घर-घर की कहानी
घर-घर की कहानी
राकेश ने ऑफिस से लौटते समय फोन करके बताया कि वह आज देर से लौटेगा क्योंकि गाँव से माँ और बाबूजी आ रहे हैं।
इतना सुनने के बाद तो सुनीता ने कुछ और सुनने की जरूरत नहीं समझी और बड़बड़ाते हुए फोन काट दिया।
सुनीता घर में बड़बड़ा रही थी कि माँ और बाबूजी को इतना भी नहीं समझता कि गरमी के दिनों में हाल के बेहाल होते हैं।
यहाँ इन दिनों पानी का संकट चल रहा है, बच्चों की परीक्षा सर पर है और तो और सारा दिन और रात का समय पानी के इंतजाम में बीत रहे हैं। गाँव में कम से कम चैन से रह रहे थे।
कुछ देर बाद घर के सामने ऑटो के रूकने की आवाज़ आयी। सुनीता ने दरवाजा खोला तो अपने माता-पिता को घर के सामने देखकर खुशी से दोहरी होने लगी...सारा गुस्सा काफूर हो गया।
सुनीता बोली - 'आपने बताया भी नहीं कि आप लोग आ रहे हैं।
माता-पिता बोले-' तुम्हारे फोन पर कोशिश तो किया था, लेकिन बात नहीं हो सकी, तो हमने दामाद को फोन लगाया।
अब सुनीता ने पलटकर वही सवाल अपने पति राकेश से किया कि आपने मुझे बताया ही नहीं।
राकेश बोला - 'तुमने मुझे अवसर ही कहाँ दिया, अपनी पूरी बात कहने का...