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Asmita prashant Pushpanjali

Inspirational

5.0  

Asmita prashant Pushpanjali

Inspirational

स्नेह

स्नेह

1 min
443


रेल गाड़ी के सफर में, किन्नरों का होना कोई नई या बड़ी बात नही. लेकिन उस किन्नर की बात ही कुछ और थी जो दिल को छू गयी।

भिड़ से खचाखच भरे रेल के डिब्बे मे पाँव धरने को भी जगह न थी, धूपकाले की धूप भी सर पर आग बनकर बरस रही थी।

और इस भिड़ मे पूरे डिब्बे में एक बच्चे की किलकारी ज़ोर ज़ोर से घूम रही थी, सारे यात्रीयों का उस बच्चे के रोने पर ध्यान केंद्रीत था, और अचानक डिब्बे मे ताली बजाते हुये, दस दस के नोट हाथों की उंगलियों के बीच अंगूठी के समान धर कर किन्नरों की टोली चढ़ आयी।

पूरी भिड़ को चिरते हुये किन्नर आगे बढ़ने लगे और उनमें से एक उस बच्चे कि माँ के पास जाकर,

"क्यो री। बच्चे को चुप कराना नही आता दे मुझे।"

और बच्चे को गोदी मे उठाते हुये, "हाय हाय, इसकी तो हसलीया निकल आई दे तेल दे। थोड़ी मालीश कर दूँ। देख बच्चा कैसा शांत होता है"

तेल मालीश का असर था, या बगैर माँ बाप बने किन्नर के हाथों का जादू, या उसके दिल मे बहती बच्चे के प्रती ममता, स्नेह का परिणाम, पर बच्चा दो पल मे ही चुप हो, माँ की गोदी मे शांत सो गया।


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