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Jyotsna Sharma

Abstract

5.0  

Jyotsna Sharma

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यह कैसा प्यार

यह कैसा प्यार

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ज़माने में अजीब अजीब प्रेम कहानियाँ देखने को मिलती हैं , ऐसी ही एक कहानी से रूबरू होने का मौक़ा मिला ।

कुछ महीनों पहले एक यात्रा के दौरान बगल वाली सीट पर एक युवती अकेले ही यात्रा कर रही थी और मैं भी अकेली ही थी , थोड़ी देर में हवाईजहाज़ उड़ने वाला ही था और हम दोनो ने अपनी कमर पेटी कस ही ली थी की उसने फ़ोन किया और लगा मानो बहुत उत्साहित होकर उसने फ़ोन मिलाया था उसके चेहरे के भावों को मैं चुपचाप पढ़ रही थी , हम गुवाहाटी जा रहे थे और मेरी बेटी साथ ना होने की वजह से मैं गुमसम सी उसे ताक रही थी , भूल गयी की कहीं उसे एहसास करा दिया है मैंने , तभी उसके चेहरे पर से ख़ुशी के रंग बदलने लगे, मानो किसी ने उसे डाँट दिया है ।

वो कुछ कह रही थी "कहाँ थे आप "? मैंने कितना पूछा कितना जानना चाहा, मुझे चिंता हो रही थी .. तभी उसने फिर बोला तो क्या करूँ ? नहीं मन माना..

वह बेचारी रुआंसी सी हो गई , और जब उसने भाँपा कि मैं यह सब देख रही हूँ उसने अपने आँखों से आते हुए आँसू को थाम लिए । मैं समझ गई कि किसी ने उसे डाँटा है और वह शर्म से झेंप गई ।
मैंने मुँह घूमाकर खिड़की की तरफ़ देखने का प्रयास किया तभी उसने कहा अपना ख़याल रखिएगा Love you , और फ़ोन रखते ही फफक फफ़क कर रोने लगी , मुझसे और देखा ना गया ;( मैंने पूछ ही लिया क्या आप ठीक हैं ? उसने हामी में सिर हिला दिया । फिर कुछ देर में वह चुप हुई और हिम्मत बटोरकर कहा sorry आपको भी परेशान कर दिया ..

मैंने मुस्कुराकर उसे कहा ऐसा कुछ नहीं आप शांत हो जाएँ ,

वैसे मैं ज्योत्सना :)

उसने कहा मैं निवेदिता :। (नाम बदला हुआ है )

हुआ क्या ? मेरे पूछने पे उसने कहा कुछ नहीं , इनको फ़ोन किया , ये पुणे रहते हैं , पोस्टिंग है वहाँ ।

पूरे दिन से बात ना हुई ,तो मैं परेशान हो गई , दरर्सल मैं परेशान जल्दी ही हो जाती हूँ । जानती हूँ , ठीक ही होंगे ।

पर क्या करूँ समझ नहीं पाती कि इन्हें यूँ बार बार पूछना ठीक नहीं लगता।

मैं विस्मित हो देखती रही सुनती रही , उसने आगे कहा ये अपनी किसी फ़्रेंड के साथ थे मुझे फोन नहीं करना चाहिए था ..

गलती सब मेरी है ...

प्रेम किया मैंने , किसीने जबरदस्ती नहीं की ...

फिर रोती क्यूँ हो ? पुछा तो बोली .....

प्रेम मैंने किया , व्रत मैंने किये ! भगवान से उन्हें मैंने माँगा.. उन्होंने कभी हामी नहीं भरी ,

मूर्ख मैं , ग़लतियाँ सब मेरी ।

फिर क्यों दूखड़ा रोना ? मैंने पूछ लिया तो जवाब आया :

दर्द असहनीय हो जाए तो ये अपने आप भ जाते हैं , वरना कहानी मेरी है मैंने ही बुनी है ।

हम मिले पर मिलने की जिद्द मेरी , उनका क्या दोष?

वो तो बस हमारा मन रख रहे थे , फिर अचानक एक दिन उनका मन रूपी चेतन जाग गया और कहने लगे की मैं इनसब के लिए नहीं , तुम चली जाओ । पर मैं ही ना मानी

गलती इसमें भी उनकी नहीं , मैंने मनाया है , रातों को रो कर उनके इंतज़ार में जो तकियों को नम किया है वह भी मेरी गलती , उनको तो रोना धोना पसन्द ही नहीं । कहते हैं यह सब त्रिया चरित्र है । ...

मैं और हैरान अचम्भित हो गई , देखती रही !

और वो कहती रही सुनते सुनते यूँ खो गई मानो उस व्यथा को मैंने ख़ुद में समन्वित कर लिया हो ।

उसने कहा अब और नहीं तंग करूँगी यूँ लगता है मानो मैं एक बोझ सी हो गयी हूँ , इनकी वो सहेली ही मुझसे तो भली, जो कमस्कम इन्हें सम्हाल लेती है , बीमार होने पे दवा ला देती है , मैं तो और मर्ज़ बढ़ा देती हूँ । बस अब नहीं मैं उन्हें ख़ुश देखना चाहती हूँ कहते कहते उसने आँसू पोंछे और एक स्वर में बोली कमी कुछ नहीं है कोई भी चीज़ माँगूँ एक की जगह दस देते हैं मुझे, बस कमी मुझमें ही है । पर अब कभी बात न करने का संकल्प काफ़ी दृढ़ लग रहा था । मैंने उसे प्यार से सम्भालते हुए मुस्कुराते हुए कहा ज़्यादा मत सोचो ।

वैसे जिन महाशय के लिए आप रातों को जग रही हैं वो आपको इंतज़ार करवाके क्या करते है ?

जवाब आया हा तो मैं चौंक गई आप भी सुनिए

उन्होंने बताया की वो अपनी फ्रेंड से बतियाते हैं उन्होंने पहले ही बता दिया था ।

वह उनकी दोस्त है हर उतार चढ़ाव में उसने उनका साथ दिया है दस सालों से उन्हें सम्हाले हुए है ।

मैं तो अब आयी हूँ , दो साल ही हुए हैं मुझे तो और साथ ही यह भी की बताया उन्होंने कि वह बहुत शांत है , समझदार, सुशिल भी है ।

मैं वैसी नहीं और इसीलिए उनका दिमाग खराब हो जाता है । और सत्य है , मैं वैसी नहीं .. ।

तो तुम क्यों जागती हो ? परेशान क्यों होती हो ?

जवाब सुनिए "अरे मैं भी तो कई बन्धनों में बन्धी हूँ "

वो जानते हैं फिर भी मुझे अपने दिल में जगह दी ।

राधा न सही, मैं मीरा बनी , रुक्मणी बनी ।

मेरी अपनी परेशानिया थी जिन से जिरह करते करते कहीं मुझे वो मिल गए , और मैं उन्ही की हो ली ।

अब तक मुझे वे सशरीर मिलें ऐसी लालसा न थी , पर अब वो मेरे पूर्णरूप से हैं ।

फिर भी कहीँ लगता है प्रेम मैंने किया है , वे मात्र मेरा बोझ ढो रहे हैं । उनके पास तो उनकी प्रेयसि है , मैं कहाँ उनके लायक हूँ ।

ये सब सुनकर मैं स्तब्ध रह गई कैसा होगा वो मनुष्य जिसे कोई इतना प्यार कर रहा है। पर अपने दुःख का कारण यह प्रेमिका स्वयं को मान रही है । कैसा खेल विधाता का ,जो ये अजीब से रिश्ते गूँथ दिए है,।

* यह आज के परिवेश की एक सामान्य प्रेम कहानी है । हर वह लड़की जो जरूरत से ज्यादा झुके और जरूरत से ज्यादा प्रेम करे । इतना की स्वयं को पाँव पोंछ बना कर रख दे , और प्रेमी जूतियाँ लेकर चल दे तो भी उफ़्फ़ न करे और मिट्टी से भर जाए और एक दिन पुरानी हो जाने पर बाहर गिरा दी जाए

क्यूँ अंधा प्यार ? किसने कहा पाओ पोंछ बनने को ?

ख़ैर मेरे अंतर द्व्न्ध से बाहर निकलना तो नामुमकिन सा था उस समय परंतु उसकी कहानी पूर्ण होते होते हम दोनो रो रहे थे ;(;(

वो कैसा निर्मोही होगा मैं मन ही मन ग़ुस्से से दिल जल रहा था, कैसे यह सब ..

ख़ैर ,सफ़र यहीं तक था और हम दोनो गुवाहाटी एर्पॉर्ट पर पहुँच चुके थे

और उतरकर समान लेते हुए मैंने देखा ,इतने सब के बाद भी दूर दरवाज़े पर मुस्कुराते हुए निवेदिता फिर फोने मिला रही थी , और कहते सुनायी दिया "Sorry मेरी ही ग़लती थी मुझे माफ़ कर दीजिए ना । मैं पहुँच गई हूँ शाम को फिर फोन करूँगी "

अनायास ही मेरे चेहरे पर हँसी आगै और मुझे अपने चाचा चाची से मिलने की जल्दी थी , सो मैं उसे अलविदा कहकर चल दी .. चलते चलते यह कहना ना भूली की यह

"कैसा प्यार है "??

इस यात्रा वृतांत को मैंने एक कविता के रूप में भी ढाला है आशा है आप सभी को यह कोशिश पसंद आएगी ..निवेदिता


ये कैसा प्यार ..
ध्यान माँगो धन मिलता है

समय माँगो व्यस्तता दिखती है,

प्यार माँगो एहसान दिखाते हैं ,

कुछ पूछो तो परेशान होते है ,
समय सीमा है , वह किसी और का है

हर वक़्त वक़्त की पाबंदी है ,

वो पगली सोच रही क्या करे ?

न बोले तो घुटे बोले तो मरे

ना अपने अस्तित्व का पता ,

ना रिश्ते और न अधिकार का

अब तक यह ना पता ..

वो कौन है कहाँ है किसकी है ?

उसका कोई भी नहीं ..

वो किसिकी भी नहीं ..

बस इन्तज़ार करे मौन रहे

समय बस किसी और का

पगली जिसे अपना सोचे

उसकी अपनी पहले से है

वो तो उसपे एक बोझ है

एक फंदा है गले में पड़ा है ..

फिर भी धीर धरे

सोचे उसकी सोच है यह

इन्तज़ार करे और कुछ ना कहे ..

पर उस निर्मोही को क्या

न शब्दों का मोल ना मौन का ,

ना ख़ुशी का ना दर्द का ,

बस एहसास है किसी और का ...

जा रही पगली आज बहुत दूर वो ,

प्रिय को उसकी ख़ुशियों संग छोड़

ख़ुश रहे वो जिसका भी रहे वो ,

जिसके साथ जिसके पास है ,

जिसके लिए उसे समय ही समय है,

सम्मान ,प्यार और विश्वास है ..

जो उसका संसार है जिसका वो संसार है... " निवेदिता "


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