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उफ़ ये कैसी ज़िन्दगी

उफ़ ये कैसी ज़िन्दगी

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में अपनी स्विफ्ट डिजायर में पीछे बैठी आगे जाती हुई बी एम डब्लू की रफ़्तार को बड़े ध्यान से देख रही थी। मन में कहीं न कहीं एक ख्वाइश थी ऐसी गाडी में एक दिन बैठ कर लम्बी सैर को जाने की।फ्री वे में बड़ी तेज़ रफ़्तार से वो दौड़ रही थी ।फ्री वे ख़त्म होते ही मेरी नज़र सड़क के किनारे एक झुग्गी झोपडी पर पड़ी जहाँ कुछ लोग बड़े बड़े पीपे और कनस्तर लिए पानी के लिए बेतहाशा लड़ रहे थे।मन में यही ख्याल आया "उफ़ कैसी है ये ज़िन्दगी " पीने को पानी तक नहीं है इनके पास ।हमारी सरकार इन लोगों को पीने का साफ़ पानी , रहने को एक कमरा और दो वक़्त की रोटी भी नहीं देती है ।यही सब सोचते सोचते में मुंबई के एक सिरे से दुसरे सिरे पर पहुँच गयी थी।

सारे काम निबटते निबटते अच्छी खासी रात हो गयी। मैं ड्राइवर को जल्दी चलने का बोलकर फिर अपनी गाड़ी में बैठ गयी। सुबह से इतना काम में बजी थी कि व्हाट्सप्प और मैसेज तक चेक करने की फुर्सत नहीं मिली।मोबाइल देखा तो ढेरों मेसेजस थे। लीछ पालिसी का प्रीमियम भरने का,बेटी के स्कूल से ट्रिप में लेकर जा रहें हैं उसके १००० रूपये भरने की आखिरी तारीख, बिजली के बिल की भी तो आखरी तर्रीख करीब थी।मैंने एक मैसेज अपने पति को डाला और याद दिलाया ।माजी का भी मैसेज था गैस का नंबर लगाने के लिए और टीवी का रिचार्ज करवाने का. ये दो काम मैंने तुरंत मोबाइल से ही कर दिए।लिस्ट में से कुछ तो काम हुआ ।गयम से भी मैसेज था पेमेंट पेंडिंग होने का, जाने की फुर्सत तो है नहीं मैंने सोचा फिर भी अपने सेहत के नाम पर कुछ तो करना ही चाहिए ये सोचकर उसके पेमेंट अगले महीने करने को रखा । इस महीने का मोबाइल बिल और सोसाइटी के पैसे अभी देने बाक़ी हैं।इतनी लम्बी लिस्ट से घबराकर मैंने मोबाइल बंद कर दिया और खिड़की से बहार देखने लगी मेरी गाडी उसी झुग्गी से गुज़र रही थी जहाँ सुबह पानी के लिए लड़ाई हो रही थी अभी वहां पे सब सुकून से सो रहे थे । ।कुछ झोपडी के अंदर तो कुछ बहार चटाई बिछा कर।बेफिक्र गहरी नींद।ऐसी नींद हमें मुलायम गद्दों में भी कभी ही आती है।

"उफ़ ये कैसी ज़िन्दगी " में फिर से सोचने लगी पर इस बार अपनी ज़िन्दगी के बारे में सोच रही थी।।


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