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रहस्य की रात भाग 6

रहस्य की रात भाग 6

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इस गड़बड़ झाले से कन्या का ध्यान भंग हुआ। उसने अपने कमल से नयन खोले पर उसके चेहरे पर विस्मय या क्रोध जैसे कोई भाव नहीं आये। शांत भाव से उसने उन चारों को बैठने का इशारा किया और फिर नयन मूँद कर जाप करने लगी। मंत्रमुग्ध से चारों बैठ गए। उन्हें उस कन्या से तनिक भी भय नहीं लग रहा था बल्कि उसकी उपस्थिति से ढाढ़स ही मिल रहा था।  वे स्फटिक के बारे में भूल ही गए।  

अचानक उन्हें सीढ़ियों के ऊपर से अलख निरंजन का नाद सुनाई पड़ा और बाबा जी का आदेशात्मक स्वर आया कि नादान बच्चों यही झरझरा है इसके भ्रमजाल में मत फंसो। यह रूप जाल झूठा है। अभी यह वास्तविक रूप प्रकट करके तुम चारों का कलेजा नोच कर खा जायेगी। फौरन स्फटिक पत्थर लेकर ऊपर आओ। मैं अपने प्रण से बंधा हूँ तो अंदर नहीं आ सकता अन्यथा अभी इस चांडालिनी का भ्रमजाल तोड़कर सत्य प्रकट कर देता। 

इतना सुनते ही अनुज को कर्तव्य का भान हुआ वह बिजली की तेजी से उठकर आले की तलाश करने लगा जिसपर स्वर्ण मंजूषा रखी हो। इधर कन्या का जाप पूर्ण हुआ और उसने अपनी चंपा की माला में से एक कली तोड़कर सीढ़ियों के ऊपर फेंक दी। तुरन्त ऊपर से बाबा की भयानक चीत्कार सुनाई पड़ी और उनके पलायन का आभास हुआ। कन्या ने एक दृष्टि अनुज की ओर डाली और उसे मानो सम्मोहित कर लिया। वह चुपचाप आकर तीनों साथियों की बगल में बैठ गया। 

अब कन्या ने उन चारों पर एक प्रेमपूर्ण दृष्टि डालते हुए कहा, मित्रों! मेरा नाम झरझरा है। जो मेरी आँखों से निरन्तर बहते आंसुओं के कारण पड़ा है। माता कपालिका की असीम कृपा है कि तुम चारों सकुशल यहां बैठे हो। आज पूनम की इस रात कुछ भी हो सकता था। इस भयानक रात्रि का रहस्य मैं तुम्हें बताऊंगी यदि तुम सुनना चाहो।

कहानी अभी जारी है!! 

क्या कथा सुनाई झरझरा ने?

जानने के लिए पढ़िए भाग 7

 


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