सीप का मोती
सीप का मोती
"हैलो!"
"कौन बोल रहा है?"
"माँ ,मैं रेशमा !"
"अरे मेरी बच्ची ,अभी एक सप्ताह पहले ही तो मिल के गई थी मुझसे । इतनी जल्दी माँ की याद कैसे आ गई?"
अभी माँ कुछ और आगे कहती....,रेशमा बोली,"माँ,हमेशा के लिये आ रही हूँ।"
विवाह के तीन महीने बाद ही अभी पाँच दिन पहले ही तो तुम्हें दूसरी बार ससुराल विदा किया था..नई कार देकर,अब क्या हुआ ,ऐसा ? हाँ ,बोल?"
"माँ ,मैं पेट से हूँ !पर मेरे पति को अभी बच्चा नहीं चाहिये।उनको अब अपनी कोठी चाहिये।कहते हैं "तुम तो अपनी माँ की अकेली संतान हो ।सरकारी नौकरी में है तुम्हारी माँ !सब कुछ हमारा ही तो है।माँ ,पहले वह मुझे घर में रखने का रुपया ऐंठते थे,अब पेट में पल रहे मोती को सलामत रखने का ।"
"हाय ! मेरे रब्बा,बिटिया की किस्मत भी मेरे जैसी।"
"मैं तो नौकरी के दम पर जिंदगी काट रही हूँ ...और तुम पहाड़ सा जीवन कैसे काटोगी रेशमा ?कसूर मेरा ही है । काश ! मैंने तुम्हारी 21 साल की छोटी उम्र में प्रेमविवाह करने की जिद्द न मानी होती।