प्यार के भूखे
प्यार के भूखे
घर में आगमन होते ही वह कभी इस पायदान पर तो कभी उस पायदान पर डरा सहमा सा बैठ जाता। आज़ उसका नामकरण भी होना था तो पूज़ा के बाद नाम भी रखा गया ‘ब्रूनो’। घर में सब उसके आने से बहुत ख़ुश थे। कभी कोई उसे गोदी में लेता तो कभी कोई। बस सबसे छोटी बेटी जिज्ञासा जिसको बहुत डर लगता था, उसके इसी डर को ख़त्म करने के लिये यह निर्णय लेना पड़ा था। दूर से खड़ी सब तमाशा देख रही थी और मन ही मन प्रसन्न भी हो रही थी। पर पास आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। विनोद और नीरा यह सब देख रहे थे पर उन्हें उम्मीद थी कि एक ना एक दिन परिवर्तन ज़रूर होगा। ख़ैर ! ऐसे ही कई दिन बीत गये !
धीरे-धीरे दोनों में दोस्ती हो जाती है और इतनी गहरी कि खाना भी जिज्ञासा के हाथ से ही खाते हैं महाशय ! सब काम दीदी से ही करवाने हैं जैसे हम तो कुछ ठीक करते ही नहीं थे।
अब तो आलम यह है ज़नाब कि अगर कोई उसे भूल से भी ‘कुत्ता’ कह दे तो उसको पूरा भाषण मिल जाता है “ये भी तो प्यार के भूखे होते हैं अगर हम इन्हें नहीं अपनायेंगें तो ये कहाँ जायेंगें ? सरकार को हर घर में एक जानवर होना अनिवार्य कर देना चाहिये ! ताकि इन्हें भी घर में होने का अहसास हो सके। ये भी तो हमारी तरह चलते-फिरते हैं फिर इन्हें घर क्यों नहीं ?”
कल की डरने वाली मासूम सी लड़की आज़ एक “एन०जी०ओ०” के माध्यम से सबको इन मासूमों की अपनी ज़िंदगी में अहमियत बताती हुई उनकी सेवा में दिन-रात लगी हुई है। यह सब देखकर नीरा और विनोद को अपने लिये हुए फ़ैसले पर गर्व का अनुभव हो रहा है।