Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

लच्छी बुआ

लच्छी बुआ

6 mins
16.6K


 

"मोनू! ज़रा मेरे लिए एक आम और लेते आओ!" ज्यों ही नींद में करवट बदलते हुए लच्छी बुआ के मुँह से ये शब्द निकले, त्यों ही पास खेलती बच्चों की टोली खिलखिला के हंस पड़ी|
बुआ सकपका के उठ बैठीं और डाँटते हुए बोलीं-"क्यूँ दाँत निकाल रहे हो तुम सब?"
सोनू ने मोनू को देखा, मोनू से नीतू को और नीतू ने वापस सोनू को देखा; फिर हंसते हुए बढ़ा चढ़ा के बोली-" बुआ आप सपने में हम से चार लड्डू, दालमोठ, मठरी, और आम की फरमाइश कर रहीं थीं|" और इससे पहले की बुआ उनको चिढ़कर फटकार लगाती, वे सब वहाँ से रफूचक्कर हो गये|
ये वाक़या रोज़ का था|ज्यों ही गर्मी की छुट्टियाँ होतीं, लच्छी बुआ अपने मायके आ धमकती थीं| स्वाभाव से इतनी लालची कि उनके पेटूपन के क़िस्से जितने गिनाए जायें उतने कम| दिन भर अपनी जीभ की सेवा करतीं और रात में सोते वक़्त भी खाने के सपने देखतीं| पूरा समय इनकी नज़र खाने पर होती और बच्चों की इन पर|

नाश्ते की टेबल हो या खाने की; कोई भी चीज़ ऐसी नहीं बच सकती थी जिसे लच्छी बुआ ना चखे | बिस्कुट हो या बरफी, पेठा हो या कतली, उन्हे तो सब चाहिए| और तो और अगर दालमोठ की प्लेट उनसे दूर रखी हो तो वह व्याकुल सी मचलने लगती जब तक वो उनके हाथों में ना आ जाए- और एक बार हाथों में आ गयी फिर क्या कहना? फिर तो वो
खाली ही वापस जाएगी|

उनके नाक के नथुनो में खाने की सुगंध अति शीघ्र पहुँचती है| घर में माँस बना है की मछली-ये तो वह मसालों की छौंक से दूर बैठे ही भाँप लेती हैं| आज तो कुछ ऐसा व्यंग हुआ की बच्चे तो बच्चे घर के बुजुर्गों ने भी दांतो तले उंगली दबा ली|
हुआ कुछ यूँ की लच्छी बुआ का सुबह से ही जी मिचला रहा था- शायद अधिक गर्मी की वजह से या फिर अधिक भोजन हजम ना कर पाने की वजह से| सुबह से बिस्तर पर पड़ी थी पर उनका मन तो विचरण करने में लगा था| तबीयत ठीक करने के लिए कभी नीबू के शरबत की गुहार लगाती तो कभी इलायची की| बच्चे तो मानो तंग आ गये थे इनकी सेवा करते करते|

फिर जब एक पहर बीता और चौके से मछली पकने की सुगंध हवा में तैरती हुई लच्छी बुआ तक आ पहुँची तो एकाएक उनकी तबीयत हरी हो उठी| तपाक से उठ बैठी और चौके में पहुँचने के बहाने ढूँढने लगीं| "भाभी ! कुछ मदद करा दूँ?"इतना कहने में लच्छी बुआ ने उतना वक़्त लगा दिया जितने में पूरा खाना बन के तैयार हो चुका था और अब बस रोटियों में घी लगना बाकी था|

ज्यों ही सब की थाली सजने लगी, त्यों ही लच्छी बुआ ने लपक कर नाप तोल कर सबसे अधिक भरी कटोरी अपनी ओर खींच ली तथा नज़रें चुराते हुए अपनी रोटियों में ढाई- तीन चम्मच घी उडेल लिया| उनकी ये हरकत तो कोई ना देख पाया लेकिन उसका नतीजा ये हुआ की सबके हाथों से होती हुई घी की शीशी जब बेचारी भाभी के पास पहुँची तो उसमे से सकुचती हुई घी की दो चार बूंदे ही उनकी रोटी पर टपक सकीं| ऊपर से लच्छी बुआ का ये कहना "भाभी! हमारी एक रोटी में घी लगना रह गया! ", भाभी को तीर की भाँति चुभ गया| 
इसके बाद खाने की टेबल पर क्या हुआ इसका सारान्श तो बस इतने में ही काफ़ी है -कि खाने का दौर खत्म होने तक लच्छी बुआ आठ रोटी, दो कटोरी मछली, तथा इतना चावल हजम कर चुकी थीं कि टेबल पर बैठे सभी सदस्य हैरान थे कि कुछ घंटों पूर्व क्या वाकई लच्छी बुआ की तबियत नासाज़ थी या सिर्फ उनको ऐसा वहम हुआ था|

***
गर्मी के दिन हैं- कभी शर्बत बनता तो कभी आम ही कट के आ जाता! बच्चे-बड़े सभी मस्त हैं | रात को हल्का खाने की दृष्टि से खिचड़ी बनाई गयी जिसे खाकर सभी अब कूलर - ए.सी. की हवा में सोने की तैयारी में अपना बिस्तर लगा रहे हैं पर लच्छी बुआ को चैन कहाँ? उनके मन में तो खयाल कुछ इस प्रकार हैं -

'पेट भर गया जीभ नहीं…
अभी तो दूध भी पिया नहीं…
नज़्रें चुराऊँ, खुद को छुपाऊँ…
आखिर फ्रिज तक कैसे जाऊँ?'

घर में सभी लोग तो सो गये , अब किसे पता कि लच्छी बुआ फ्रिज तक पहुंची भी या नहीं? -बच्चे अभी इस सवाल का जवाब ढूँढ ही रहे थे कि जवाब मिल गया| हुआ यूँ कि भाभी ने सुबह  सब को जब चाय के लिये पूछा तो आश्चर्यजनक बात ये हुई कि लच्छी बुआ ने "मन नहीं है" कहकर मना कर दिया| बाद में इनके इंकार की वजह सामने आयी तो गुस्से से भाभी ने दूध का भगोना ही फेंक दिया-दूध तो दूध उसमे से मलाई तक चट थी!

ये सब बच्चों ने देखा तो माँ पर बड़ा तरस आया| 'आज तो लच्छी बुआ को सबक सिखाना ही पड़ेगा'- ये ठान कर बच्चे चुप-चाप एक योजना बनाने में जुट गये |

बेमन से भाभी ने जैसे तैसे सुबह का नाश्ता बनाया और फ़िर दादाजी के लिये सूप बनाने की तैयारी में लग गयीं | चौके में बर्तन खनकने की आवाज़ हुई तो लच्छी बुआ कुछ खाने की इच्छा से इधर उधर मंडराने लगीं | सुबह दूध को लेकर जो कान्ड हुआ, उसके बाद से तो भाभी के दिमाग का पारा वैसे ही चढा हुआ था, सो लच्छी बुआ की हिम्मत न हुई कि नाश्ते में पांच पराठे, तीन केले और मैंगो-शेक पीने के बाद अब भाभी से और कुछ माँग सकें | विवश सी वो चौके के बाहर झटपटा रहीं थीं- एक मौके की तलाश में, कि भाभी बाहर जायें और वो डिब्बों में सजे लड्डू, मठरी और दालमोठ पर धावा बोलें! और फ़िर लजीज़ सूप भी तो इनका इंतज़ार कर रहा था |

तभी इनकी नज़र मोनू  पर पड़ी जो आँगन में बैठकर बड़े मज़े से लय्या चना खा रहा था | फिर क्या था ? लच्छी बुआ ने मोनू को अपनी गोद में उठाया और उसे दुलारने के बहाने खुद लय्या चना का लुत्फ उठाने लगीं|

इधर भाभी ज्यों ही चौके से एक गिलास सूप लेकर दादाजी के कमरे में गयीं, त्यों ही सोनू और नीतू लाल मिर्च का डिब्बा लेकर चौके में दाखिल हुए और बचे हुए सूप में पूरा डिब्बा उडेल दिया| बच्चों का पीछा करते करते कुछ देर बाद लच्छी बुआ नज़रें बचाते हुए सयानी बिल्ली की भाँति चौके में आयीं और मुस्कुराते हुए सूप का भगोना मुँह से लगा लिया! 
उसके बाद तो जैसे घर में कोहराम सा मच गया! लच्छी बुआ चिल्लाते हुए चौके से भाग के आँगन में आयीं तो सब इकट्ठा हो गये!  कोई शहद लेकर दौड़ता तो कोई गुल्कन्द! कोई चीनी फांकने की सलाह देता तो कोई मिठाई लिये खड़ा था! पर लच्छी बुआ थीं कि किसी चीज़ से शांत ना हों| आखिरकार चार चम्मच शहद, चार चम्मच गुल्कन्द, आठ चम्मच चीनी और कुछ आठ दस टुकडे मिठाई खाने के बाद मामला कुछ शांत हुआ | तब तक बच्चे रोते हुए अपना गुनाह कुबूल कर चुके थे और बड़ो की डाँट चुपचाप सुनते हुए लच्छी बुआ से माफ़ी मांग रहे थे |

एक घंटे बाद जब भाभी चौके में वापस गयीं, तो सूप के भगोने के पास खाने वाले लाल रंग के डिब्बे को रखा देखकर बेहोश गिर पड़ी | मुँडेर पर खड़ी लच्छी बुआ के हाथ में अब भी एक मिठाई का टुकडा था जिसे वो मुस्कुराते हुए अपनी जीभ को भेंट दे रहीं थीं| बच्चों की नदानी पर उन्हे तरस भी आता और अपनी जीत पर फक्र भी!

***

 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Comedy