हजार का नोट भाग 1
हजार का नोट भाग 1
हजार का नोट
पूनम भामरा ने सब्जी का थैला उठाकर कंधे पर टांग लिया और तेज क़दमों से घर की ओर चल पड़ी। ऑफिस के बाद डेढ़ घंटे की लोकल ट्रेन की यात्रा उसे बुरी तरह थका देती है। बेलापुर से जोगेश्वरी तक का सफर काफी यातनादायक था। उसके बाद सौदा सुलफ खरीदते घर पहुँचने तक काफी अँधेरा घिर आता जो मोहन की आँखों में भी उतरा नजर आता था। पहले मोहन ऐसा नहीं था। जबसे किसी अनजानी बीमारी ने मोहन का उठना बैठना मुश्किल कर रखा है तब से उसके दिमाग पर कई शंकाएं सांप की तरह कुन्डली मारे बैठी रहती हैं और गाहे बगाहे शब्दबाण से डंसती भी हैं। इतनी देर कैसे हुई जैसा सवाल तो रोज ही उठता था। बेहरामबाग के व्यस्त चौराहे से पूनम दाहिनी ओर की पतली सी गली में मुड़ गई जिसके अंतिम मुहाने पर उसका दो कमरों का छोटा सा घर था। मोहन के नपुंसक क्रोध की बरसात में भीगने की मानसिक तैयारी करती पूनम जल्दी जल्दी कदम बढ़ा रही थी कि एकदम से ठिठक गई। उसके सामने से एक लाल कागज़ उड़ता हुआ थोड़ी दूरी पर गिरा जिसे देखकर पूनम चौंक गई। उसे लगा जैसे यह कागज हजार रूपये का नोट था। पूनम ने भारी थैला जमीं पर रखा और दौड़ती हुई नोट तक पहुंचने का प्रयास करने लगी। हलकी हवा के वेग से नोट स्थिर नहीं हो रहा था। पूनम दौड़ते हुए हांफने लगी लेकिन उसने पक्के तौर पर देख लिया था कि यह हजार का नोट ही था। गनीमत थी कि गली सूनसान पड़ी थी। अंततोगत्वा पूनम के हाथ में वह नोट आ ही गया। एक बार दौड़ते समय पूनम ने सोचा कि कहीं यह नोट बच्चों के खेलने के लिए बनाये गए नोट जैसा नकली हुआ तो उसका पोपट हो जाएगा लेकिन नोट को छूते ही उसकी समझ में आ गया कि यह शत प्रतिशत खरा, असली हजार का नोट था। लेकिन फिर यह देखकर उसका चेहरा निराशा से झुक गया कि यह नोट उसके किसी काम का नहीं था।
अगर नोट असली था तो पूनम के काम का क्यों नहीं था?
कहानी अभी जारी है...
पढ़िए भाग 2