Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

पतंग

पतंग

15 mins
8.5K


"पापा, अब चलो भी।"

"चलते हैं बेटा, जरा सांस तो लेने दो, अभी तो आफिस से लौटा हूँ।"

"अच्छा ठीक है, मैं बाहर आपकी वेट कर रहा हूँ, रोज की तरह आज भी कोई बहाना मत बनाना। सारांश, हर्षिल और मानव सब पतंग खरीद चुके हैं, इस बार उन्होंने बरेली वाली काली डोर भी खरीदी है, पूरी एक हजार मीटर नयी चरखी में भरवा के लाये हैं, चौक वाली दुकान से। कल वसंत-पंचमी है और मैं ही मोहल्ले में अकेला रह गया हूँ जिसने अभी तक पतंग और डोर नहीं खरीदी है।"

"यार तुम इतने उतावले मत हो, मैं खुद तुम्हें लखनऊ वाली स्पेशल डोर दिलवा के लाऊंगा, और तुम कल पतंगबाजी के हीरो बनना।" पापा ने पानी पीकर चीकू को प्यार से कहा।

चीकू लखनऊ की स्पेशल डोर के बारे में सुन कर खूब खुश हुआ। उसने सोचा कि अभी तो पापा चाय पियेंगे, तब तक मैं जरा घर के बाहर खेल रहे हर्षिल को ये बात बताऊँ कि इस बार मानव की हीरोपन्ती तो बेटा खत्म ही समझो।

"मैं बाहर हर्षिल के साथ खेलता हूँ, आप जल्दी आ जाना।" ऐसा कह कर वो घर से बाहर चल दिया।

"हर्षिल यहाँ आओ, तुम्हें एक कमाल की बात बतानी है।" चीकू ने देखा की हर्षिल घर के पास एक खाली प्लाट में सारांश के साथ नई पतंग में कन्ने बाँध रहा था। थोड़ी दूर सामने वाली छत पर मानव अपनी पतंग खूब ऊँचा उड़ा कर ताने खड़ा था।

मानव आठवी क्लास में पढ़ता था और मुहल्ले के सभी बच्चों से बड़ा था।

उसके पिता पुलिस विभाग में थे। जब भी पतंग और डोर लेने अपने पापा के साथ किसी दूकान में जाता तो उसके पिता की पुलिसिया पहचान के चलते हर पतंगवाला सबसे अच्छी डोर और खूब सधी हुई पतंग उसे देता। उसके पास पतंगों की कई किस्में थी जैसे तौकिया, तिरंगा, लट्ठा, बोतल, परी, कलूटा। सब बच्चे उसकी पतंगबाजी के कायल थे। हो भी क्यों न अब जब सबसे अच्छी डोर और पतंग उसके पास थे तो वो खूब पेंच लड़ाता और गाजर मूली की तरह दूसरी पतंगों को काट कर हीरो बनता। आसपास के मोहल्ले और स्कूल में उसकी खूब तारीफ़ होती। इस बात से वो कुछ घमंडी हो गया था और दूसरे बच्चों का अक्सर मजाक बनाने में उसे खूब मजा आता।

"क्या है यार, यही बता दो आकर, बड़ी मुश्किल से जरा हवा चली है पतंग उड़ाने के लिए।" हर्षिल ने चीकू को अपने पास आने का इशारा करते हुए कहा।

"इस बार देखना, कल बसंत पंचमी के दिन एक पतंग नही टिक पायेगा और मेरी स्पेशल डोर साबू के गुस्से की तरह सब को धूल चटा देंगी, क्योंकि जब साबू को गुस्सा आता है तो कहीं ज्वालामुखी ही फटता है।" आजकल चीकू चाचा चौधरी और राका की सीरिज पढ़ रहा था और उसके दिलोदिमाग पर साबू की बहादुरी छाई हुयी थी।

हर्षिल और चीकू ने चुपचाप मानव को राका नाम से बुलाने का कोड तैयार कर लिया था। आज जब उसके पापा ने लखनऊ की स्पेशल डोर वाली बात बताई तो उसे लगा कि चाचा चौधरी की तरह मानव यानी राका को हराने के लिए उन्होंने तरकीब खोज ली है और उसके पापा का दिमाग भी चाचा चौधरी की तरह कंप्यूटर से भी तेज चलता है।

"बस-बस ज्यादा उछलो मत, मानव यहाँ किसी की नहीं चलने देगा, अभी-अभी तीन पतंग उसने काटे है मेरे सामने। बड़ी गजब डोर है उसके पास, ऐसे काटती है जैसे महाबली शाका की तलवार हो।" हर्षिल ने चीकू को मुँह बनाते हुए कहा।

"ऐसा कुछ नहीं है, उसका आंतक अब खत्म होगा क्योंकि मेरे पापा अभी बाजार जाने वाले है जहा मैं उनके साथ लखनऊ की स्पेशल डोर खरीदने जा रहा हूँ। पूरी की पूरी रील, और उसमें सद्दी नहीं होगी, की समझे। बरेली डोर से आगे की चीज है यार।"

हर्षिल ये सुनकर थोड़ा चौंका और उसने अपना पतंग छोड़कर पूरी तरह से चीकू की ओर कंसन्ट्रेट किया।

"अरे ये लखनऊ वाली डोर के बारे में तो वो बिल्लू वाली कामिक्स में तुमने मुझे पढ़वाया भी था, उसमें बिल्लू ने खूब पतंगे काटी थी और पिंकी बहुत खुश हुई थी।" हर्षिल ने थोड़ा हैरान होते हुए कहा।

"भैया इसके बारे में तो मैंने लोटपोट में भी पढ़ा है, घसीटा की पतंग मोटू ने लखनऊ वाली डोर से ही काट दी थी, बहुत सुपर-डूपर डोर होती होगी ये।" सारांश उनमें सबसे छोटा था और मोटू पतलू वाली लोटपोट और चम्पक खूब पढ़ता था। उसने भी अपनी बात पूरे सस्पेंस से कही।

"चीकू बेटे चलना है की नहीं, मैं बाजार जा रहा हूँ।" चीकू के पापा की आवाज आई। उन्होंने घर के बाहे अपनी बाइक स्टार्ट करते हुए कहा।

अच्छा हर्षिल, सारांश, अभी एक घंटे बाद मिलते हैं, फिर कल का प्लान बनायेंगे। सब ने एक दूसरे की तरफ देखकर हाँ में सर हिलाया और चीकू " आया पापा" कह कर अपने घर की तरफ दौड़ पड़ा।

पतंगों के मौसम की वजह से बाजार में पतंगों की दुकान पर खूब भीड़ थी। ऊपर आसमान में भी यहाँ वहाँ पतंगे उड़ती कटती, लहराती ऐसे लग रही थीं जैसे किसी ने बहुत से रंग-बिरंगे कागज आसमान में टांक दिए हों।

"पापा, आप जब छोटे थे तो कौन सी डोर ज्यादा चलती थी। आपने ज्यादा पतंगे काटी या कटवाई।" चीकू ने अपने पापा के पीछे बैठे हुए कहा।

"बेटा चीकू, मैंने बचपन में खूब पतंगे उड़ाई है, हम सब बच्चे तो बाजार से कच्ची डोर जिसे तुम लोग सद्दी कहते हो, खरीद लेते थे। वर्धमान की कच्ची रील पूरी हजार मीटर, और उसे सूतने के लिए सामान बाजार से खरीद लेते। सुताई में कांच लगाने के लिए पुराने बल्ब और ट्यूब कूट पीसकर किसी बार्क चुनरी से उसे छान कर कांच का पाउडर बना लेते। फिर खुले मैदान में या दो पदों के बीच उसे सूतते। " पापा ने अपनी बचपन की याद को जैसे ताजा किया। चीकू के लिए ये सब

कुछ एक नया अनुभव था।

"क्या अब भी ऐसे सुताई कर सकते है आप"। चीकू ने जिज्ञासा दिखाई।

"करने को तो कोई बड़ी बात नहीं, पर अब जब सब कुछ रेडीमेड बाजार में ही मिल रहा है तो कौन इतनी मेहनत करे। मेरा एक दोस्त है जो आज भी खुद डोर तैयार करता है और बाजार में बेचता है, मैं तुम्हें उसी से डोर दिलवा देता हूँ। लखनऊ की डोर का पुराना कारीगर है, बस अपने घर में ही काम करता है।" पापा ने कहा।

बाइक बाजार पार करते हुए एक गली में पहुँची। गली के पार सिरे पर एक मकान था जिसके सामने एक मैदान में कुछ पेड़ लगे थे। दो आदमी वहाँ पेड़ों के इर्द-गिर्द घूम कर डोर की सुताई कर रहे थे।

"और अब्दुल भाई क्या हाल है ?" पापा ने एक आदमी को आवाज देते हुए कहा।

"जी खुदा का फजल है शर्मा जी, ले आये साहबजादे को, इसके लिए मैंने डोर तैयार कर रखी है, रुकिए लाता हूँ।"

अब्दुल ने हाथ पोछे और एक चरखी पर लिपटी हुई लाल डोर लाकर चीकू के हाथ में दी।

"लो बेटा, खूब पतंग काटो, ऐसी डोर है कि किसी को टिकने नहीं देगी"। अब्दुल ने पान चबाते हुए चीकू को मुस्कुराते हुए कहा।"

"थैंक यू, अब्दुल अंकल"। चीकू के हाथ तो जैसे जादू की छड़ी लग गयी थी।

पापा ने अब्दुल को कुछ पैसे दिए और फिर पतंग वाली दुकान से उसे अलग-अलग रंगों की पतंगे दिलवाई।

शाम घर रही थी। चीकू अपने घर की छत पर हर्षिल और सारांश के साथ बैठा नयी पतंगों में कन्ने डाल रहा था। इस काम के साथ-साथ अगले दिन की योजना भी बन रही थी।

"देखो जैसा कि प्लान बना है कि हम सब यहाँ मेरी छत पर इकठ्ठे पतंग उडायेगें और हमारा एक ही टार्गेट होगा मानव के साथ पेंच लड़ाकर उसके ज्यादा से ज्यादा पतंग काटना।" चीकू बोला।

"और एक बात, हम आपस में एक दूसरे की पतंग को नहीं काटेंगें और चरखी लपेटने में, फटे पतंग जोड़ने में एक दूसरे की मदद करेंगें। " हर्षिल पंचशील के सिद्धांत की तरह रियेक्ट कर रहा था।

"एक बात मेरी भी सुनो भैया, जब पतंग हवा में टिका हो, तो थोड़ी देर मुझे भी उड़ाने देना, वरना मेरी तो बारी ही नहीं आएगी।" सबसे छोटा दूसरी कक्षा में पढ़ने वाला सारांश बोला।

"अरे तुम फिकर मत करो, वैसे भी कल कोई पतंग यहाँ टिकने वाली तो है ही नहीं, ये स्पेशल डोर मैदान साफ़ कर देगी और अपनी पतंग खूब तनेगी, तुम्हें तो बार-बार पतंग उड़ाने का मौका मिलेगा छोटे।" चीकू ने सारांश की और देखकर कहा।

"अच्छा आप लोग ये मुझे छोटे-वोटे मत कहा करो, पापा कहते हैं कि अब मैं छोटा नहीं रहा, बड़ा हो गया हूँ।" सारांश ने नाराजगी जताते हुए कहा।

"अच्छा यार, नहीं कहेंगे, अब अपने टार्गेट पर कंसन्ट्रेट करो। कल ये भी ध्यान रखना कि जब मानव हमसे पेंच लड़ा रहा हो तो क्या डोर खींचता है या ढील देता है, फिर हम भी वही करेंगे और हमें पता चल जाएगा कि उसकी डोर ढील देकर काटने वाली है या खींच कर काटती है। और उसके पास कितने पतंग हैं इसका पता सारांश करेगा क्योंकि ये हम सबके घर में आता-जाता रहता है।" आज चीकू इन सबका बॉस बना हुआ था और सब उसकी बात मान रहे थे क्योंकि उसके पास लाल रंग की स्पेशल लखनऊ वाली डोर थी।

सब अपने प्लान की कामयाबी को लेकर फुल कॉंफिडेंट थे। राका की हार निश्चित थी और साबू जीतने वाला था। सब अगली सुबह के लिए अपने-अपने घर लौटे।

अगली सुबह के बीच में आज की रात बड़ी लम्बी थी। चीको ने जाने कौन-कौन से प्लान और इमेजेज़ अपने दिमाग में लगातार देखीं, सोची। खाना खाते समय उसका ध्यान कहीं और था इसके लिए वो एक बार मम्मी से पिट भी गया।

"पतंग, पतंग, पतंग, दिन भर से इस लड़के के सर पर भूत सवार है। आप जरा इसके मैथ्स के टेस्ट देखिये, खूब इज्जत बना रहा है हमारी। पिछली पेरेंट्स टीचर मीटिंग में भी इसकी मैथ टीचर सरला मोदी ने भी कहा की चीकू का दिमाग तो खूब चलता है पर शरारतों में मैथ्स में नहीं।" मम्मी ने पापा से शिकायत करते हुए कहा।

चीकू चाहे पापा का ज्यादा लाडला था, पर इस समय उन्होंने भी मम्मी के हक़ में आवाज उठाई और कहा, " चीकू ये बहुत गलत बात है तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे रहे। मैंने फैसला किया है कि कल के पतंग उत्सव के बाद तुम्हारा खेलना-कूदना बंद। अब शाम को मैं तुम्हें खुद एक घंटा मैथ पढ़ाया करूँगा।"

मम्मी का गुस्सा इस पर थोड़ा शांत हो गया और पापा ने चीकू को अपने कमरे में खिसक जाने का इशारा किया।

चीकू की आँखों में नींद नहीं थी, उसने चुपके से अपनी कपड़ो की अलमारी से लखनऊ की स्पेशल लाल डोर निकाली और उसे अपने सिरहाने रख कर देखते हुए कुछ सोचने लगा। आज उसके सभी कामिक्स एक कोने में दुबके पड़े थे और राका की तस्वीर वाला पन्ना एक तरफ लटक रहा था। उसकी आँख कब लगी, उसे पता न चला।

चीकू स्वप्नलोक में था। उसने देखा की उसकी पतंग खूब ऊँची तनी हुई है। आसपास की छतों पर मोटू, पतलू, पिंकू, बिल्लू, महाबली शाका, नागराज, फौलादी सिंह और चम्पक से सभी जानवर खड़े है। वे सब चीकू-चीकू चिल्ला रहे हैं, उसकी जय-जयकार कर रहे हैं। उसके इंग्लिश वाली खूबसूरत मैडम ज्योति सिन्हा उसे बड़े प्यार से देख रही हैं। उसके स्कूल के दोस्त खाली प्लाट में खड़े उसकी पतंग की तरफ बड़े गौर से देख रहे हैं। वहीं दूसरी छत पर मानव के साथ राका और मैथ टीचर सरला मोदी खड़े हैं और मानव की पीठ थपथपा रहे हैं। चीकू के साथ सारांश और हर्षिल खड़े हैं। चाचा चौधरी और साबू ने उसके पतंग और चरखी संभाल रखी है। उनका कुत्ता रॉकेट मानव को देखकर खूब भौंक रहा है। इसी बीच मानव और चीकू की पतंगों का पेच लड़ गया है और चीकू ने झटके से मानव का पतंग काट दिया है। चीकू के लिए सब तालियाँ बजा रहे हैं और मानव अपने कटे हुए पतंग को देखकर उदास हो गया है।

चीकू ने चिल्ला कर कहा, " काट दिया काट दिया, आई बो आई बो।"

वो अचानक नींद से जागा, उसने आँखे खोली तो वहाँ कोई नहीं था। उसे थोड़ा अफ़सोस हुआ।

"कितना अच्छा सपना था, काश सब इस तरह आज मेरी डोर का जलवा देखते।" इसने सोचते हुए घड़ी की ओर देखा। आठ बज चुके थे।

ब्रश कर के और बोर्न्वीटा दूध पीकर वो बिना नहाये मुँह-हाथ धोकर नौ बजे हर्षिल और सारांश के साथ छत पर था। मानव के कुल पतंग और डोर की जानकारी देते हुए सारांश ने उसे बताया।

भैया उसके पास बरेली डोर की दो चरखी है। एक काली रील वाली और एक ग्रीन रंग की। पतंगे मैंने पूरी तो नहीं गिनी पर कम से कम ट्वेंटी तो रही होंगी।"

"कोई बात नहीं मेरे पास भी ट्वेंटी है और हर्षिल भी दस पतंगें लेकर आया है, गिनती में तो हम उससे आगे ही हैं।" चीकू ने मुस्कुराते हुए कहा।

मानव अपनी पतंग लेकर छत पर आ चुका था। उसके पापा भी एक तरफ कुर्सी पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे। मानव ने चीकू और उसके दोस्तों को छत से देखा तो इशार कर के पेंच लड़ाने को कहा।

हवा अच्छी चल रही थी और चीकू पूरे जोश में था। लाल रंग की स्पेशल डोर से बाँधकर उसने सबसे पहले तौकिया पतंग उड़ाया। पतंग कुछ सेकेण्ड में ही हवा में झूमने लगा। मानव के पतंग से पेंच लड़ने से पहले रास्ते में और भी बहुत पतंग आसपास उड़ रहे थे। उधर मानव तो इधर चीकू अपनी-अपनी डोर से पतंगों से पेंच लड़ाते, उन्हें काटते किसी बड़े योद्धा की तरह एक दूसरे के नजदीक आ रहे थे।

मानव और चीकू अपनी-अपनी परफॉरमेंस से खूब हीरो बन चुके थे। सारांश और हर्षिल को लखनऊ की स्पेशल डोर पर विश्वास हो चुका था।

"भाई आज हमें कोई नहीं रोक सकता, ये मानव का बच्चा भी क्या याद करेगा। अभी तक हमने भी पांच पतंग बड़ी सफाई से काटे हैं और अपना तौकिया पूरी शान से आगे बढ़ रहा है"। हर्षिल बहुत खुश था।

इस बीच चीकू छत के ऊपर से ही अपने घर के आंगन में चिल्लाया "पापा आइये और देखिये, मैंने पांच पतंग काट दिए हैं"। वो इस बात को हर तरफ फैला देना चाहता था।

उधर मानव ने जब चीकू की ये परफॉरमेंस देखी तो वो थोड़ा घबराया। आसपास की छत पर पतंग उड़ाने वाले कई बच्चे उसके स्कूल से ही थे। आज मानव के साथ-साथ चीकू भी उनका हीरो बन रहा था।

आखिरकार चीकू की पतंग और मानव की पतंग के पेंच लड़े। मानव ने अपनी डोर को खींचने के लिए जैसे ही झटके से हाथ आगे पीछे किये, उसकी पतंग हवा में ही औंधी हो गयी। उसका पतंग कट चुका था। कहीं कोई मौका ही नहीं दिया था चीकू की पतंग ने उसे और चीकू की छत पर जश्न के हल्ले हुलारे थे। आई बो की ऊँची आवाजे़ं थी। जोश था, चीकू ने हर्षिल को पतंग की डोर पकड़ाई और सारांश को उठा कर नाचने लगा। ये लखनऊ की डोर की बड़ी सफलता थी। आज राका पर साबू भारी था।

पर मानव हार मानने वाला नहीं था। उसने कुछ ही पलों में एक और पतंग उड़ाया और चीकू को पेंच के लिए ललकारा।

चीकू ने भी बिना कोई हिचक दिखाते हुए इस बार हर्षिल को पेंच लड़ाने का मौका दे दिया।

देखते ही देखते हर्षिल ने लखनऊ की स्पेशल डोर के साथ मानव की पतंग को नीचे से लपेटने की कोशिश की। फुर्ती से डोर खींची पर ये क्या, इस बार जीत मानव की हुई। दोनों टीमे एक-एक से बराबर हो चुकीं थी। सस्पेंस बरकरार था।

मानव ने भी खूब उछल-कूद करते हुए दूर से चीकू की तरफ अपने बाएँ हाथ की उँगलियों से वी का निशान बनाते हुए मुँह चिढ़ाया।

"भैया इस बार देखना मानव की पतंग पास भी नहीं फाटक पायेगी"। कहते हुए हर्षिल ने लाल रंग की डोर वाली लखनवी चरखी को उठाया और आखे बंद करके जाने कौन से मन्त्र पढ़े और फूक मार कर उसे माथे से लगा लिया।

"अब देखना जय काली कलकत्ते वाली का कमाल, कल टीवी पर शक्तिमान ने ऐसे ही किल्विष को धूल चटाई थी।"

चीकू थोड़ा हैरान और उदास था पर उसने इस जादुई शक्ति का मन्त्र देखा और शक्तिमान का नाम सुना तो जैसे उसमें नया उत्साह आ गया।

लठ्ठा पतंग को चूमकर उसने उड़ाना शुरू किया और मानव के पतंग तक आगे बढ़ा दिया। पतंग आपस में पेंच के लिए एक दूसरे की तरफ पलटे। हवा तेज थी। मानव और चीकू की डोर आपस में टकराई। इस बार दोनों ने खीचने के बजाय डोर ढीली छोड़ी। पर कोई नतीजा न निकला। दोनों धीरे-धीरे डोर बढ़ाते रहे। अपनी-अपनी छत पर साँसे थामे।

छोटा सारांश मुँह खोले दोनों पतंगों को देख रहा था। मानव की परी और चीकू भाई का लाता पतंग अभी तक मैदान में टिके हुए थे। अचानक मानव ने डोर खींचनी शुरू की, पर चीकू डोर छोड़ता रहा। कुछ ही पलों में मानव का पतंग मछली की तरह हवा में लहराने लगा। स्कोर दो एक हो चुका था और चीकू की छत पर जश्न का शोर मचा था।

मानव का मुँह लटक गया।

चीकू और उसके साथियों ने ऊँगली से वी का निशान बनाते हुए उछल-उछल कर मानव की तरफ इशारा किया।

चीकू इस सफलता का सन्देश देने के लिए नीचे मम्मी-पापा के पास गया और पकौड़ों से भरी प्लेट लेकर लौटा। मानव भी अपनी छत से नीचे उतर कर शायद ब्रेक के लिए चला गया था।

चीकू की छत पर तीनों बच्चों के पाँव जमीन पर नहीं लग रहे थे। आसपास छत पर खड़े मोनू, गप्पू और जीतू ने भी थम्सअप का निशान बनाते हुए चीकू को बधाई दी।

थोड़ी देर बाद मुकाबला फिर शुरू हुआ। शाम तक हार-जीत, जीत-हार का सिलसिला चलता रहा। स्कोर बढ़ता घटता रहा। चीकू और मानव की पतंगें किसी महाभारत के युद्ध की तरह शाम तक सस्पेंस जगाती रहीं। आखिरकार जब स्कोर बराबरी पर था और माँ ने कई बार सभी बच्चों को छत से नीचे उतरने के लिए आवाजें दी थी और बच्चे "आते हैं" , "एक सेकेण्ड", "आ गये" के जुमले सुना-सुना कर उन्हें पका चुके थे तो एकदम मानव और चीकू की छत पर मम्मियों की सर्जिकल स्ट्राइक हुई और सब पतंगबाज बच्चे पिटते-पिटते नीचे उतरे।

मानव का अंहकार टूट चुका था।

चीकू अपने दोस्तों के बीच हीरो बन चुका था।

सब बच्चे खुश थे, साबू, चाचा चौधरी, शक्तिमान, महाबली शाका, पिंकू, बिल्ली और मोटू-पतलू सब सब मुस्कुरा रहे थे।

कहानी खत्म पैसा हजम।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Children