा हूँ, यदि तुम्हें स्वतन्त्रता के लिए लड़ना है तो फौज में क्यों रहते हो ? हम पर दबाव क्यों डालते हो ?’’ किंग दत्त से पूछ रहा था,   ‘‘अरे,   हम   तो   हुक्म   के   गुलाम हैं,   यदि तुम लोगों को दबाव डालना ही है तो वॉइसराय पर डालो,   भारत के मन्त्रियों पर डालो या इंग्लैंड के प्रधानमन्त्री पर डालो। हमें क्यों तंग करते हो ?’’

दत्त  हँसा,  ‘‘यदि  फौज  में  भरती  न  हुआ  होता  तो  हथियार  चलाने  की  शिक्षा कहाँ मिलती ? हमारा विचार है कि सत्याग्रह, कानून तोड़ो इत्यादि आन्दोलन अब किसी काम के नहीं हैं। हमें हथियार उठाना ही होगा। और, सेना ही के कारण तो हिन्दुस्तान में अंग्रेज़ों की हुकूमत टिकी हुई है, यदि सेना का सहारा निकाल लिया   जाए   तो   साम्राज्य   अपने   आप   ही   धराशायी   हो   जाएगा।’’

दत्त   के   इस   जवाब   से   किंग   चौंक   गया।

‘‘ठीक है। ये सब तुम बाहर जाकर करो ना। मैं तुम्हें सम्मानपूर्वक बाहर भेजने के लिए तैयार हूँ। बोलो, किस–किस को बाहर जाना है ?’’ किंग के इरादे को   दत्त   भाँप   गया।

‘‘मैं  तो  बाहर  जाने  ही  वाला  हूँ।  इसलिए  मेरी  समस्या  तो  सुलझ  गई!’’

दत्त   ने   सीधे–सीधे   जवाब   दिया।

‘‘मैं तुम्हारे बारे में नहीं कह रहा हूँ। औरों के बारे में बात कर रहा हूँ। यदि तुम्हें बाहर जाकर कुछ करना हो तो साथियों की जरूरत तो पड़ेगी ही ना!’’

किंग   ने   फिर   से   एक   कंकड़   फेंका।

‘‘आर.  के.  जा चुका है,  रामदास भी मिल ही जाएगा,  और रोज़ बाहर जाने वाले सैनिक तो हैं ही। तुमने मेरे जैसे कुछ आन्दोलनकारियों को यदि पकड़ा तो उन्हें भी भगा दो,  वे मुझसे मिल जाएँगे।’’

‘‘वो तो मैं करूँगा ही मगर...’’ किंग समझ गया कि उसकी चाल उल्टी पड़ी है। हाथ कुछ लगने वाला   नहीं।

‘‘वह जाने दो। उसके बारे में बाद में सोचेंगे। अभी की बात करो, यदि तुम्हें  कोई  तकलीफ  हो,  किसी  बात  की  जरूरत  हो  तो  मुझसे  कहो।  मेरा  हाथ मदद   करने   के   लिए   हमेशा   आगे   आएगा।’’

‘‘किंग, मेरी तकलीफें सुलझाने और मनचाही चीज़ पाने के लिए मैं सक्षम हूँ,  ये तुम समझ ही चुके हो। मुझे किसी की भी, और खासकर तुम्हारी मदद की कोई ज़रूरत नहीं है।’’   दत्त ने किंग को झिड़का।

चिढ़ा हुआ किंग मन ही मन दत्त पर गालियों की बौछार करते हुए बाहर निकल गया।

 आज़ादी पूर्व के काल में रॉयल इंडियन नेवी में महिला सैनिक भी होते थे। इन महिलाओं को मरीजों की सेवा, टेलिफोन्स इत्यादि जैसी जिम्मेदारियाँ सौंपी जाती थीं। सोलह वर्ष से अधिक की महिलाओं को प्रवेश दिया जाता था। महिला–सैनिकों की बैरेक्स अलग होती थी। उनके लिए अलग मेस की व्यवस्था थी। उनकी बैरेक में पुरुष–सैनिकों को प्रवेश नहीं मिलता था। फिर भी कुछ–कुछ प्यासे भौंरे उनके आसपास  घूमते  रहते  थे।  इन  भौंरों  में  गोरे  भी  होते  थे  और हिन्दुस्तानी भी होते थे।   कई बार ये लड़कियाँ बहकावे में आ जाती थीं और फिर सैनिकों के बीच गरमा–गरमी हो जाया करती थी। कभी–कभी तो हाथापाई तक की नौबत आ जाती थी।

सुमंगल सिंह, सुजान सिंह, यादव, पाण्डे और चोपड़ा का गुट ऐसे ही प्यार के  मारे  दीवानों  का  गुट  था।  महिला–सैनिकों  को  छेड़ना,  सम्भव  हो  तो  उनसे  प्यार के  खेल  खेलना,  यह  उनका  प्रमुख  काम  था।

गुरुवार, 8 फरवरी। हर दिन के समान सूरज निकला। मगर किसी को भी इस  बात  का  अन्दाजा  नहीं  था  कि  उस दिन का सूरज एक भयानक तूफ़ान अपने साथ लाया है। सुजान, सुमंगल ड्यूटी पर जाने की,  और    पाण्डे    तथा    चोपड़ा    डिवीजन की  तैयारी  कर  रहे  थे।  मगर  खिड़की  के  पास  खड़े  होकर  जूतों  को  पॉलिश कर रहे सुजान सिंह की नज़र किसी को ढूँढ़ रही थी। उसे बहुत देर इन्तज़ार नहीं करना पड़ा। लक्ष्मी, मीनाक्षी और विजया बाहर निकलती दिखाई दीं और उसने अपने दोस्तों से कहा,   ‘‘देखो,   वे साली,   तीनों बाहर आई हैं। उनके यार भी आए होंगे।’’

सुमंगल, पाण्डे और चोपड़ा अपने हाथ का काम छोड़कर खिड़की के पास आए,  ‘‘चलो,  बाहर  चलकर  देखते  हैं कौन  हैं उनके  यार ?’’  सुमंगल  ने  कहा।

‘‘अरे,  वे  ही  कल  वाले  तीनों  गोरे  बन्दर  होंगे।’’  पाण्डे  ने  कहा।  ‘‘चल, थोड़ी शरारत करते हैं,’’ चोपड़ा ने कहा और पाण्डे एवं सुमंगल का हाथ पकड़, खींचते हुए उन्हें रास्ते पर ले गया।

‘‘देख, वे ही तीनों हैं। कल शाम को चौपाटी पर तीनों को बगल में दबाए बैठे थे।’’   पाण्डे   बुदबुदाया।

‘‘हमसे  खेल  करती  रहीं  और  उन  गोरों  की  बाँहों  में  चली  गईं ,  राँड़  साली!’’ चोपड़ा   को   गुस्सा   आ   रहा   था।

सुजान   ने   एक   ज़ोर   की   सीटी   बजाई,   तीनों   ने   मुड़कर   देखा।

‘‘ऐ,   राँड़ो,   हम   हिन्दुस्तानी   क्या   मर   गए   हैं ?’’   पाण्डे   ने   फिकरा   कसा।

‘‘आओ,   मेरी   जान,   मेरी बाँहों में आ जाओ।’’   चोपड़ा   चिल्लाया।

‘‘तुम  तीनों  की  खुजली  मिटाने  के  लिए  मैं  अकेला  ही  बस  हूँ।  उन  गोरे बन्दरों को क्यों गले लगाती   हो ?’’

वे तीनों कुछ डर गईं, मगर उसी तरह खिलखिलाते हुए खड़ी रहीं। उन्हें खिलखिलाते देखकर सुजान और पाण्डे ने अश्लील हाव–भाव किये। सुजान का ध्यान दायीं ओर गया और वह चिल्लाया, ‘‘अरे भागो, देखो, वह किंग आ रहा है।’’

और   वे   चारों   भागकर   बैरेक   में   आए।

‘आज इन्हें छोडूँगा नहीं। अच्छी तरह  रगड़  दूँगा। लड़कियों को सताते हैं क्या!’ किंग को उनकी चिल्लाहट तो सुनाई नहीं दी थी, मगर उनके अश्लील हाव–भावों पर उसकी नज़र पड़ गई थी।

दन्–दन्  करते  हुए  वह  बैरेक  में  आया।  पूरी  बैरेक  पर  उसने  कड़ी  नज़र डाली। हर कोई अपने काम में मशगूल था। ‘‘अभी लड़कियों को रास्ते पर कौन छेड़ रहा था ?’’ वह चिल्लाया। इन चारों के अलावा बाहर क्या हुआ था, इसकी किसी को ख़बर नहीं थी। और वे चारों किंग को बैरेक में आता देख बैरेक से बाहर निकल कर शौचालय में छिप गये।

''Come on, tell me Who were on the road?'' किंग चीख रहा था।

किंग  की  चिल्लाहट  पर  ध्यान  न  देते  हुए  हर  कोई  अपने–अपने  काम  में व्यस्त होने का नाटक कर रहा था। किंग को यह सब बड़ा अपमानजनक लगा।

''you, sons of bitches! sons of coolies, sons of junglees! अगर एक बाप के हो तो आगे आओ और बताओ कि लड़कियों को छेड़ने वाले चार लोग कौन थे ?’’ वह चीख़े जा रहा था और पूरी बैरेक में उन चारों को ढूँढ़ रहा था।

जब सुजान और उसके साथी उसे नहीं मिले तो वह सभी को फटकारने लगा,   ''you, bastards, I will not spare you. I shall f....you openly. No liberty for you. I shall see you bastards!'' किंग गुस्से में बैरेक से बाहर चला गया। बाहर निकलते हुए उसने निश्चय कर लिया,  ‘‘मस्ती  चढ़  गई  है  सालों को! इन्हें छोड़ूँगा नहीं। किसी न किसी बहाने सज़ा दूँगा ही दूँगा।’

‘‘उस हरामखोर  से  पूछना  चाहिए था: तू एक बाप का है इसका कोई सबूत है तेरे पास ?’’   दास चिढ़कर   पूछ   रहा   था।

‘‘अब क्यों चिल्ला रहा है ? क्या फायदा है तेरे चिल्लाने का!’’ गुरु दास को चिढ़ा रहा था। ‘‘दत्त को होना चाहिए था!’’

‘‘अरे, क्या मैं डरता हूँ ? अभी जाता हूँ और पूछता हूँ।’’ दास ने कहा।

‘‘मुँह देखो, कह रहा है ‘जाकर पूछता हूँ’।’’ गुरु ने उसे और चिढ़ाया।

दास  अपने  लॉकर  की  ओर  दौड़ा  और  कपड़े  निकालते  हुए  बोला,  ‘‘तुम समझते   क्या   हो ?   अगर   उससे   जाकर   नहीं   पूछा   तो   अपने   बाप   का   नाम   नहीं बताऊँगा।’’

मज़ाक–मज़ाक में कही गई बात का यह परिणाम देखकर मदन बेचैन हो गया।

‘‘अरे, गुरु मजाक कर रहा था। क्या हम तेरे गट्स नहीं जानते ? बेकार ही में जल्दबाज़ी मत करो।’’   मदन   ने   समझया   तो   दास   कुछ   शान्त   हुआ।

खान और हाल ही में तबादला होकर आए जी. सिंह ने मौके का फ़ायदा उठाने का निश्चय किया। पिछले चार–पाँच  दिनों  की  घटनाओं  और  किंग  के  आज के  व्यवहार  से  सभी  बेचैन  थे।  कुछ  लोग  तो  खुल्लम–खुल्ला  किंग  को  गालियाँ दे  रहे  थे।

‘‘हमारे  साथ  कम  से  कम  पन्द्रह–बीस  लोग  तो  ज़रूर  आएँगे।  उनसे  हम बात करेंगे।’’   खान   ने   सुझाव   दिया।

‘‘यह   कमाण्डर   किंग   अपने   आप   को   समझता   क्या   है ?’’

‘‘अगर बाहर होता तो अब तक क्रान्तिकारी उसका काम तमाम कर डालते!’’

‘‘महिला सैनिकों को छेड़ा गया, यह तो गलत ही है। जिन्होंने गलती की उन्हें सजा मिलनी चाहिए। मगर उसके बदले में तुम सबको गालियाँ दो ? उनके माँ–बाप निकालो! इसका विरोध कहीं न कहीं होना ही चाहिए!’’

‘‘ये गोरे बन्दर हमारे सामने महिला सैनिकों के साथ चूमा–चाटी करते हैं और हम खामोश बैठे रहें ?   क्या   हम   नपुंसक   हैं ?   या   हिजड़े   हैं ?’’

‘‘बहुत बर्दाश्त कर लिया! और कब तक चुप रहेंगे ?   कोई हद है कि नहीं? ’’

मदन,   गुरु,   दास,   जी.   सिंह सभी आपस में और सहानुभूति रखने वाले मित्रों के साथ चर्चा करते हुए सवाल पूछते। सैनिक गुस्से में थे, मगर करें क्या ? यह सवाल उनके सामने था।

‘‘हम   काम   का   बहिष्कार   करें,’’   मदन   ने   सुझाव   दिया।

‘‘इससे  बेहतर,  हम  भूख–हड़ताल  करें,’’  जी. सिंह  ने  सलाह  दी।

‘‘ये सारे उपाय सामुदायिक स्तर के हैं।’’   खान समझा रहा था। ‘‘इस प्रकार के सामुदायिक कृत्यों को ‘विद्रोह’ की    श्रेणी में रखा जाता है। यदि विद्रोह सर्वव्यापी न हुआ तो विद्रोहियों को मिटाना आसान होता  है। विद्रोहियों को सलाखों के पीछे डाला जाएगा,   इससे हमारी ताकत कम हो जाएगी।’’

 ‘‘खान ठीक कह रहा है।’’ गुरु खान की राय से सहमत था, ‘‘यह ख़तरा मोल  लेने  में  कोई  मतलब  नहीं।  अस्सी  से  नब्बे  प्रतिशत  सैनिक  शामिल  होंगे; इस बात का जब तक यकीन हो जाए तब तक सामुदायिक आन्दोलन से कोई लाभ नहीं है।‘’ 

‘‘भूख–हड़ताल  करना  नहीं; काम का बहिष्कार करना नहीं; फिर करना क्या है ?  या ये सब कुछ इसी तरह बर्दाश्त करते रहना है ?’’  दास  चिढ़  गया  था।

‘‘गुस्सा न करो, हमें सोच–विचार करके ही कदम उठाना चाहिए। हमारी कृति इस तरह की होनी चाहिए कि जिससे हम सबको इकट्ठा कर सकें; और ऐसा करते हुए हम यह भी सिद्ध कर सकेंगे कि यह कृति कानून की दृष्टि से स्वतन्त्र है; इससे हम पर बगावत का इल्जाम भी नहीं लगेगा।’’ खान ने सबको समझाते हुए विचारों को एक दिशा दी।

‘‘ऐसी   कौन–सी   कृति   होगी ?’’   मदन   ने   पूछा।

‘‘हम   ये   रिक्वेस्ट   करेंगे   कि   हमें   न्याय   दिया   जाए।’’   खान   ने   कहा।

‘‘किंग तो इस बेस का सर्वेसर्वा है, उसके ख़िलाफ हम किससे शिकायत करेंगे ?’’   दास ने पूछा।

‘‘किंग इस बेस का सर्वेसर्वा हुआ भी तो उसका कोई बाप तो ऊपर बैठा है ना ?’’  गुरु ने कहा।

‘‘बिलकुल   ठीक।   हम   किंग   से   ही   रिक्वेस्ट   करेंगे   कि   हमें   वरिष्ठ अधिकारियों से   मिलना   है।’’   खान   ने   कहा।

‘‘मगर,   यदि   किंग   पूछेगा   कि   क्यों   मिलना   है,   तो...’’   दास   ने   पूछा।

‘‘तो क्या ? हमारी रिक्वेस्ट में साफ–साफ लिखा होगा।’’ खान ने रिक्वेस्ट का मसौदा ही बता दिया। ''Request permission to see the flag officer Bombay through proper channel regarding obscene and insulting language used by commander King on eighth February 1946. रिक्वेस्ट देते समय हर व्यक्ति वाक्य रचना बदल–बदलकर लिखेगा,    कुछ लोग Rear admiral Rautre कहेंगे कुछ लोग किंग का नाम न लिखते हुए कमांडिंग    ऑफिसर ‘तलवार’    लिखेंगे; कुछ Bad language लिखेंगे तो कुछ सिर्फ Language लिखेंगे ?



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