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प्रायश्चित

प्रायश्चित

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सुबह के दस बजे थे । इंद्र देव ने अपना रौद्ररूप धारण कर रखा था। पांच दिनों की अनवरत वर्षा ने मुंबई शहर की रफ्तार को रोक दिया था।लोग अपने घरों में कैद होने को मजबूर हो गए थे।

50 वर्षीय संगम लाल जी अपनी विशाल कोठी के पोर पोर्टिको में उदास बैठे हुए शून्य में टकटकी लगाये बैठे हुए थे। उनकी आंखों में पछतावे के आंसू थे। अपने जिगर के टुकड़े को भूख से बिलखते हुये देख उनकी आंखों के सामने उनके अपने बचपन के चित्र चलचित्र की तरह चलने लगे थे।

उसके बाबू मजदूर थे। कभी जाते तो कभी शराब पीकर पड़े रहते। वह खाने पीने के बहुत शौकीन थे। मछली का शोरबा और भात बहुत पसंद करते थे। जिस दिन मजदूरी मिली उस दिन ऐश नहीं मिली तो फांके...

अम्मा बहुत सुंदर थी।वह खूब सजधजकर रहतीं... हाथों में लाल चूड़ियां, माथे पर बड़ी सी बिंदी, होठों पर लाल लिपस्टिक, पूरी छम्मक छल्लो लगती थीं।बाबू उन पर शक करता था । अम्मा को सजने संवरने के.लिए पैसा चाहिए होता ,जब उसे नहीं मिलता तो दोनों मे जोरदार झगड़ा होता ।

एक दिन बाबू ने उसकी खूब पिटाई की तो उसका माथा फूट गया था और बहुत खूश निकला था। वह जोर

जोर से रोता रहा था। उसकी अम्मा उसे छोड़ कर किसी दूसरे के साथ भाग गई और बाबू दूसरी औरत को ले आया था। उसके बाबा ने उसे एक ढाबे वाले के हाथ बेच दिया।वह दिन भर भूखा प्यासा काम करता और जरा सी गल्ती होने पर पिटता रहता।

एक दिन एक दयालु सेठजी आये और उसे अपने संग ले गए। छः आठ महीने तो ठीक रहा फिर एक दिन उन्होंने उसकी छोटी सी गल्ती पर पिटाई कर दी। बस गुस्से में वह एक दिन उनकी तिजोरी से रकम चुरा कर भाग निकला। वह लगभग 12 वर्ष का हो चुका था।

वह भाग कर मुंबई आ गया कुछ दिनों ऐश करता रहा और जेबकतरे के गैंग में शामिल हो गया था। उसने मन ही मन निश्चय कर लिया कि उसे येनकेन प्रकरेण पैसा कमा कर अमीर बनना है। एक दिन वह पुलिस के हत्थे पड़ गया और जेल मेंं पहुंच गया।

जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही वह यहां वहां हाथ पैर मारने लगा था। कहावत है.. जहाँ चाह वहाँ राह मिल ही जाती है..

वहाँ पर उसकी मुलाकात बलराज से हुई थी जो खुद क्रिमिनल था, वह ऐसे गैंग का मेम्बर था जो जमीन के कागजात की हेराफेरी किया करता था।वह भी उसी की तरह साम दाम दण्ड भेद से धनी बनने का सपना देख रहा था। बस दोनों एक और एक मिलकर ग्यारह हो गए।

दोनों के शातिर दिमाग को आगे बढने का रास्ता सूझ गया था।

उन दोनों ने अपनी टीम बनाई और वन विभाग की जमीन पर कब्जा करके जंगल के हरे भरे पेड़ों को काटकर प्लेन बना कर सोसायटी के प्लान का ऐड करके पैसा इकट्ठा करना शुरू कर दिया।

पहाड़ियों को काटने के लिए डायनामाइट का भी इस्तेमाल किया।पानी की जरूरत को पूरी करने के लिए

धरती माता के हृदय पर बड़ीबड़ी मोटर्स लगा कर रात दिन जल का दोहन करते रहे..हाय रे मनुष्य की लालच का कोई अंत नहीं... मलबे को नदी में फेंक फेंक कर नदी के मार्ग को बदलते समय एक क्षण के लिए भी नहीं सोचा कि प्रकृति भी कभी रौद्र रूप धारण कर सकती है। बहती हुई नदी की धारा को मोड़ कर उसे नाले के रूप में परिवर्तित करके विशाल भू खण्ड पर अपने लिए आलीशान कोठी बनाने की योजना बनाई....

दिन रात बड़े बड़े ट्रकों ,ट्रैक्टर, मशीनों, गाड़ियों का कानफोड़ू शोर शराबा,तोड़ा फोड़ी, विशाल ऊंचे ऊंचे सीमेंट के जंगल खड़े करने के लिए उपयोग में आने वाले उपकरणों के द्वारा होने वाले ध्वनि प्रदूषण से पूरा माहौल प्रदूषित हो गया था।

वहाँ काम करनेवाले मजदूर खांसते खांसते बेहाल हो जाते,बहुतों को लंग्स की बीमारी हो जाती तो वह बेमुरौव्वत होकर उनकी छुट्टी करके न ई भर्ती कर लेते।

जब भी सरकारी विभागों का कोई नोटिस आता तो उसके जवाब में उन लोगों की मुट्ठी गरम कर मामले को रफा दफा कर देते और कंस्ट्रक्शन का काम निर्बाध चलता रहा था।

देखते ही देखते मल्टी स्टोरीड बिल्डिंग, क्लब हाउस, विला,पेंट हाउस, स्विमिंग पूल,बच्चों के लिए पार्क,...सच कहा जाये तो जंगल में मंगल छा गया और एक आधुनिक शहर बस गया।

संगम लाल से अब वह एस. लाल. बिल्डर्स के बेताज बादशाह बन गए थे। उनकी कंस्ट्रक्शन कंपनी का नाम विदेशों तक पहुंच गया था।उनके मन मेंं श्रेष्ठता का भाव पैदा हो गया था।वह गरीबों से घृणा करने लगे थे।पैसे के घमंड में इंसान को इंसान नहीं समझते थे।

जंगल कटने के कारण प्रदूषण बढता गया, ऐसी स्थिति हो गई कि लोगों का सांस लेना मुश्किल हो गया था।लेकिन वह तो अपनी रंगीन दुनिया के ख्वाबों मेंं ख्वाबों में डूबे हुए थे।

शहर में जब भी पर्यावरण बचाओ ,रैली का आयोजन होता तो अपनी पब्लिसिटी के लिए ऑक्सीजन मास्क लगा कर अपने मजदूरों की टीम को प्रदर्शन में भाग लेने के लिए भेजकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लिया करते थे।

सरकार की नीतियों का विरोध करना और उनके नियमों का उल्लंघन, यही हमारे धन कुबेरों की नीति और नियम है।

संगम लाल को सरकारी आदेशों की अनदेखी करके धनी बनते देख उनका अनुसरण करके उन जैसे दूसरे भी पैसा कमाने की दौड़ में शामिल होते गए और सीमेंट के जंगल खड़े होते चले गए थे।

परंतु प्रकृति भी आखिर कब तक मनुष्य के शोषण और अत्याचार को सह पाती, उसने भी अपना रौद्ररूप धारण कर लिया था।वर्षा का अमृत जल प्राणलेवा बन चुका था।

शहर के निचले इलाकों में पानी भर गया था, नालों का गंदा पानी लोगों के घरों की दो मंजिलों को डुबा चुका था।जनजीवन मुश्किलों में था।रोज मर्रा के सामान की भारी किल्लत हो रही थी। बच्चे दूध को तरस रहे थे। चारों तरफ हाहाकार सा मचा हुआ था और लोग सरकारी मदद की आस लगाए बैठे थे।

उनका गोल्डेन महल, उनका ऐश्वर्य, संपत्ति, धन दौलत उन्हें मुंह चिढाती प्रतीत हो रही थी।वह निगाहें घुमा कर बेल्जियम के बेशकीमती झूमर, कीमती पेंटिंग, गोल्डेन मीना कारी वाली क्राकरी, मानो आज सब उनकी बेचारगी पर ठहाके लगा रहे हों।वह यहाँ वहाँ फोन घुमाते रहे थे परन्तु सरकारी संस्थायें.. एन डी आर एफ,सेना भरसक कोशिश में लगे थे लेकिन...

प्रकृति के इस रौद्र रूप के कारण वह मजबूर, बेचारे बने हुए अपने जिगर के टुकड़े को दूध के लिए रोते तड़पते, बिलखते हुए दो दिन से देख रहे थे।

तभी शोर मचा कि सरकारी मदद वाली नाव दूध के पैकेट और अन्य खाद्य सामग्री लेकर आई है।अपने लाडले के दूध के लिए छटपटाहट देखकर वह अपना मिथ्या अभिमान, दौलत का गुरूर भूल कर कीचड़ से सने कपडों में वह लाइन में लग गए थे।उसी लाइन में उनके सभी काम वाले लगे हुए थे।

उनके मन कादंभ,दुर्भाव,श्रेष्ठता का अभिमान अपने नन्हें के आंसुओं के साथ ही बह गया था।

अपने कर्मों का फल समझ कर वह पश्चाताप कर रहे थे।

उन्होंने प्रकृति और पर्यावरण के साथ जो खिलवाड़ और अन्याय किया है।उसी की नाराजगी ने आज उन्हें उनकी हैसियत दिखा दी थी।

उन्होंने निश्चय किया कि वह अपनी सारी दौलत वृक्षारोपण अभियान, हरियाली बचाओ, पर्यावरण को शुद्ध बनाने के लिए अपना तन मन धन कुछ न्यौछावर कर देंगे।


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