स्वरुप, दशा और दिशा
स्वरुप, दशा और दिशा
पत्नी आधे घण्टे बाद जब दुबारा कमरे में आई तो मोबाइल पर आँखे गड़ाए और ऊँगली घुमाते पति परमेश्वर जी और ठंडी हो चुकी चाय को देख आग बबूला हो गई-
''कथाकार महोदय आज तो मैं जानकर ही रहूँगी कि लघुकथा कौन सी हीरे सोने की चिड़िया है जिसके पीछे इतना दीवाना हुए हो ?"
"ऐ ! अच्छा चाय ठंडी हो गई..अभी पी लेता हूँ !" भूकंप आने के एहसास होते ही पति महोदय कप को होठों से सटा चाय सुड़कने लगे।
"अरे हमका बताई देओ कि लघुकथा का है ?"
"गागर मा सागर ! जिसमें मानस पटल पर पंच मारने या चुभोने वाली पँक्ति हो ! मतलब बंद कली जिसके आगे पीछे एक एक लघुकथा अथवा छोटी बड़ी कहानी या उपन्यास !"
"मैं भी हिन्दी पढ़ी हूँ ! ई चिड़िया का तो कभी नाम न सुनी !" पत्नी थोड़े नरम होते हुए बोली।
"लो इसको पढ़ लो ! बहुत बड़ा और महान लेखक का है।"
चौथी बार पत्नी को भी आँखे गड़ाकर पढ़ते देख पति अपनी जीत पर मन ही मन जश्न मनाते मुस्कुराया। तभी पत्नी नें अपना अस्त्र चलाया -
"ई का है जी ! ई मा तो बड़े कठिन कठिन शब्द हैं। मजाल किसी को जल्दी समझ में आ जावे !"
"यही तो है बड़े और महान लेखकों की बात ! जो कठिन शब्दों में आसान और अच्छी बातें कह जाते हैं !"
"अरे खाक अच्छी बात ! आसान शब्दों में जो कठिन और गूढ़ बातें कह जावें वही महान कथा और कथाकार हैं। कोई भी विधा किसी खास लेखक या पाठक वर्ग का एकाधिकार दिखाए तो उसका उत्थान तो सम्भव ही नहीं ! हाँ भले ही पतन निश्चित है .....बंद कली वाली बात ठीक लगी मगर कली बनने के पहले और खुलने के बाद की कहानी एकदम आईने की तरह साफ हो..ठीक एक स्त्री के सम्पूर्ण जीवन चित्त की तरह ! ईता तो समझ जाओ फिर लिखकर देखो......आज आपके डयूटी जाने के बाद मैं भी दो चार लघुकथाएँ लिख डालती हूँ। तब देखते हैं हमारी लघुकथाएँ बड़ी और महान लघुकथाएँ होती हैं कि नहीं ! ..देहात में घास छिली जरूर हूँ..गायों के लिए.. मगर हिन्दी से आइ ए फर्स्ट डिवीजन से यूँ ही नहीं पास कर गई ?"
पत्नी कहकर स्टडी रूम से चली तो गई..मगर इस विधा की पीड़ा को आज पति महोदय ने पहली बार महसूस किया । फिर लिखना शुरू कर किया..."लघुकथा; स्वरूप,दशा और दिशा !"