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वो दिन

वो दिन

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कैंब्रिज पब्लिक विद्यालय मैं मेरा नामांकन वर्ग नौवीं में हुआ था। उस दिन मैं बहुत सहमा सा था। हर वक्त मेरे दिमाग में एक ही बात चल रही था, कि वहां के बच्चे कैसे होंगे, वहां की ढंग व्यवस्था क्या होगी और शिक्षकों का व्यवहार कैसा होगा? स्कूल के अंदर जाने से पहले मैंने अपनी आंखें बंद करके भगवान को याद किया था। अंदर जाने के बाद रूम नंबर गिनते गिनते चला जा रहा था, अंत में मेरा वर्ग मिल ही गया। जब मैं अंदर गया तो सबसे पहले मैंने एक दफा सारी बेंच को देखा और फिर सबसे अंतिम बेंच पर बैठ गया। मुझे पता था कि कोई मुझे अपने साथ नहीं बैठने देगा क्योंकि हम आसानी से किसी नए बच्चे को अपने दल में शामिल नहीं कर लेते हैं। पहले हम उसे जानते हैं, परखते हैं, उसके बारे में सोचते हैं, तब कुछ करते हैं। कुछ ही क्षणों में पूरा वर्ग बच्चों से भर चुका था। मैं डर रहा था कि यहां के शिक्षक कैसे होंगे। पिछले स्कूल में तो मैं अपने वर्ग का कप्तान था और साथ ही साथ मेरी गिनती तेज विद्यार्थियों में होती थी। पर यहां मेरे साथ क्या होगा? कौन होगा यहां पर , जो इस वर्ग का सबसे तेज बच्चा होगा। समय बीतने के बाद जब शिक्षक आए तो उन्होंने मुझसे कुछ सवाल किए जैसे कि मेरा नाम , मेरा पता, मेरे पहले विद्यालय की जानकारी और भी बहुत कुछ । बहुत सारे शिक्षक आए आज पूरे दिन ।पूरे दिन मैं एक साधारण सा बच्चा रह गया। मैं वह मौके को तलाशते रह गया जिस मौके से मैं अपनी पहचान बना सकूं। लेकिन पहले दिन ही मैं अपनी पहचान न बना पाया। हां उस विद्यालय का यानी उस वर्ग का सबसे तेज विद्यार्थी अनिकेत रावत था। अगर मुझसे पूछा जाए तो वह उतना भी तेज नहीं था, जितना कि लोग उसे समझते हैं। मुझे इंतजार है उस दिन का जब मेरी पहचान उससे काफी अलग और मेरी वैल्यू उससे काफी ऊपर होगी।


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