स्टार्टअप
स्टार्टअप
दो कप चाय देना भैया, चाय की थड़ी पर कुर्सी एक तरफ खिंचते हुए रितेश ने कहा।
रितेश लगभग हर शाम अपने दोस्त पुनीत के साथ यहाँ चाय पीने आया करता है। रितेश और पुनीत अच्छे दोस्त हैं और एक ही राजा की सताई हुए प्रजा भी, मतलब साथ काम भी करते हैं। क़रीब पांच मिनट के इन्तजार के बाद गर्मागर्म चाय तैयार थी।
"दो तीन दिन से आये नहीं आप, कही बाहर गये थे क्या?" चाय हाथ में पकड़ाते हुए चाय वाले ने पूछा।
"जाएंगे कहा भैया, ऑफिस में ओवर टाइम कर रहे थे।" चाय की चुस्की लेते हुए पुनीत ने कहा।
चाय की चुस्की के साथ दोनों ऑफिस की परेशानियों के बारे में बात करते और चाय के खत्म होते-होते "नौकरी छोड़ दूंगा यार मैं" तक पहुँच जाते और फिर अपने स्टार्टअप की प्लानिंग् करने लगते, अब ये नियम सा बन गया था।
"रितेश, यार इस बार फिर कुछ पैसे नहीं बचे, ऐसे तो हो गई अपने स्टार्टअप के लिए सेविंग्स।"
"यार इतनी-सी सैलरी में कहा कुछ हो पाता है, और फॅमिली से भी पैसो का कोई सपोर्ट नहीं।"
अपनी असफलता को पैसो की कमी का जामा पहनाते हुए दोनों ने आज भी इन्ही सब बातों के साथ चाय खत्म की।
"अरे, आज राजू कहीं दिखाई नहीं दे रहा, चाय देने गया है क्या कहीं?" पैसे देते हुए रितेश ने पूछा।
"नहीं भैया, राजू अब कभी नहीं आएगा यहाँ"
'राजू' बारह-तेरह साल का दुबला पतला सा लड़का, बाप को कैंसर निगल गया था, माँ आस पड़ोस के घरों में खाना बनाती थी और वो चाय की दूकान पर काम करके अपने घर और छोटी बहन की पढ़ाई का खर्च उठाने में माँ का हाथ बटा रहा था। पढ़ने का बहुत शौक़ था उसे, चौथी तक पढ़ाई भी की फिर बाप के चले जाने के बाद सब छूट गया। हर शाम जैसे ही रितेश और पुनीत चाय पीने पहुँचते तो "गुड इवनिंग भैया" बोल कर अभिवादन करता था। अंग्रेजी बोलने का बड़ा शौक़ था उसे, अपनी टूटी फूटी अंग्रेज़ी से वो सभी का मन जीत लेता था। अक्सर शाम को जब भी खाली समय होता था तो वो इन दोनों के पास आकर बैठ जाता और बड़े ध्यान से उनकी बातें सुनता। कुछ दिनों पहले टाइफाईड हो गया था उसे, तब से और ज़्यादा कमज़ोर हो गया था।
रितेश और पुनीत के लिए राजू पहले तो एक आम बच्चे की तरह ही था पर जब दोनों को राजू के हालात के बारे में पता चला तो दोनों के मन में उसके लिए एक सॉफ्ट कार्नर बन गया था।
राजू अब कभी नहीं आएगा, ये सुनकर दोनों के होश उड़ गए आँखों के सामने राजू का चेहरा और कानों में "गुड इवनिंग भैया" की आवाज़ गूंजने लगी।
"अरे भैया, टेंशन की कोई बात नहीं है, बस राजू थोड़ा-सा पगला गया है।" चाय वाले ने कहा।
"हुआ क्या है? पूरी बात बताओ" रितेश ने उतावलेपन से पूछा।
"राजू ने अपनी चाय की थड़ी लगा ली है।"
क्या!!!
ये बात सुनकर रितेश बिलकुल चौंक गया था।
"कब लगाई? कहाँ लगाई? आपको समझाना चाहिए था ना उसे, बच्चा ही तो है, इतनी समझ कहा है उसमे अभी।"
भैया कल ही लगाई है। हम बहुत बार समझाए पर वो कहाँ किसी की सुनने वाला है। बस धून सवार हो गई, ख़ुद की थड़ी लगानी है। थोडा डांट दिए तो गुस्से में चला गया और बोला की अब कभी नहीं आऊंगा यहाँ। बहुत रोकने की कोशिश की पर माना नहीं वो।
आप मुझे बताओ कहाँ लगाई है उसने थड़ी, मैं जाकर बात करता हूँ उस से।
"यहाँ से दो गली छोड़ के, कॉलेज वाली गली के नुक्कड़ पर।"
इतना सुनते ही रितेश ने बाइक उठाई और पुनीत के साथ निकल गया और ढूंढते हुए पहुँच गया राजू की थड़ी।
चार बांस के डंडो और रस्सी से बंधा तिरपाल, लकड़ी की एक पुरानी टेबल पर एक तरफ स्टोव पर रखा पतीला और दूसरी तरफ रखे कुछ चाय के गिलास। बैठने के लिए कुछ टीन के डिब्बे और दो प्लास्टिक के स्टूल और ग्राहकों का इन्तज़ार करता राजू। उसके चेहरे पर उदासी की लकीरें साफ़ दिखाई दे रही थी, थड़ी पर एक भी ग्राहक नहीं था शायद इसीलिए उदास था।
रितेश और पुनीत को देखते ही राजू के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
"अरे भैया, गुड इवनिंग। मुझे पता था आप जरूर आओगे, चाय बना दूँ ना?"
"नहीं," रितेश ने गुस्से में कहाँ।
पहले बता ये क्या किया तूने? तेरी उम्र नहीं है अभी ये सब करने की, एक बार पूछ लिया होता। कम से कम बता तो दिया होता। कुछ तो सोचा समझा होता... रितेश की बातों में राजू के लिए चिंता साफ़ झलक रही थी।
सब कुछ सोच रखा है भैया, राजू ने बात काटते हुए कहा।
"क्या सोच रखा है बता? और कैसे करेगा ये सब? कहाँ से आई ये बात तेरे दिमाग में" रितेश के लहज़े में डाटने वाला भाव था।
आपसे ही तो सीखा है, आप और पुनीत भैया हमेशा यही तो बात करते रहते हो की यार नौकरी में मजा नहीं है कुछ अपना काम शुरू करना है। बस वहीँ से मेरे दिमाग में भी ये बात आ गई। आप लोगो के बिजनेस प्लान सुन-सुन के मैंने भी अपनी थड़ी लगाने के बारे में सोच लिया। थोडा-थोडा पैसा बचाने लगा अपनी थड़ी खोलने के लिए और आठ महीने में ये सब कुछ इकठ्ठा कर लिया।
"और अगर थड़ी नहीं चली तो क्या करेगा सोचा है? घर कैसे चलाएगा?" रितेश के सवालों की बारिश अभी भी चालू थी।
हाँ सोचा है ना, एक महीने का घर खर्च अलग से बचा रखा है और फिर भी नहीं चली तो वापस किसी चाय वाले के यहाँ काम कर लूंगा।
"मेरे पास खोने को और कुछ तो है नहीं"
रितेश आश्चर्य से राजू को देख रहा था और सोच रहा था कि इतनी सी उम्र में कैसे इस बच्चे ने इतना सब कुछ सोचा और करके भी दिखाया। आज रितेश उसके हौसले के आगे अपने आप को छोटा महसूस कर रहा था। दोनों साल भर से अपनी नाकामी को जीन बहानों से छुपाए बैठे थे वो सब एक मिनट में बेमाने से हो गए थे।
रितेश और पुनीत दोनों ने बड़े कॉलेज से MBA किया था, प्लानिंग्, बजटिंग, रिस्क मैनेजमेंट की मोटी-मोटी किताबे पढ़ी थी पर फिर भी खुद का स्टार्टअप शुरू नहीं कर पा रहे थे और राजू बिना पढ़े ही ये सब कुछ सीख गया था। दोनों आज मन ही मन राजू पर गर्व कर रहे थे और अपने आप को नाकामी के लिए कोस रहे थे।
क्या सोचने लग गए भैया, सब कुछ आप लोगों से ही तो सीखा है, अब तो चाय बना लूँ ना? राजू ने रितेश और पुनीत की तरफ देखते हुए कहा।
हाँ हाँ बना ले पर पहले एक सिगरेट पिला, कितनी टेंशन दे दी फालतू ही। सिगरेट मांगते हुए पुनीत ने कहा
सिगरेट नहीं है भैया, राजू ने कहा।
क्यों? सिगरेट क्यों नहीं है, चाय से ज़्यादा तो सिगरेट बिकती है। ये तो सबसे पहले रखनी चाहये थी ना।
मैं सिगरेट नहीं बेचूंगा भैया,
(पुनीत कुछ और पूछ पाता उस से पहले ही राजू बोल पड़ा)
"पापा सिगरेट पीते थे, इसीलिए कैंसर हो गया था और हम सब को छोड़ कर चले गए" इतना कहते ही राजू की आँखों में नमी आ गई।
पहले जब थड़ी पर किसी को सिगरेट पकड़ाता था तो ऐसा लगता था मानो उनकों किश्तों में मौत बाँट रहा हूँ ।
राजू की इस बात के बाद वहाँ एक ख़ामोशी सी छा गई थी और फिर राजू चाय बनाने लग गया।
राजू की समझ उसकी उम्र से कही ज़्यादा थी। किसी ने सही कहा है "जिम्मेदारियां इंसान को वक़्त से पहले समझदार बना देती है।"
जहाँ एक और आज पूरी दुनिया में लोग अपने स्टार्टअप को सक्सेसफुल बनाने के लिए सही गलत सब हथकंडे अपना रहें है वही दूसरी और राजू ने पैसो की कमी और तमाम विषम परिस्थियों के बावजूद भी पैसो का लोभ भुला कर सही गलत के बीच फैसला किया था।
ये सिर्फ एक बच्चा ही सोच सकता है क्योंकि उम्र के हर एक बढ़ते साल के साथ इंसान के दिल की अच्छाइयों को पैसो के लालच का दीमक खाता जाता है। आजकल लोग दिल में दिमाग लिए घुमते हैं, जो फैसले दिल के होते है उनमें भी नफा नुकसान पहले देखते है तो धंधे में सही गलत की परवाह किसे है।
आज दुनिया का हर स्टार्टअप राजू की इस छोटी-सी थड़ी के आगे छोटा लग रहा था। राजू की सोच और हौसले के आगे दोनों नतमस्तक हो गए थे।
राजू अब चाय लेकर आ चूका था।
"ये लो भैया राजू स्पेशल चाय" दोनों को चाय का ग्लास पकड़ाते हुए राजू बोला।
चाय सच में राजू स्पेशल थी क्योंकि उसकी चाय सिर्फ दूध, पानी, शक्कर और चाय पत्ती से नहीं बनी थी उसमें मेहनत, ईमानदारी, हौसला और अच्छाई एकदम बराबर मात्रा में थी।
"राजू चाय बहुत ही अच्छी बनी, मज़ा आ गया" रितेश ने चाय का खाली कप एक तरफ रखते हुए कहा।
अपनी तारीफ़ सुनकर राजू के चेहरे पर संतुष्टि भरी मुस्कान आ गई थी।
दोनों चाय पीकर उठे और रितेश ने पैसे देने के लिए जेब में हाथ डाला, एक आख़री पांच सौ का नोट बचा था फिर भी बिना कुछ सोचें राजू के हाथ में थमा दिया।
"भैया खुल्ला नहीं है मेरे पास पांच सौ का" राजू ने कहा
खुल्ले मांगे किसने हैं, कल से तो वैसे भी तेरी ही थड़ी पर आना है, एडवांस समझ के रख ले।
"और हाँ हिसाब ठीक से रखना" रितेश ने हँसते हुए कहा।
राजू को आज अपनी थड़ी के पहले परमानेंट कस्टमर्स मिल गए थे या यूँ कहो की सफलता की पहली सीढ़ी पर उसने कदम रख दिया था।
"रितेश, तुझे नहीं लगता की आजतक हमने जितने स्टार्टअप्स के बारे में सुना है राजू की ये थड़ी उन सब में सबसे अलग है?" बाइक स्टार्ट करते हुए पुनीत ने पूछा।
"शायद कुछ लोग इसे स्टार्टअप माने ही ना, क्यूंकि उनके लिये स्टार्टअप के मायने अलग ही होते है पर मेरी नज़र में ये स्टार्टअप ऑफ़ द इयर या यूं समझ ले बेस्ट स्टार्टअप एवर" रितेश ने जवाब दिया
अगले दिन राजू की थड़ी पर कांच की कुछ बरनियों में नमकीन, बिस्कुट और फेन रखे थे साथ ही एक पतली सी रस्सी पर कुछ चिप्स और नमकीन के पैकेट टंगे थे। आज उसकी थड़ी की सिर्फ एक स्टूल खाली थी। राजू अपने स्टार्टअप के साथ उड़ान भरने को तैयार था उसकी मेहनत रंग लाती दिख रही थी।
अब करीब एक साल बाद राजू की थड़ी की हालत बिलकुल बदल चुकी हैं, स्टोव् की जगह गैस का चूल्हा हैं। टीन के डिब्बों की जगह प्लास्टिक की कुर्सियां हैं। टॉफी, चॉकलेट, कोल्ड ड्रिंक, नमकीन, बिस्कुट और ज़रूरत का हर छोटा मोटा सब सामान राजू कि थड़ी पर मिल जाता है पर अब भी सिगरेट और गुटका उसकी थड़ी पर नहीं मिलता हैं। और आज भी रितेश और पुनीत हर शाम राजू की थड़ी पर चाय की चुस्की लेते हुए अपनी नौकरी से परेशान अपना स्टार्टअप शुरू करने की बातें करते रहते हैं।