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वड़वानल - 38

वड़वानल - 38

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‘‘बशीऽऽर,’’ अपने चेम्बर में पहुँचते ही किंग ने बशीर को बुलाया। बशीर अदब से अन्दर आया।

''Call Sub Lt. Rawat, ask him to see me immediately.'' बशीर रावत को बुलाने गया और किंग पाइप में तम्बाखू भरने लगा।

अन्दर आए रावत को किंग ने इशारे से ही अपने पास बुलाया।

‘‘दत्त को आज आज़ाद करके उसे मैंने बैरेक में भेजा है। वह सोमवार तक वहीं रहेगा...’’

‘‘सर  बहुत  बड़ा  खतरा  मोल  ले  रहे  हैं  आप।  सोमवार  तक  वह  क्या  उत्पात मचाएगा इसका कोई भरोसा नहीं  । मेरा ख़याल है कि आप उसे...’’ रावत किंग को  अनावश्यक  सलाह  देते  हुए  किंग  की  गलती दिखाने की कोशिश कर रहा था।

''Rawat, listen to me first.'' किंग ने रावत को फटकारा। ‘‘तुम्हारा काम इतना ही है कि तुम किसी के माध्यम   से दत्त पर नज़र रखो... वह किस–किस से मिलता है,  क्या–क्या  कहता  है,  यह  सब  मुझे  मालूम  होना  चाहिए।  उस  पर नज़र रखकर उसके साथियों को पकड़ना है। तुमने दत्त को जिस कुशलता से पकड़ा था,  उसी  तरह  उसके  साथियों  को  पकड़ो।  यह  काम  सिर्फ  तुम  ही  कर सकते  हो,  इसका  मुझे  यकीन  है।’’  किंग  ने  उसे  उसकी  ज़िम्मेदारी समझाई।किंग द्वारा की गई प्रशंसा से खुश होकर रावत दत्त पर नजर रखने की योजना बनाते हुए बाहर निकला।

‘‘अरे, वो देख, अपना हीरो दत्त आ रहा है।’’ कोई चिल्लाया और सबकी नजरें बैरेक से बाहर की ओर देखने लगीं। दत्त ही था वह!

सुमंगल दत्त की ओर दौड़ा और उसके हाथ से किट बैग ले ली। सुमंगल ने नारा लगाया, ''Three cheers for Dutt!''

‘‘हिप–हिप हुर्रे!’’ और इसे ज़ोरदार प्रत्युत्तर मिला। बैरेक के सैनिक दौड़कर आगे बढ़े और उन्होंने दत्त के विरोध की परवाह न करते हुए उसे ऊपर उठा लिया और किसी विजयी वीर के समान बैरेक के एक कोने से दूसरे कोने तक उसका जुलूस निकाला।

रावत ने बोस को अपने क्वार्टर में बुलाया।

‘‘ये क्या सर,  दत्त को छोड़ दिया ? उसे बैरेक में रहने की इजाज़त दे दी ?’’ बोस की आवाज़ में आश्चर्य था।

‘‘मैं कौन होता हूँ उसे छोड़ने वाला ? ये सारी कप्तान सा’ब की मेहरबानी है! फिर भी मैंने उनसे कहा कि दत्त को बैरेक में भेजना खतरनाक है। मगर मेरी बात सुनता कौन है ?’’ रावत शिकायत के सुर में बोस से कह रहा था और यह कहते हुए यह जताने की कोशिश कर रहा था कि वह कितना समझदार        है।

‘‘दत्त को बैरेक में भेजा और आगे का सब कुछ निपटाने की ज़िम्मेदारी मुझ पर डालकर किंग फ़ारिग हो गया। हम ठहरे साम्राज्य के वफ़ादार सेवक; तो ये करना ही होगा और इसके लिए तुझे मदद करनी होगी।’’

‘‘मैं हमेशा ही आपकी और साम्राज्य की तरफ हूँ। आज वह साम्राज्य का दुश्मन बैरेक में आया और किसी वीर की तरह उसका स्वागत किया गया। मुझे इतना गुस्सा आया था, मगर करता क्या ? चुप रहा!’’ बोस ने अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की।

‘‘दत्त  को  किंग  सा’ब  ने  बैरेक  में  जाने  दिया  इसके पीछे उद्देश्य यह था कि दत्त के साथियों को ढूँढ़ा जाए। दत्त पर बारीक नज़र रखकर उसके साथियों को ढूँढ़ने का काम हमें सौंपा गया है।’’   रावत   ने   काम   के   स्वरूप   के   बारे   में   बताया।

 ‘‘सर, करीब पन्द्रह दिन पहले मैंने इन आन्दोलनकारियों के एक भूमिगत क्रान्तिकारी के छुपने की जगह के बारे में आपको सूचना दी थी। उसका आगे क्या हुआ ?  और दूसरी बात यह,  कि यह सब मैं करूँ,  समय आने पर उनकी मार भी खाऊँ,   मगर मुझे इससे क्या लाभ होगा ?’’   बोस ने पूछा।

‘‘मैंने  साहब  से  तुम्हारा  नाम  अगले  प्रमोशन  के  लिए  रिकमेंड  करने  को कहा  है  और वे  भी  इसके  लिए  तैयार  हो  गए  हैं।  किंग  साहब  की  तुम्हारे  बार में बिलकुल   अच्छी   राय   है।’’   रावत   ने   ठोक   दिया।

‘‘ठीक है। मैं दत्त पर नजर रखता हूँ। और यदि कोई खास बात देखूँगा तो  आपको  सूचित  करूँगा।  मगर  मैंने  आपको  जो  पता  दिया  है  उस  पर  धावा बोलिए। मुझे यकीन है कि काफ़ी कुछ आपके हाथ लगेगा। बैरेक के इन विस्फोटकों का फ़्यूज वहीं है।’’   बोस ने अनुमान व्यक्त किया।

‘‘ठीक है। मैं देखता हूँ। तू अपने काम पर लग जा!’’ रावत ने बोस को यकीन दिलाया और बोस अपने काम पर निकल गया।

रावत ने खुद किंग से मिलकर बोस द्वारा दिया गया शेरसिंह का पता देने का निश्चय किया। वह तैयार हुआ ही था कि उसके फोन की घंटी बजने लगी.

''Sub Lt. Rawat speaking.''

''Rawat, King here, मैंने जो बताया था वह काम हो गया?’’

''Yes Sir, आदमी  तैनात  कर  दिए  हैं। दूसरी एक महत्त्वपूर्ण बात – मुझे एक पता मिला है। वहाँ इन सैनिकों को भड़काने वाला और उनका मार्गदर्शन करने वाला क्रान्तिकारी छुपकर बैठा है। यदि उसे गिरफ्तार कर लिया जाए तो ‘तलवार’   के   आन्दोलनकारी   ठण्डे   पड़   जाएँगे।"   रावत   ने   कहा।

‘‘तुम पता दो। मैं देखता हूँ कि आगे क्या करना है।’’ किंग को जल्दी पड़ी थी। “मगर खबर पक्की है ना ?’’   उसने   सुनिश्चित   करने   के   लिए   पूछा।

‘‘बिलकुल सौ प्रतिशत। आप सिर्फ धावा बोलिये।’’ रावत ने जवाब दिया और शेरसिंह का पता बता दिया।

किंग ने पता लिख लिया। उसके चेहरे पर समाधान था। रॉटरे द्वारा दी गई समयावधि से पहले वह हालाँकि क्रान्तिकारी सैनिकों को गिरफ्तार नहीं कर सका था,  मगर  एक  बड़े  क्रान्तिकारी  को  गिरफ्तार  करवाने  में  अमूल्य  सहयोग देने  वाला  था।

इतवार को सुबह आठ से बारह वाली ड्यूटी पर जाने वाले सैनिकों को छोड़कर बाकी पूरी बेस में छुट्टी का माहौल था। इतवार की साफ–सफाई के लिए होने वाली फॉलिन और उस दिन की साफ–सफाई बस नाममात्र की होती थी। रोज़ की तरह भागदौड़, गहमागहमी नहीं होती थी। सब कुछ सुस्ताए हुए अजगर के समान सुस्ती से होता था। 17 फरवरी,  1946 का इतवार हमेशा के इतवार की तरह नहीं था। उस इतवार के गर्भ में असन्तोष का लावा खदखदा रहा था।

पिछले दो महीनों से बेस में जो कुछ हो रहा था, उसी का परिपक्व रूप लेकर निकला था यह इतवार। समूची ‘बेस’  ही ज्वालामुखी के मुहाने पर सवार थी। हर कोई चाह रहा था कि इस ज्वालामुखी में विस्फोट हो जाए और अंग्रेज़ी   हुकूमत   की   धज्जियाँ   उड़   जाएँ।

‘‘दत्त   कहाँ   है ?’’   बशीर   ने   पूछा।

‘‘क्यों रे, क्या किंग को देने के लिए कोई जानकारी चाहिए ?’’ पाण्डे ने पूछा।

‘‘पाण्डे, प्लीज, मुझ पर ऐसा अविश्वास न दिखाओ। कमाण्डर किंग का कॉक्सन  होते  हुए  भी  मैं  हिन्दुस्तानी  ही  तो  हूँ  और  तुम्हारे  जितना  ही  मैं  भी  अपनी मिट्टी से प्यार करता हूँ!’’ अविश्वास का दुख बशीर के चेहरे पर स्पष्ट झलक रहा   था।

''I am sorry, Bashir.'' खुले दिल से बशीर से माफी माँगकर आते हुए दत्त की ओर इशारा करते हुए पाण्डे बोला, ‘‘देखो, वह इधर ही आ रहा है!’’

''Good morning, Dutt.'' बशीर  ने  कहा।

‘‘अरे,   आज तू यहाँ कैसे ?’’

‘‘तुझसे ही मिलने और तुझे आगाह करने आया था।’’  बशीर फुसफुसाया।

‘‘तुम और तुम्हारे सभी दोस्तों को होशियार रहना होगा। बोस और उसके दोस्त तुम पर नज़र रखे   हुए हैं। तुम्हारी हर हलचल की खबर हर घण्टे किंग तक पहुँचाई जाती है।’’

''Thanks, बशीर,  हम सब सावधान ही हैं; मगर अब और ज़्यादा सावधान रहेंगे।’’   दत्त   ने   कहा।

ड्यूटी पर गया हुआ यादव आठ बजे वापस आया - वह खान, गुरु, दत्त, मदन इन सभी को ढूँढ़ रहा था। उसके थके हुए चेहरे पर एक अजीब आनन्द था।

‘‘क्या रे,  बड़ा खुश है आज ?’’   गुरु ने पूछा।

 ‘‘पहले यह बताओ,   सब लोग कहाँ हैं ?’’   यादव।

‘‘क्यों रे,   पकड़ने वाले तो नहीं हैं ना ?’’   गुरु ने सन्देह व्यक्त किया।

‘‘बिलकुल  खास  महत्त्व  की  और  उत्साह  बढ़ाने  वाली  खबर  है।’’  यादव ने   कहा।

सभी   आजाद   हिन्दुस्तानी   बैरेक   के   पीछे   इकट्ठा   हो   गए।

‘‘हँ!  जल्दी  से  बता!’’  खान  उत्सुकता  से  कहा।

‘‘शेरसिंह ने जैसा बताया था,  उसी तरह से दिल्ली के हवाईदल की यूनिट्स में विद्रोह हो गया है।’’ यादव ने बताया। सभी आज़ाद हिन्दुस्तानी खुशी के मारे चीख पड़े। खान ने उन्हें शान्त किया।

‘‘यह  खबर  तुझे  किसने  दी ?’’  खान  ने  पूछा।

‘‘अरे, किसी के देने की जरूरत क्या है! ये कमाण्डर इन चीफ की ओर से आया हुआ सन्देश ही देख लो ना!’’ हाथ में पकड़े काग”ज को फड़काते हुए यादव  ने  कहा।

‘‘तू ही पढ़ ना,   मगर धीमी आवाज़ में!’’  ''Secret–Priority–161830—

From C-in-c.

To–R.I.N. General

= R I N G 654. Mutiny reported in Delhi units of Royal Indian Air Force. All commanding officers of the ships and the establishments are to be alert and to report the suspected incidents immediately"= यादव  ने  सन्देश  पढ़ा।

‘‘ये सीक्रेट मेसेज तुझे कैसे मिला ?’’   खान ने पूछा।

‘‘ये देख, तू बेकार में मीन–मेख न निकाल। भरोसा रख मुझ पर!’’ यादव बोला, 'Four figure coded message था। मैंने डीक्रिप्शन शुरू किया। पहला ही शब्द था ‘सीक्रेट’    मैंने पूरा मेसेज डीकोड किया और    फिर    ड्यूटी    क्रिप्टो    ऑफिसर को   सूचित   किया।’’

''Well done! शेरसिंह ने इसके बारे में बताया ही था। मगर गुरु,  तुझे याद  है,  सब  लेफ्टिनेंट  रामदास  ने  जो  ख़त  दिखाया  था ?  उस  ख़त  पर  तारीख नहीं थी,  किसी के भी हस्ताक्षर तक नहीं थे। उस ख़त    में सरकार को यह चेतावनी दी गई थी कि यदि सैनिकों में व्याप्त असन्तोष को दूर करने की दिशा में प्रयत्न नहीं किए गए तो सेना में गड़बड़ी फैल जाएगी, सेना विद्रोह कर देगी। तुझे याद है, उस ख़त की अन्तिम तारीख 15 फरवरी थी।’’ दत्त ने याद दिलाई।

‘‘हमें रामदास पर विश्वास करना चाहिए था।’’ गुरु ने पछतावे से कहा।

‘‘अरे, मुम्बई के मरीन लाइन्स के हवाईदल के सैनिकों ने सात तारीख का जो  विद्रोह  किया  था,  उसकी  जानकारी  हमें  मिली  ही  नहीं।’’  मदन  ने  कहा,  ‘‘कल हवाईदल   का   एक   जवान   बता   रहा   था।’’

‘‘इससे एक बात स्पष्ट है। सैनिक विद्रोह करने की मन:स्थिति में है। वे विद्रोह कर भी रहे हैं और सरकार हर सम्भव तरीके से विद्रोह को दबा रही है।’’ खान ने परिस्थिति का विश्लेषण किया।

‘‘‘अरे,  मगर  इन  हवाईदल  के  यूनिट्स  को  हुआ  क्या  है ?  वे  सब  एक  होकर विद्रोह   क्यों   नहीं   करते ?’’   दास   ने   पूछा।

''Lack of communication'' मदन ने जवाब दिया।

‘‘ऐसे छोटे–छोटे विद्रोहों से क्या हासिल होने वाला है ?’’ पाण्डे ने सन्देह व्यक्त किया।

‘‘इन दबाए गए, असफल विद्रोहों में ही अगले विद्रोह के बीज होते हैं। असफल विद्रोह भी साम्राज्यवाद की जड़ पर किया गया प्रहार होता है और हर घाव  साम्राज्यवाद  को  जर्जर  करने  का  काम  करता  है।’’  खान  समझा  रहा  था।

‘‘अब हम अपने दिल्ली स्थित नौसैनिकों के जरिये हवाई दल के सैनिको को सूचित करें कि अब पीछे न हटना। हम तुम्हारे साथ हैं। आज बारह से चार वाली ड्यूटी में दिल्ली को यह सन्देश भेजने की ज़िम्मेदारी मेरी। नाश्ते के बाद मदन  और  गुरु  शेरसिंह  से  मिल  कर  आएँगे।  और  आज  छह बजे के बाद हम मिलेंगे। कोई भी बाहर नहीं जाएगा।’’


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