नटखट
नटखट
चिड़िया की तरह पंख पसार अपना आसमां चुन दूर जा बसने पर भी मोहल्ले के शोरगुल में उन्हें कभी अकेलापन खलता न था। नन्हे नटखट बच्चे अपनी प्यारी शैतानियों से उन्हें चैन न लेने देते ।हर पल नाक में दम किये रहते थे। घर का दरवाज़ा बन्द करनें पर होने वाली शान्ति उन्हें मरघट समान लगती थी। तो एक तरह से बच्चों में ही उनकी जान भी बसती थी।सभी बच्चों की वो प्यारी दादी नानी थी।
होली का त्योहार निकट आ रहा था।बच्चों की शैतानी पर लगाम लगाने के लिये उन्होंने एलान किया कि" जो बच्चा शैतानी नहीं करेगा उसे होली पर गुझिया खाने को मिलेगी।" "दादी !दादी !हमने सुबह से कोई शैतानी नही की अब हमें गुझिया दो।"कहते हुये सबसे शैतान नन्हा नटखट फ़रमाइश करने लगा।उसकी भोली अदा पर उन्होंने उसे गुझिया पकड़ा दी।जब तक सबको दिखा कर ललचाया न जाये अकेले खाने में भी क्या मजा और साथ ही बाकी बच्चे उससे छीन न ले इससे बचने के लिये उसने गुझिया फौरन खाने की जगह बुश्शर्ट की जेब में रख ली ।और सबको दिखा व ललचा कर खाने लगा।थोड़ी ही देर में बाकी बच्चों के नन्हें हाथ उनके द्वारा सजाई नाश्ते की तश्तरियों को उनकी चौखट पर ही होली के उल्लास के साथ सफाचट कर रहे थे ।