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पागल

पागल

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स्मिता और उसकी सहेली निशा आज हाॅस्पीटल की ड्यूटी पूरी कर शहर के मेघदूत उपवन में कुछ पल सुस्ताने आई थी। सायं चार-पांच बजे का वक्त हो रहा था। दोनों सहेलियां शहर के भण्डारी हाॅस्पीटल में नर्सिंग का कोर्स कर रही है और अन्य शहर से होकर इसी हाॅस्पीटल के हाॅस्टल में रहती है। उवपन में बैठने के लिए समुचित स्थान तलाशती उनकी आँखो एक कोने में रखी छायादार बेंच पर पड़ी। बेंच पर पुर्व से ही एक युवक बैठा था। उसके हाथों में एक किताब थी। वह उसे ही पढ़ रहा था। बेंच पर अभी दो व्यक्ति और बैठ सकते थे। धुप की तपन के बीच स्मिता और निशा ने बिना वक्त गंवाये उस बेंच की ओर पैदल ही दौड़ लगा दी।

मई का महिना चल रहा था। चारों ओर तपन ही तपन थी। गार्डन में छायादार पेड़ शीतल हवा बरसा रहे थे। गार्डन की जमीन पर माली द्वारा अभी-अभी छिड़काव किये गये पानी की ठण्डक असीम सुख का अनुभव करवा रही थी। यदाकदा बहुत से लोग झुण्ड में वृझों की छाया में सुस्ता रहे थे। लोगों के कुछ झुण्ड गपशप में व्यस्त थे तो बच्चों की टोली मस्ती-मजाक में लगी थी।

"मे आई सीट हीयर?" स्मिता ने शिष्टाचार वश बेंच पर पुर्व से बैठे उस युवक से बैठने की अनुमति मांगी।

"ऑsssफकोsssर्स! प्लीsssज हेव सीsssट।" सौरभ ने अटक-अटक के जवाब दिया।

स्मिता और निशा बेंच पर बैठ गये। उन्हें सौरभ को देखकर आश्चर्य हुआ। सौरभ की उम्र और उसका व्यवहार कदापि मैच नहीं खा रहा था। एक नर्सिंग की छात्रा होने के नाते प्रारंभिक तौर पर दोनों ने सौरभ को देखकर यह अनुमान लगा लिया कि सौरभ को कुछ मेन्टली प्राॅब्लम तो अवश्य है।

"हाय आई एम समायरा और लोग मुझे प्यार से स्मिता बोलते है!" मिलनसार प्रवृत्ति वाली स्मिता ने सौरभ से बातचीत शुरू की।

"हाय आsssई एम सौsssरभ और मुझे सब प्यार से सब पागल बोलते है!" सौरभ ने सीधे-सीधे अपना परिचय देते हुआ कहा।

"व्हाट? आई मीन लोग आपको पागल क्यों कहते है?" निशा ने आश्चर्य प्रकट किया।

"क्योंकि मैं पागल हुं इसलिए लोग मुझे पागल कहते है। एक्चूली कुछ लोगों और डाक्टर्स का कहना है कि मेरा शरीर बड़ा हो गया लेकिन मेरा दिमाग अभी बच्चा है।" सौरभ ने अपने पागल कहलाने का कारण बताया।

"लेकिन आप हमें कहीं से बच्चें नहीं लगते। आप तो पुरे मैच्योर लगते है।" स्मिता ने सौरभ का मनोबल बढ़ाया।

"शुरू-शुरू में सभी यही कहते है। फिर कुछ समय बाद वह भी मुझे पागल कहने लगताे है जो पहले मुझे पागल कहना नहींचाहताे थे।" सौरभ ने किताब को बंद करते हुये कहा।

"क्या मतलब" निशा ने जानना चाहा।

"मतलब ये कि लोग शुरूआत में मुझ पर सहानुभूति रखकर मेरे दोस्त बन जाते है। फिर धीरे-धीरे जब वे मुझे समझ जाते है तब मुझे पागल कहे बिना नहीं रहते।"

सौरभ ने स्पष्ट किया।

स्मिता स्तब्ध हुये बिना नहीं रह सकी।

"फिर तो आपको बहुत बुरा लगता होगा न?" स्मिता ने पुछा।

"पहले-पहल लगता था। फिर धीरे-धीरे पागल सुनने की आदत सी गई। अब बुरा नही लगता।" सौरभ ने बताया।

"ऐसा क्यों।"

"क्योंकि मैं अब यह जान चुका हूं की पागल सिर्फ़ मैं ही नहीं हूं। दुनियां में हर कोई पागल है। कोई अपने कॅरियर को लेकर पागल है तो कोई फैमली के लिए। कोई कुर्सी के पीछे पागल है तो कोई किसी के प्यार में पागल है" सौरभ ने हँसते हुये कहा।

स्मिता और निशा भी हँस पड़ी।

"लेकिन एक बात बताऊं, यहां हर कोई किसी न किसी कारण से पागल है। और एक मैं हूं जो बिना किसी खास रिजन के पागल है।" सौरभ की बातें स्मिता के मन में घर करती जा रही थी। निशा यह नोट कर रही थी की स्मिता, सौरभ में कुछ ज्यादा ही रूचि दिखा रही है।

"लेकिन अब मुझे इस पागलपन में मजा आने लगा है। और मैं बहुत खुश हूं अपने इस पापागलन से।"

सौरभ ने कहा।

"क्यों? क्या आप सामान्य व्यक्तियों की तरह व्यवहारिक होना नहीं चाहते। आई मीन•••" स्मिता बोलते-बोलते रूक गयी।

"मैं समझ गया कि आप क्या कहना चाहती है। वो सामने बैठी पिंक ड्रेस में बैठी उस लड़की को देख रहे है आप लोग?"

"हां" दोनों ने एक साथ जवाब दिया।

"वो लड़की हर तीसरे दिन किसी नये लड़के के साथ यहां आती है। खूब सारी बातें करती है। मस्ती-मजाक करती है। और उसके साथ जो लड़का है न ! वह भी आये दिन किसी न किसी दुसरी- तीसरी लड़की के साथ यहां आता है। मतलब दोनों एक-दूसरे को झूठ बोल रहे है। चीट कर रहे है। और चीटिंग करना तो बुरी बात है न?" सौरभ बोल रहा था। स्मिता मन्त्रमुग्ध होकर सौरभ की बातें सुन रही थी।

"आप लोग सामने डेसिंग पर्सनालिटी में खड़े उस नौजवान को देख रही है? जो कुछ लोग से बातें कर रहा है? सौरभ ने पुछा।

"ओहsss ही इज सो हाॅट" निशा ने धीमें स्वर कहा।

"ऐsss चुप।" स्मिता ने निशा को धीरे से डांटा। 

"हां देख रहे है। कौन है वो?" स्मिता ने पुछा।

" ही इज माय एल्डर ब्रदर करण। अपनी रियल एस्टेट कम्पनी के फ्लैट्स सेल करने की स्कीम लोगों को समझा रहे है। पचास तरह के झुठ बोल रहे है।"

दोनों सहेली कभी सौरभ को और कभी करण को देखे रही थी।

"और आपके एक रियल बात बताऊं?" सौरभ ने आगे कहा- "आप किसी से कहना मत, उस रियल एस्टेट कम्पनी जिसमें करण भैया, जाॅब करते है के मालिक फ्राड केस में जेल की हवा खा रहे है।" सौरभ धीमे से हंसते हुये बोला।

दोनों सहेलीयां भी हँस पड़ी।

"माॅम-डैडी कहते है झुठ नहीं बोलना चाहिए लेकिन जब उनके ऑफिस से कोई फोन आता है तब वे दोनों कई तरह के झूठ बोलते है।" सौरभ ने बोलना जारी रखा।

"लेकिन थोड़ा-बहुत झुठ तो चलता है न सौरभ?" निशा ने कहा।

"नहीं निशा। झुठ••झूठ होता है थोड़ा या ज्यादा नहीं होता। और फिर यदि झूठ बोलना इतना जरूरी है तो बड़े-बुजूर्गों ने पहले ही स्कूलों में, घरों में बच्चों को ये क्यों नहीं सिखाया? वे लोग अपने बच्चों से कह सकते थे कि थोड़ा-बहुत झुठ बोल सकते है, इतना चल सकता है। मगर उन्होंने ऐसा कुछ न सिखाया और नहीं कभी बताया। बल्कि वे तो सदैव सिखाते रहे की झूठ बोलना पाप है और नदि किनारे सांप है और झूठ बोले कौवा काटें। वगैरह-वगैरह।" सौरभ भावुक होकर बोला। " इसलिए मैं अपने पागलपन से खुश हूं। क्योंकि मैं अन्य आम आदमीयों की तरह छल-कपट से रहित हूं। और इसका मूझे जरा भी घमण्ड नहीं है।"

निशा झल्लाकर बोली- "आपसे तो बातें करना मतलब sss" कहते-कहते निशा चुप हो गई।

"बोलिये-बोलिये मुझसे बातें करने का मतलब एक पागल से बात करने के बराबर है न? आप यही कहना चाहती थी न? देखा आपने भी मान लिया और कहे बिना मुझसे ये कह भी दिया की मैं पागल हूं।" सौरभ बीच में बोल पड़ा।

"अरे नहीं-नहीं निशा का यह मतलब नहीं था।" स्मिता निशा की बातों को ढांकते हुये बोली।

"मुझसे झूठ छिपता नहीं स्मिता। और इसमें कोई नई बात नहीं हैं। निशा ने वहीं कहा जो उसके मन में था और मैनें वहीं कहा जो मेरे मन में था। और होना भी वही चाहिए कि हमें अपने-अपने मन की बात जुबान पर लानी चाहिए। मुहं में कुछ और बगल में कुछ हो, ऐसा कभी नहीं होना चाहिए। झूठ से रिश्तों में कुछ पल का ठहराव अवश्य आता है लेकिन सच का एक हल्का कंकर गिरते ही ठहरे हुये रिश्तें नुमा पानी में ऐसी हलचल पैदा होती है जिससे रिश्तों में कड़वाहट हमेशा के लिए घुल जाती है ।" सौरभ आगे बोला--

"रहीम जी ने भी कहा है-

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकांये

टूटे से फिर न जुड़े , जुड़े गांठ पड़ी जाये।"


"लेकिन हम जिससे प्यार करते है अगर उसके लिए झुठ बोल भी दिया तो यह तो अच्छे काम के लिए झुठ बोलना हुआ न? कहते है की किसी को जान बचाने के लिए बोला गया झूठ, झूठ नहीं होता। जैसे कि तुम्हारे भैया तुम्हारे ब्राइट फ्यूचर के लिए थोड़ा-बहुत झुठ बोलकर पैसा कमा रहे है। आखिर यह सब तुम्हारे और तुम्हारी फैमली के लिए ही कर रहे है न वो?" स्मिता बोल पड़ी।

शाम हो चुकी थी। हल्का-हल्का अंधेरा होने लगा था। करण अपना काम समेटकर सौरभ के पास आया। सौरभ ने अपने भाई का परिचय स्मिता और निशा से करवाया। स्मिता के प्रश्न का समुचित उत्तर फोन पर देने का वादा कर सौरभ अपने भाई करण के साथ हल्के कदमों से लहराते हुये अपने घर की ओर चल दिया। स्मिता सौरभ को तब तक जाते हुये देखती रही जब तक वह उसकी आँखों के सामने से ओझल नहीं हो गया।

हाॅस्टल के रूम में बैड पर लेटे-लेटे स्मिता सौरभ के विषय में विचार करते-करते सो गई। फोन पर सौरभ से उसकी बात होने लगी। निशा को यह अच्छा नहीं लगा। उसने स्मिता को समझाया कि सौरभ की भावनाओं से खिलवाड़ न करे। लेकिन स्मिता का कहां मानने वाली थी। स्मिता ने अपने ह्रदय में उमड़ते हुये तुफान को बमुश्किल दबाने की असफल कोशिश की। 

"तु पागल है स्मिता। मुझे लगता सौरभ सही है और उससे बड़ी पागल तो तु है।" निशा ने चिढ़ते हुये कहां। स्मिता बाॅथरूम से नहाकर कर बाहर आई। वह टॉवेल से सिर के बालों सुखाते हुये बोली- "पागल लोग ही प्यार करते है निशा। तेरे जैसा फ्लर्ट नहीं करते।" स्मिता ने व्यंग कसा।

"फ्लर्ट?" निशा चौकी।

"और नहीं तो क्या! सौरभ के भाई करण से तेरा क्या सचमुच वाला प्यार चल रहा है? तु उससे और वह तुझसे फ्लर्ट ही तो कर रह है न?" स्मिता बोली।

"करण और मेरी बात अलग है। हम दोनों समझदार है। अपना भला-बुरा जानते है। लेकिन सौरभ••सौरभ एक मेन्टली चैलेंजर है। उसे धोखा देना बहुत बड़ा गुनाह है स्मिता। तु समझती क्यों नही?"

निशा चिखी।

"मैंने कब कहा कि मैं उसे धोखा दूंगी।" स्मिता सस्पेंस बनाते हुये बोली।

"यु आर इंग्गेज स्टूपीट। तेरी सगाई हो चुकी है। डॉक्टर अविनाश तुझे कितना प्यार करते है। अब क्या तु उन्हें चीट करेगी ?" निशा मुंह बनाते हुये बोली।

"मैं किसी को चीट नहीं करूंगी डीयर। मैं बस सौरभ को एक चैलेंज की तरह लेकर उसे पुरी तरह ठीक करने का वादा कर रही हूं अप आप से।"

स्मिता बोली।

"ये सब इतना आसान नहीं है स्मिता। ये तो आग से खेलने के जैसा है। कहीं ऐसा न हो सौरभ के चक्कर में तु अपना भविष्य खराब कर ले। तु समझ रही है न मैं क्या कहना चाहती हूं?" निशा ने अपनी चिंता स्मिता को बता दी।

स्मिता ने तो जैसे संकल्प ले लिया था सौरभ को स्वस्थ करने का। नर्स होने के कारण उसने सौरभ के जैसे पुर्व प्रकरण का विस्तार से अध्ययन किया। गुगल की सहायता ली। कुछ नामी-गिरामी डाक्टर्स को सौरभ की फाइल दिखाई। उसने सौरभ को अपने साथ ले जाकर कुछ डाक्टर्स से मिलवाया भी। आगरा के प्रसिद्ध मनोचिकित्सालय के चक्कर भी लगाये। डाक्टर्स के बताये ट्रीटमेंट को सौरभ पर अप्लाई किया। अपने प्रति स्मिता की इतनी चिंता देखकर सौरभ को भी जल्दी स्वस्थ होने की लालसा जाग उठी। उसने हेल्थ जीम में कड़ी मेहनत करना शुरू कर दिया। सुबह की दौड, व्यायाम, योगा और समय पर सभी दवाई का कोर्स स्मिता के निःशुल्क निर्देशन में करते-करते एक वर्ष का समय व्यतीत हो गया। सौरभ की कद-काठी में और उसके व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन अवश्य आये थे किन्तु स्मिता इससे संतुष्ट नहीं थी।

अपने प्रयासों को और भी अधिक तेज करते हुये स्मिता ने अपना और सौरभ का विजा बनवाया। अमेरीका के प्रसिद्ध एक न्यूरोसर्जन डाक्टर को दिखाने उन दोनों ने भारत से अमेरिका के लिए उड़ान भरी। स्मिता ने अपनी वर्षों की सेविंग जो उसके द्वारा जमा की गई पाॅकेटमनी थी को सौरभ के इलाज पर व्यय किया। करण से फाइनेंशियल मदद अस्वीकार कर वह अमेरिका से लौटकर सौरभ को बेंगलुरु ले गयी। बेंगलुरु से केरल पहुंचकर वह सौरभ के मेडीकल ट्रीटमेंट में व्यस्त हो गई।युवावस्था के प्रारंभ में तेजी से उत्तेजित शरीर के विभिन्न तरह के हार्मोंस के असंतुलन के कारण सौरभ विचलित हो उठता था। शरीर की आन्तरिक अस्थिरता और ऊथल-पुथल को सामान्य करने से सौरभ को स्वस्थ करने में प्रभावी सहायता मिल सकती थी। और इसका प्रभावी उपचार सौरभ की शादी करवाना डाॅक्टर ने स्मिता को सुझाया था। स्मिता भलीभाँति ये जानती थी सौरभ से विवाह करने कोई भी लड़की तैयार नहीं होगी। बहुत विचार के उपरांत स्मिता ने सौरभ से केरल में ही शादी कर ली। सौरभ पत्नी के रूप में स्मिता को पाकर खुश था। दोनों ने पति-पत्नी के रूप में छः माह केरल में व्यतीत किये। छः माह के व्यस्त और थकाऊ ट्रीटमेंट्स के बाद जब वे दोनों इंदौर लौटे तो निशा और सौरभ के परिवार के लोग दोनों को देखकर आश्चर्यचकित थे। स्मिता की मांग सिंदूर से भरी थी। और गले में सौरभ के नाम का मंगलसूत्र था। सौरभ पहले से अधिक स्मार्ट और अधिक सहज ,सामान्य दिखाई दे रहा था। स्मिता ने अपना चैलेंज पुरा कर दिया था। स्मिता अपनी विजयी मुस्कान सभी को दिखा रही थी। करण और बाकी परिवारजन सौरभ को स्वस्थ और स्मिता को सौरभ की पत्नी के रूप में देखकर प्रसन्न थे। 

स्मिता के त्याग और समर्पण के आगे सभी नतमस्तक थे। एक असंभव सा दिखने वाला सौरभ का प्रकरण आज हल हो चुका था। मेडिकल जगत में स्मिता एक जाना-पहचाना नाम बन गई थी। कई प्रतिष्ठित हाॅस्पीटल से उसके लिए उसकी बताई गई सैलरी पैकेज की डिमांड पर जाॅब के प्रपोजल आने लगे थे। सौरभ, स्मिता से बहुत प्रेम करने लगा था। इतना प्रेम की स्मिता उसे पल भर न दिखे तो वह बैचेन हो जाता। सौरभ की यही चिंता अपने लिए देखकर स्मिता के मन में डर घर कर गया।

स्मिता अपने मंगेतर डाॅक्टर अविनाश से उनके हाॅस्पीटल में जाकर मिली। जहां से दोनों अविनाश की कार में लंच के लिए शहर के होटल की ओर निकल पड़े। अविनाश के चेहरे पर स्मिता के लिए नाराज़गी साफ-साफ देखी जा सकती थी। उसे विश्वास में लिये बगैर स्मिता ने सौरभ से शादी जो कर ली थी। स्मिता ने उन्हें स्पष्टीकरण दिया कि यह सब उसने केवल सौरभ को स्वस्थ करने के लिए किया था। सौरभ से शादी करना भी उस नाटक का एक हिस्सा था। सौरभ अब ठीक हो चुका था। सो वह सौरभ को सबकुछ बताकर कोर्ट में तलाक की अर्जी दाखिल करेगी। सौरभ से आपसी सहमती वाला तलाक लेकर स्मिता अविनाश से शादी कर लेगी।

अविनाश का मौन स्मिता के मन में हजारों सवाल छोड़ गया। जिस डर की छाया स्मिता ने सौरभ के साथ रहकर अनुभव कर ली थी वही डर आज अविनाश के चेहरे पर पढ़कर वह विचलित हो गई। वह हाॅस्टल लौट आई।

अगले दिन जो घटित हुआ वह हैरान कर देने वाला था। सौरभ ने अपने फ्लेट के पांचवे माले से कूदकर जान देने की कोशिश की थी। वह भण्डारी हाॅस्पीटल के इमर्जेंसी वार्ड में एडमिट था। स्मिता के द्वारा बताई गई सच्चाई वह बर्दाश्त नहीं कर सका। नगर से गुजरते हुए जिन लड़को के समूह के आगे स्मिता को पत्नी के रूप में पाकर जो सौरभ फुलां नहीं समा रहा था, स्मिता का उसे छोड़कर चले जाने से आज उन्हीं युवाओं की टोली सौरभ का मखौल उड़ाती हुई उसकी स्मृति में बार-बार दिखाई दे रही था। स्मिता से दुरी सह न सकने के कारण उसने आत्महत्या करने की कोशिश की थी।

डॉक्टर अविनाश सौरभ का ईलाज कर रहे थे। स्मिता को सौरभ के इस कदम झकझोरा दिया। आत्मग्लानि वश उसने स्वयं को हाॅस्टल के कमरे में बंद कर लिया। निशा से स्मिता की यह हालत देखी न गई। उसने डॉक्टर अविनाश को स्मिता के व्यवहार में आये परिवर्तन को बताया। अविनाश खुद आकर स्मिता से मिले और उसे ढांढस बंधाया। साथ ही सौरभ को उसकी कितनी जरूरत है यह समझाया। अगर स्मिता उसके पास रहे तो वह जल्दी रिकवर कर सकता है अलबत्ता उसकी जान को बहुत खतरा है क्योंकि सौरभ ने जीने की आशा बिल्कुल ही छोड़ दी है। उसे मजबूरन बेड पर रस्सीयों से बांध कर ट्रीटमेंट दिया जा रहा है क्योंकि यदि उसे स्वतंत्र कर देते है तो स्वयं को हानी पहूंचाने की कोशिश करता है। और वह ऐसी कोशिश कितनी ही बार कर चुका है। करण पहले-पहल स्मिता को अपने भाई से किये गये दुर्व्यवहार के लिए हानि पहुंचाना चाहता था लेकिन जब उसे पता चला कि सौरभ का वास्तविक ईलाज स्मिता ही है तब वह स्मिता के पैरों पर गिरकर अपने भाई की सलामती की भीख मांगने लगा। स्मिता की अन्तर आत्मा जाग उठी। एक पेसेन्ट के लिए सबकुछ कर गुजरने वाली स्मिता को नर्सिंग कोर्स में सिखाये गये सभी सबक एक-एक कर याद आते गये। मरीज को स्वास्थ्य लाभ देने की हरसंभव कोशिश का उसके द्वारा लिया गया का संकल्प आज उसे पुनः याद आ गया। अपनी अलमारी में रखा सौरभ के नाम का मंगलसूत्र स्मिता ने पुनः गले में धारण किया। अब ये कोई स्वांग नहीं था। बल्की एक वास्तविकता थी। माथे पर बिंदी और सिर की मांग कुमकुम से भरकर अपने पति सौरभ की जान बचाने के लिए वह हाॅस्पीटल की ओर तेज कदमों से चल पड़ी।



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