गुफ़्तगू
गुफ़्तगू
जावेद : रेखा, आजकल बहुत बुरे सपने आते हैं।
रेखा : कैसे सपने?
जावेद : सपने मे देखता हूँ की ख़ुद के कब्र के ऊपर अपने नाम और एक कविता लिख रहा हूँ फिर कविता ख़त्म होते ही मेरे पेंसिल की नोक टूट जाती है और लोग मुझे धकेल देते हैं और मेरे कविताओं को और मुझे ज़िंदा दफ़्न कर के चले जाते है।
रेखा : मौत के सपने आना तो अच्छी बात है; कमसकम यह तो पता चलता है की ज़िंदा हो इसीलिए मौत के सपने आ रहे हैं।
जावेद : पर अगर यह सपना सच हो गया तो?
रेखा : जावेद, तुम डरो मत। तुम जैसे शायर और कवि इतनी जल्दी मरने लग गऐ तो दुनिया मे रखी इतने शराब का क्या होगा? और तुम्हारी ज़िन्दगी तुम्हारे कवितायों मे बसती है। हर एक लाइन तुम्हारे साँसों की तरह होती है। पढ़ती हूँ तो याद आती है उन सर्द रातों की जब तुम्हारी साँसे मेरे कंधे पर पड़ती थी और मैं आहें भरते भरते तुम्हारी बाँहों मे ख़ुद को मिला सी देती थी। वैसी ही आहें तुम्हारी कविता पढ़ने पर भी आती हैं।
जावेद : रेखा, तुम कुछ ज़्यादा ही प्यार करती हो मुझसे। शायद इतना प्यार तो मैं ख़ुद की कविताओं से भी नहीं करता।
रेखा : जावेद, मैंने एक शायर को दिल दिया है। बदले मे मुझे प्यार मिला या नहीं पता नहीं पर हाँ कई शायरियाँ लिखी गयी मुझपर यह ज़रूर पता है। और शायद तुम्हारे दिल से ज़्यादा, तुम्हारे नज़्मों में जगह पा कर मैं ज़्यादा ख़ुश हूँ। मैं वो साकी हूँ जो तुम्हारी शराब पे लिखे हर एक ग़ज़ल मे तुम्हारा जाम भरती है। मैं वो शाम हूँ जिसे तुम हर शाम फिर से ज़िंदा करने की कोशिश मे उसपे कविता लिखते हो। मैं वो राज़ हूँ जिसे तुम अपने हर कविता मे बड़े आशिक़ी से पेश तो करते हो पर कभी बेनक़ाब नहीं करते। मैं वो रात हूँ जिसके साथ तुम हर रात गुज़ारते हो।
जावेद : और तुम कहती हो की मैं कवि हूँ। कविता तो तुम्हे लिखनी चाहिये अब मेरे ऊपर। शायद पहली इंसान होगी तुम जो कविताओं से ज़्यादा कवि से प्यार करती है। मुझे इतने प्यार की आदत नहीं है, रेखा। मैं तो बस वो कागज़ से कुछ बातें कर लेता हूँ और वो चुप चाप सुन लेती है। सफ़ेद कोरा कागज़ पे तुम्हारे दिए हुए उस फाउंटेन पेन से कुछ नीले रंग के झूठ और सच लिखता और दुनिया बेचारी मेरे झूठ मे ख़ुद के सच को खोजती है। लोग सोचते होंगे, यह जावेद मियाँ भी बहुत बड़े आशिक़ होंगे। प्यार के ऊपर इतनी अच्छी शायरी करते हैं तो हमसे ज़्यादा ही समझते होंगे प्यार और मोहब्बत को। मुझे तो पता ही नहीं यह प्यार चीज़ क्या है। मुझे पता है की तुम हो, मैं हूँ और यह दुनिया मे अब भी काफी ख़ूबसूरती बची हुई जिसे लोग खुले आँखों से नज़र अंदाज़ कर देते हैं। मैं कोई आशिक़ नहीं हूँ। मैं वो रस्ते पे झाड़ू देने वाला छोटा बच्चा हूँ जो हर सुबह रास्ते की गन्दगी साफ़ करता है। लोगों को बस रास्ता दिखता है और छोटू कभी कभी उन्हें मिल जाता है तो एक दो चवन्नी दे जाते हैं वो। मैं वो छोटू हूँ, यह दुनिया एक रास्ता और तुम मेरी वो झाड़ू जो मुझे इस गन्दगी को साफ़ करने मे मदद करती है और बदले मे एक कप चाय भी पिलाती है।
अचानक ज़ोर से रेखा की आवाज़ आती है।
रेखा : यह लो जावेद, चाय पी लो।
जावेद आँखें खोलता है और रेखा से कहता है, "सपने मे तुम और भी ख़ूबसूरत लगती हो।"