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इंतजार

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जब रीना का एच आर में एम बी ए कंपलीट हो गया, तब भी कालेज कैंपस से न तो प्‍लेसमेंट हुआ, और न ही सर्च करने पर मनपसंद जॉब मिली, तो उसने शहर का हास्टल छोड़ कर, अपने छोटे से कस्बे के घर की ओर रुख कर लिया। और वहाँ के एकमात्र इण्टर कालेज में जॉब के लिए आवेदन कर दिया। अब कस्बे के लोगों को कहने का मौका मिल गया। लड़की को शहर भेजा था पढ़ने के लिए, कलक्टर बना रहे थे बेटी को। अब पढा़ लिखा कर घर में बिठायें। आजकल बीटेक, एम बी ए किये वालों को भी कहीं नौकरी मिले है भला।

इधर घर वालों ने, खासतौर से पापा ने उसकी शादी के लिए लड़का ढूँढना शुरू कर दिया, लेकिन एडी़ चोटी का जोर लगाने पर भी बेटी के लायक कोई लड़का नहीं मिला। कहीं पर दहेज की माँग, तो कहीं पर लड़का उनकी बेटी के हिसाब से पढा़ लिखा नहीं। वैसे भी उनकी बिरादरी में इतना पढा़ लिखा लड़का मिलना तो बडा़ मुश्किल ही था। खोजने पर भी जब दूर दूर तक उनकी नजर में ऐसा कोई लड़का न आया, तो उन्होंने बेटी रीना और उसकी माँ को उल्टा सीधा सुनाना शुरू कर दिया। क्या जरूरत थी, शहर भेज कर इतना पढा़ने लिखाने की, पैसा भी बरबाद किया और समय भी। इण्टर पास करते ही शादी करके निबटा देते तो आज को इतनी मगजमारी तो नहीं करनी पड़ती । उस समय कोई भी मेरी बात मानने को तैयार ही नहीं था। तब तो बेटी को पढा़येंगे, उसको पैरों पर खडा़ करेंगे, का भूत सवार था , सबसे ज्यादा तेरी माँ को ही चिन्ता थी, अब झेलना तो मुझे पड़ रहा है। जवान लड़की को कब तक घर में बिठायेंगे। उसी समय शादी ब्याह से निबट लेते तो आज को लोगों की इतनी बातें तो न सुननी पड़ती और फिर माँ पापा में बहस शुरू हो जाती और सारा दोष आ जाता बेचारी माँ पर।

अपने सिर पर सारा ठीकरा फूटते देख, माँ उसकी जन्म कुण्डली लेकर सीधे मंदिर पहुँच गयी। रीना कमरे में आकर लैपटॉप खोलकर नये सिरे से जाँब तलाशने लगी और पापा भुनभुनाते हुए घर से बाहर निकल गये।

रीना को आजकल चल रहे रिलेशन के दौर में अच्छा जॉब मिलना निश्चित ही सबसे कठिन काम नजर आ रहा था।

          मंदिर में पहुँच कर माँ ने पण्डितजी जी से पूछा, ‘‘ पुजारी जी जरा लड़की की कुंडली देख कर बताओ कि शादी का कब तक शगुन है? क्या कोई ग्रह नक्षत्र खराब हैं या फिर कोई और दोष है?‘‘

पण्डित जी ने पत्रा निकाला, कुछ देर ध्यान से देखा, मनन किया, फिर ऐनक के उपर से झांकते हुए बोले, ‘‘ देखो बहन, तुम्हारी बेटी की ग्रह दशा बहुत खराब चल रही है! शनि का भी दोष है। अतः कुछ पूजा पाठ करानी होगी और इसके साथ ही कन्या रोज नियम से भोले बाबा को जल चढ़ाये, नियम, धर्म से प्रदोष व्रत करे, तो भोले भंडारी बाबा भगवान शिव शंकर जी निश्चित प्रसन्न हो इच्छित फल देंगे।‘‘

‘‘ठीक है पुजारी जी, पूजा के बारे में तो घर में पूछकर बतायेंगे। तब तक बेटी से नियम धर्म शुरू करवा देंगे।

          माँ प्रसन्न हो गयीं आखिर उनकी समस्या का समझो आधा निदान तो हो ही गया था। उन्होंने अपने बटुए से 50 का नोट निकाल कर पण्डित जी के पैर छूकर दक्षिणा दी और घर आकर रीना को समझाने लगीं ।

‘‘बेटा, मेरी इतनी सी बात मान लो बस और पंडित जी के द्वारा बताई बातें उसे अच्छी तरह से समझा दी। ‘‘ 

मरती क्या न करती, सो सहर्ष तैयार हो गयी। वह भी परेशान हो गयी थी रोज रोज पापा की डाट डपट से, और उसने सोचा चलो इसी बहाने से घर से कुछ देर बाहर निकलने को भी मिलेगा क्योंकि इस छोटे से कस्बे में कोई भी ऐसी जगह नहीं कि वहाँ जाया जाये। जब से पढाई पूरी करके शहर से लौटी है , तब-से पूरे दिन घर में ही रहना पडता है और उसका घर में मन कहाँ लगता था।

अब वह रोज जल चढा़ने को मंदिर जाने लगी। सुबह जल्दी ही उठ जाती, एक लोटा जल चढा़ती और वापस आ जाती । साथ ही प्रदोष व्रत भी शुरू कर दिये । हर पन्द्रह दिनों के बाद एक व्रत आता। शाम को पूजा करके मीठे दही से पूरी खा लेती। शायद भोले बाबा प्रसन्न होने लगे थे।

या यूँ कहें कि पुजारी के लड़के को वह भा गयी। वह सुबह जल चढा़ने जाती तो पुजारी का बेटा उसे टुकुर टुकुर निहारता रहता । उसके युवा सौंदर्य का रसपान करता रहता । न जाने क्यों वह उसकी आँखों में बस गयी, इतनी लड़कियां नजरों के सामने से गुजरतीं लेकिन उसे कोई अच्छी न लगती। वह तो वह बस सुबह होने का इंतजार करता। उस दिन रीना को स्कूल में इंटरव्यू के लिए जाना था, सो वह जल्दी ही नहा धोकर मंदिर आ गयी। उसने जल चढा़या, मत्था टेका और वापस जाने लगी। सुबह सुबह का समय था, ज्यादा आवाजाही नहीं थी, और मंदिर में भी उन दोनों के सिवा कोई और नहीं था। अतः पुजारी के लड़के को बोलने का मौका हाथ लग गया।

उसे रोकते हुए बोला, ‘‘आज तो आप बहुत जल्दी आ गयीं।‘‘

 ‘‘हां आज मुझे स्कूल में इंटरव्यू के लिए जाना है।‘‘ उसने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया। पुजारी के लड़के ने उसे पहली बार मुस्कुराते हुए देखा था। कितनी सुंदर लगी थी वह उसे। दांत मोतियों के समान चमक रहे थे। एक गाल में पड़ता गढ्डा उसके सौंदर्य में चार चाँद लगा रहा था। जरा सी मुस्कुराहट ने उसकी खूबसूरती को बढा़ दिया था।

उसने पहले उसे मुस्कुराते न देखा था पूजा के समय शांत मन से वंदना करती और वापस चली जाती। रीना तो चली गयी, लेकिन पुजारी के लड़के की रात की नींद के साथ दिन का चैन भी ले गयी।

पुजारी का बेटा पहले तो कभी कभार ही मंदिर आता था, लेकिन जबसे रीना ने आना शुरू किया था, तब-से वह रोज सुबह तड़के पाँच बजे आ जाता, मंदिर की साफ सफाई करता और भगवान का स्नान, तिलक, चंदन सब कर देता । फिर दिन भर अपने कपडे़ की दुकान पर बैठता। ज्यादा पढा़ई लिखाई तो की नहीं थी, पर वह, देखने भालने में माशाअल्ला खूब गोरा चिट्टा और लम्बा था। लेकिन दिन भर दुकान पर बैठने के कारण थोडी तोंद निकलने लगी थी या फिर मंदिर के चढ़ावा प्रसाद ने उसकी तोंद पर असर दिखाना शुरू कर दिया था।

आज रीना जल्दी ही पहुंच गयी, उसने जल चढा़या और अपनी आँखें बंद कर हाथ जोडकर प्रार्थना करने लगी, क्योंकि उसका स्कूल में जॉब हो गया था, अब वह स्कूल के बच्चों को पढा़ने जाने लगी थी, कुछ न होने से कुछ तो मिल गया था टाइम पास करने के लिए।

उसी समय उसने अपने कानों में कोई आवाज सुनी ‘‘मैं तुमसे बहुत प्यार करता हू रीना‘‘

उसने अचकचा कर आँखें खोल दी थी, देखा तो पास में एक बुढ्ढे बाबा जल चढाकर शिव चालीसा का पाठ कर रहे थे। इन्होंने तो निश्चित ही नहीं कहा होगा। उसने ध्यान से देखा, पुजारी का बेटा अपनी गद्दी पर बैठा मंद मंद मुस्कुरा रहा है, जैसे कोई किला फतह कर लिया हो।

वह जल चढाकर पूजा करके वापस जाने लगी, तो उसने आवाज लगाते हुए कहा, ‘‘प्रसाद तो लेती जाओ।‘‘ और ढेर सारा फल मिठाई उसे दे दिया।

अगले दिन रीना नहीं आई, चार दिन निकल गये, पुजारी का बेटा परेशान आखिर क्या हुआ होगा, कहीं वह उससे नाराज तो नहीं हो गयी, न उसके दिन कटते और न रातें।

आखिर पांचवें दिन हाथ में लोटा लिए जब रीना पहुँची, तो उसके चेहरे की कुछ रंगत लौटी, उसने आगे बढकर पूछा, ‘‘क्या हुआ रीना! तुम इतने दिनों से कहाँ थी, क्या हुआ था क्या तबियत खराब थी?‘‘

उसे इस तरह हड़बडा़कर पूछते देख, रीना चौंक गयी, फिर बोली ‘‘कुछ खास तो नहीं, थोडा बीमार हो गयी थी।‘‘  वह अभी अभी नहा धोकर आई थी, सो उसके गीले बालों से टपकता पानी, चेहरे को भिगोता हुआ, उसके कुर्ते को गीला कर रहा था।

‘‘कुछ खास नहीं होने पर भी तुम पाँच दिनों तक नहीं आई, जबकि तुम्हें तो नियम से आना था? तुम्हारा घर भी खास दूर नहीं, तुम जल चढाकर वापस जा सकती थी?‘‘ इतने सारे सवाल सुन कर वह फिर चौंक गयी, अब वह कैसे बताये इस बावरे को कि वो एक लड़की है और उसे हर महीने पाँच दिन बीमारी का बहाना बना कर पूजा अर्चना से छुट्टी लेनी पड़ती है। उसकी शारीरिक प्रक्रिया की बजह से पाँच दिन आराम करना पड़ता है।

उसे चुप देखकर वह बोला, अच्छा रीना सुनो! कभी हमारी दुकान पर आना। इस समय बहुत सुन्दर कुर्तियां आई हुई हैं, तुम्हारे रंग पर वे बहुत खिलेंगी।

ठीक है आती हूँ किसी दिन।‘‘ कह कर वह जल चढा़ने लगी।

एक दिन जब वह अपनी सहेली के साथ बाजार गयी, तो वहाँ पर पुजारी के बेटे की दुकान पर भी चली गयी। उसकी दुकान पर सचमुच बहुत सुन्दर कुर्तियां थी। उस कस्बे में शायद ही किसी अन्य दुकान पर इतनी सुन्दर और अच्छी कुर्तियां हो । उसे वहाँ पर रायल ब्लू कलर की एक कुर्ती बहुत पसंद आई, उसने उसे खरीद लिया हालाँकि वह तो पैसे ही नहीं ले रहा था, परन्तु रीना ने जबरदस्ती उसे पैसे पकडा़ते हुए कहा ,‘‘ रख लो, जिससे मुझे फिर कभी आगे आना हो, तो बेहिचक आ सकूं और फिर घोडा़ घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या?‘‘

कहकर वह मुस्कुरा दी थी और उठकर चलने ही वाली थी कि सामने के खोखे से उसके लिए चाय बनकर आ गयी थी। उसे मजबूरन वो चाय पीनी पडी़ थी ।

घर आकर बैग खोलकर देखा तो उसमें से दो कुर्तियां कली। एक पिंक कलर की कुर्ती भी थी। उसे लगा, शायद यह गलती से आ गयी है। कल मंदिर जायेगी, तो वापस कर देगी यह सोचकर वह उसे बैग में रखने लगी। तभी उसमें से एक छोटी सी स्लिप निकल कर गिर पडी़ थी। उसने उस पर्ची को उठाकर देखा, तो उसमें सुंदर सी राइटिंग में लिखा था, आप पहली बार दुकान पर आई थी,  तो कुछ देने का हक तो बनता ही था। वैसे भी यह कुर्ती तो उसी दिन तुम्हारे लिए निकाल कर रख दी थी, जब यह मेरी दुकान में आई थी, क्योंकि मुझे पता है, यह रंग तुम पर बहुत फबेगा। और यह उपहार है प्लीज मना मत करना, वरना मेरा दिल टूट जायेगा।‘‘

ओफ्फो, यह पुजारी का लड़का भी न, अपना समय और पैसा दोनों ही बरबाद कर रहा है। न जानें क्या सोचकर उसके पीछे पडा़ है। वह मन ही मन बुदबुदायी थी।  खैर !!

आज रीना बहुत ही खुश थी, वह एक लोटे जल के साथ एक डिब्बा मिठाई का प्रसाद लेकर आई थी। रीना को इतना प्रसन्न देखकर पुजारी का बेटा भी खुश होते हुए बोला क्या हुआ रीना जी, आज तो बडी प्रसन्न नजर आ रही हैं।

हाँ, बात ही ऐसी है, भोलेबाबा ने मेरी प्रार्थना जो सुन ली है।

अच्छा!! क्या मैं आपकी इस खुशी में शामिल हो सकता हूँ?‘‘ वह भी उसकी खुशी में खुश होते हुए बोला, उसके मन मे खुशी के लड्डू फूट रहे थे, शायद आज उसकी प्रार्थना भी भगवान ने पूरी करने का मन बना लिया है।

हाँ हाँ , क्यों नहीं, आपका पूरा हक बनता है। मेरा कानपुर की एक कंपनी से ज्वाइनिंग लेटर आ गया है।‘‘ वह हर बार बस यही प्रार्थना ही करती थी कि मेरी नौकरी लगवा दो और उसकी मन्नत पूरी हो गयी थी ।

क्या?? पुजारी के बेटे को इतना सुनना था कि उसे लगा अभी धरती फट जाये और वह उसमें समा जाये! अब वह जीकर क्या करेगा?? उसे अपनी आँखों के सामने एकदम से अंधेरा नजर आ रहा था। दुनियां निस्सार नजर आ रही थी, उसने एक नजर उसके चेहरे की तरफ देखा, कितनी खुश नजर आ रही थी रीना। क्या उसे कोई भी फर्क नहीं पडा़ । इतने दिनों से की गयी उसकी तपस्या का क्या होगा।

अगले दिन वह चली गयी, पुजारी का बेटा भी छुपते छुपाते छोडऩे आया था और दूर से खडा तब तक निहारता रहा, जब तक बस आँखों से ओझल न हो गयी। उसे उम्मीद थी कि रीना वापस आयेगी। वो तो उसी की है। बेचारा पुजारी का बेटा! अब उसे कौन समझाये! क्या लगता है रीना उसके पास लौट आयेगी ? उसका विश्वास कायम रहेगा टूटेगा नहीं!!

नहीं, वह कभी लौट कर नहीं आयेगी क्योंकि जाने वाले कभी वापस लौटकर नहीं आते और रीना उसे और प्यार को कहा समझी थी उसकी नजर में प्यार की कोई अहमियत नहीं थी ! वह सच्चे प्यार की कीमत नहीं जानती थी । कहाँ समझती थी कि सच्चा प्यार सबको नहीं मिलता वह लौट कर आने के लिए शहर नहीं गयी थी। पढी लिखी रीना के लिए उस अनपढ गवार की क्या हैसियत समझ आती।


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