तीन दिन भाग 9
तीन दिन भाग 9
तीन दिन
भाग 9
आज पंद्रह अगस्त का दिन था। देश की आजादी का दिन! लेकिन दुर्भाग्य से मैत्री ग्रुप के कुछ सदस्य दुनिया से आजाद हो गए थे। सदाशिव और ललिता की मौत ने सभी को झकझोर कर रख दिया था। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे! गुंडप्पा ने चंद्रशेखर के साथ फिर दरवाजा तोड़ने की बाबत विचार किया और दोनों एक साथ किले में कोई लोहे की सरिया ढूंढने लगे जिससे दरवाजे के कब्जे उमेठे जा सकें! दूसरी तरफ सुदर्शन और सुरेश चौरसिया भी ऐसी ही कोई चीज तलाशने निकले।
बहुत सावधान रहना दोस्तों! पीछे से रमन ने चिल्ला कर कहा। उन्होंने सहमति में सर हिलाया और दो दिशाओं में बढ़ गए।
कई कमरों में तलाशने के बाद भी कोई काम की चीज नहीं मिली। फिर गुंडप्पा और चंद्रशेखर उस कमरे में पहुंचे जहां झाँवरमल को कैद किया गया था और वह निकल भागा था और उत्पात मचा रहा था। गुंडप्पा ने सावधानी पूर्वक खिड़की से बाहर का मुआयना किया बाहर सन्नाटा था। सिर्फ हवा चलने की सांय-सांय की आवाज आ रही थी। बाहर झांकते समय गुंडप्पा को खिड़की के नीचे एक ऐसी हौज नुमा जगह नजर आई जहाँ काफी काठ कबाड़ पड़ा हुआ था वहाँ उसे अपनी इच्छित वस्तु मिलने का भरोसा हो गया। उसने चिल्लाकर चन्द्रशेखर को बुलाया जो दूसरे कोने का निरीक्षण कर रहा था। चंद्रशेखर ने भी जब आकर देखा तो वह भी उत्साहित हो गया। वे दोनों फ़ौरन बाहर निकल कर बारादरी से होते हुए लंबा चक्कर लगाकर पिछवाड़े के हौज के पास पहुंचे जो खिड़की के बिलकुल नीचे था और कबाड़ हटाने लगे। कुछ सामान हटाते ही उन दोनों को ऐसा झटका लगा जो बिजली के पचीस हजार वॉट से कतई कम नहीं था। कबाड़ के नीचे झाँवरमल सोनी मृतप्राय अवस्था में पड़ा हुआ था। उसके बदन पर केवल चड्डी और बनियान थे। उसके आभूषण भी उसके बदन से गायब थे। उसके हाथ पाँव एक रस्सी से बुरी तरह बंधे हुए थे और उसके मुंह में भी कपड़ा ठुंसा हुआ था। वह जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहा था। चंद्रशेखर और गुंडप्पा समझ ही नहीं पाये कि जब झाँवर यहाँ कैद था तो बाहर लोगों की हत्या कौन कर रहा था? झाँवर के मुंह से हलकी हलकी कराह निकल रही थी और वह पानी पानी बुदबुदा रहा था। उसे देखकर लग रहा था कि वह कल से ही उस अवस्था में पड़ा हुआ था। इन दोनों ने उसे बाहर निकाला और चंद्रशेखर उसके हलके फुल्के बदन को कंधे पर लाद कर हॉल में पहुंचा। उन्हें देखते ही सभी लोगों को मानो लकवा सा मार गया। स्त्रियां भयभीत होकर कांपने लगीं। डॉ मानव दौड़कर उनके पास पहुंचे और झाँवर की जांच करने लगे। उसे लिटाकर मुंह में पानी टपकाया गया। अब झाँवर में थोड़ी चेतना का संचार हुआ। शोभा पानी का लोटा उसके होठों से लगाकर खड़ी थी उसने घटाघट कई घूंट पानी के पिए पर डॉ मानव ने तुरन्त शोभा का हाथ दूर हटा दिया और कहा ,ऐसी अवस्था में अधिक पानी भी घातक होगा। पेट पूरी तरह खाली होगा इसका। फिर डॉ ने आगे कहा, यह कई घंटे इसी अवस्था में रहा है। इसे किसी एकांत और गर्म जगह पर ले चलना चाहिए। तुरंत झाँवर को गर्म कमरे में ले जाया गया। थोड़ी चेतना आने पर वह डाक्टरी इमदाद की बाबत बुदबुदाने लगा। डॉ मानव ने उसके माथे पर हाथ फेरते हुए उसे सांत्वना दी। बाहर सभी इस बारे में चर्चा कर रहे थे कि जब झाँवर की यह हालत थी तो खूनी कौन है? शोभा और मानव भीतर झाँवर की तीमारदारी कर रहे थे। अब झाँवर होश में आता तभी रहस्य से पर्दा उठ सकता था। डॉ मानव के पास उनका मेडिकल बैग नहीं था तो वे हाथ मल रहे थे। अचानक झाँवर ने उनकी कलाई पकड़ कर कहा डॉक्टर! डॉक्टर!! पर आगे वह कुछ न कह सका। शायद उसकी हालत बिगड़ रही थी। कमजोरी उस पर बुरी तरह हावी थी। डॉ ने शोभा से गरम पानी की पट्टी लाने को कहा। वह दौड़ी गई पर वहाँ पानी गर्म करने और पट्टी लाने में कुछ देर लगी। जब वह पट्टी लेकर सुदर्शन के साथ कमरे में दाखिल हुई तो उसने देखा कि झाँवर की हालत बहुत बिगड़ चुकी थी। उसकी सांस रुक रही थी डॉ मानव उसकी नाक दबाये उसे अपने मुंह से श्वास देने की चेष्टा कर रहे थे पर वे असफल रहे। झाँवर की जिंदगी की बारीक डोर टूट चुकी थी।
इसके बाद सभी हॉल में जमा हुए तो एक दूसरे को भारी संदेह से घूर रहे थे। झाँवरमल तो संदेह से बरी हो चुका था और अब सभी जानते थे कि उनमें से ही कोई व्यक्ति कातिल था। पर कौन?
कहानी अभी जारी है .......
कौन था कातिल?
क्यों की उसने इतनी हत्याएं
जानने के लिए पढ़िए भाग 10