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लौट के गाँधी आये दिल्ली

लौट के गाँधी आये दिल्ली

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१५ अगस्त २०१८,

वैस गाँधी जी के लिए आज का समय कुछ उचित नहीं। पर सुना है मैंने, १५ अगस्त २०१८ की घटना है।अपने ये जो गाँधीजी जी है नेहरु जी के साथ लेटे हुए थे स्वर्ग में। दोनों साथ-साथ आराम फरमा रहे थे। लेटे-लेटे गाँधीजी के मन में ये ख्याल आया, जरा धरती घूम आते हैं। नेहरु जी से उन्होंने अपने दिल की बात बताई। नेहरु जी ने अपनी सहमति जताई। उन्होंने कहा बात तो ठीक है। अंग्रेज सब तो चले गए हैं हिंदुस्तान से। अब तो अपने वालों का ही राज पाट है। भारत में तो सब तो अपने ही जानने वाले है। जाइए बापू जी, दिल्ली ही घूम आइये। गाँधी जी ने निर्णय लिया। चलो चलते हैं दशहरे के समय दिल्ली। बुराई के अंत का समय ठीक रहेगा।

१४ अक्टूबर २०१८,

शाम ८ बजे: पहुँच गए है गाँधी जी। दशहरा का समय है। लाल किला के सामने बड़ी तैयारियां चल रहीं है। बड़ी चहल पहल है। आज वी.आई.पी. सब आने वाले है। रास्ते में खड़े हैं गाँधी जी अपनी लकुटी कमरिया के साथ। आँखों पे चश्मा, कमर में घड़ी और साथ मे एक बकुली लेके। अचानक नज़र पड़ती है पुलिस वाले की। बोलता है “अरे बाबा के लाठी लेके कहा जा रहे हो रास्ते में। दिखता नहीं वी.आई.पी. सब आने वाले है, रास्ता दो।"

गाँधी जी : अरे भाई ये वी.आई. पी. क्या होता है ?

पुलिस:गाँधी जी जैसा दिखते हो और गाँधी जी बनने का नाटक भी करते हो। तुम्हे भी वी.आई.पी. ट्रीटमेंट चाहिए तो गाँधी जी वाला हरा हरा नोट लाओ और चलते बनो

गाँधी जी: ये वी.आई.पी., वी.आई.पी. क्या लगा रखी है ? क्या इसीलिए स्वतंत्रता दिलाई थी हमने ? हे राम ये क्या हो रहा है ?

तभी एक आम आदमी का टोपी लगाए हुए एक पार्टी कार्यकर्ता गुजर रहा है वहाँ से, पीछे-पीछे खांसने की आवाज आती है। केजरीवाल जी खांसते हुए चले जा रहे थे।

गांधीजी पूछते है उस से: अरे भाई टोपी तो मेरी ही लगा रखी है तुमने, पर ये क्या लिख रखा है तुमने आम आदमी पार्टी, क्या है ये ?

आम आदमी पार्टी कार्यकर्ता: बड़े नौसिखिये हो, समझते नहीं, गाँधी नाम बहुत बिकता है यहाँ। देखो वहां(बी.जे.पी. और कांग्रेस कार्यकर्ता की तरफ इशारा करते हुए कहता है), देखो वहां, बी.जे.पी. और कांग्रेस वालो ने भी तो गाँधी टोपी पहन रखी है, बस कमल और हाथ का छाप लगा रखा है इन लोगों ने। समझते नहीं, गाँधी का नाम बहुत चलता है। कोई भी पाप करो, बस गाँधी का नाम ले लो सरे पाप धुल जाते है।

तभी बी.जे.पी. और कांग्रेस कार्यकर्ता भी वहां पहुँच जाते है और उनकी बात सुनने लगते हैं।

कांग्रेस कार्यकर्ता: भाई समझते नहीं, सारे काले धंधे तो यहाँ नोटों से ही होता हैं, इसीलिए तो गाँधी जी का फोटो हर नोट पे छपा होता है ताकि सारे पाप धुल जाएँ।

ये सुन बी.जे.पी. कार्यकर्ता हँसने लगता है। उनकी हंसी में बी.एस.पी. कार्यकर्ता और एस.पी. पार्टी के कार्यकर्ता भी शामिल हो जाते हैं।

भीड़ की तरफ से आवाज आती है, भाई ये सारे एक ही चट्टे-बट्टे के बने हुए हैं। इन सबकी एक ही वाणी है। काला काम करो और गाँधी जी नाम लेकर साफ़ हो जाओ।

चारो तरफ से हँसी की आवाज आने लगती है।

“आजकल एक तो गंगा है सारे पाप धुलने के लिए और दूजा गाँधी नाम। पाप करो, नाम लो गाँधी का और दमन पाक कर लो।

गाँधी जी : ये क्या पाप-पाप और पाक-पाक लगा रखा है। क्या इसी दिन के लिए मैंने संघर्ष किया था। सोचा था राम राज्य आ गया होगा यहाँ पर। पर यहाँ पे तो अजीब हाल दिखता है।

तभी शोर शराबा होने लगता है, नेताजी पधार रहे थे। पुलिस गाँधी जी को हटाने लगता है। नेताजी कार्यक्रम के तैयारी का मुआयना करने पहुँच रहे थे।

गाँधी जी: हटो हटो मुझे नेताजी से बात करनी है।

नेताजी: बात क्या है, वो कौन खड़ा है रास्ते में ?

गाँधी जी: नेता जी ये या हाल बना रहा है हाल हिंदुस्तान का ? यहाँ पे राम का नाम ही है बस। राम जी तो है ही नहीं।

नेताजी: सही है बापू जी, आइये मेरे केवल रावण को जलाने से रावण ख़तम नहीं होता। अंदर के रावण को मारना पड़ता है। रावण तो हर आदमी के दिल में बस रहा है यहाँ

नेताजी: दिख तो पूरे गाँधी जी जैसे ही हो। पर नाटक क्यों करते हो। भाई मेरा यहाँ बहुत जगह अपॉइंटमेंट है। रावण को जला के और जगह भी जाना। नाहक ही समय क्यों खराब करते हो। रास्ता छोड़ दो। जाने दो मुझे।

गाँधी जी: नहीं एक बार जहाँ खड़ा हो जाता हूँ, गन्दगी साफ़ ही करके जाता हूँ। तुम्हें इन सारी अव्यवस्थाओं को ठीक करना होगा।

पुलिस: नेताजी लगता है इसका दिमाग सनक गया है। गाँधी जी का रूप बना के अपने आप को गाँधी जी ही समझने लगा है। आप कहें तो ले जाएँ थाने इस बहुरुपिए को ?

नेताजी : जो करना है करो, मेरा रास्ता साफ़ साफ़ करो।

१२, अक्टूबर २०१६,

सुबह १ बजे:

स्थान: पुलिस स्टेशन की काल कोठरी।

गाँधी जी बंद है एक कोठरी में। सारे पुलिस वाले सो रहें है। बड़ी उदासी छाई हुई है गांधीजी के मुखड़े पे।

इतने सारे का बलिदान व्यर्थ गया। .अंग्रेज चले गए, पर लूट मार तो चल ही रही है। सोचा था मेरा नाम लेकर लोग अच्छाई की तरफ प्रेरित होंगे, पर हो क्या रहा है यहाँ, भोली भाली जनता तो लुट ही रही है यहाँ। हे राम !

तभी लॉक अप का दरवाजा खुलता है, और नेताजी दिखाई पड़ते है अपने चमचे के साथ। हाथ के इशारे के साथ नेताजी ने अपने चमचे को बाहर भेज दिया। अब गाँधी जी और नेताजी जेल की कोठरी में अकेले हैं।

अचानक नेता जी गाँधी जी के चरणों में लेट जाते हैं।

नेताजी: बापू मैंने तो आपको देखते ही पहचान लिया था। पर क्या करता सब के सामने आपको पहचान नहीं सकता था।

बापू आप तो ठहरे जन्म के ही उपद्रवी। यहाँ पे हमने आपके नाम का धंधा जमा रखा है। सब कुछ ठीक चल रहा है यहाँ।

आपने अपने ज़माने में अंग्रेजों को निकाल बाहर किया। अब जब हम लोगों का धंधा जम गया है तो फिर क्या करने पहुँच गए यहाँ। बापू अब आपकी जरुरत नहीं यहाँ पर। आप चले जाओ, जहाँ से भी आए हो।

हर ज़माने में अंग्रेज तो होते ही रहेंगे, बस मुखौटा ही बदल जाता है।

गाँधी जी आप कितन ? कितनों से लड़ोगे ?ी बार आओगे


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