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Pradeep Soni प्रदीप सोनी

Thriller

0.5  

Pradeep Soni प्रदीप सोनी

Thriller

भटकती आत्मा

भटकती आत्मा

3 mins
996


रात के तक़रीबन दस बज चुके थे और रेल अपने समय से करीब 1 घंटा देरी से स्टेशन पहुंची, धीरे धीरे जैसे ही ट्रेन के चक्के रुके तो रेल में खड़े लोगो ने दरवाज़े पर खड़े लोगो को धक्का मारना शुरू कर दिया, ताकि घर जाने के लिए कोई टेम्पो, ट्रक का जुगाड़ हो जाए। जैसा की आप जानते है की छोटे शहरों में तो रात के दस बजे ही आधी रात घोषित कर दी जाती है और सड़को पर घोर शांति पसर जाती है, अब सवारियों से लगने वाले धक्को से परेशान मैं ट्रेन की सीट पर फिर बैठ गया झल्लाते “सालों तुम मरो पहले हमारी देखी जायगी” अब धीरे धीरे सारी भीड़ निकल गयी और मैं आराम से अपना पिट्ठू बैग लिए फ़िल्मी स्टाइल में उतरा और धीरे धीरे स्टेशन की एग्जिट गेट की तरफ निकला। लेकिन वहां तो घोर सन्नाट था ना ऑटो, ना रिक्शा, ना ट्रक, ना हवाई जहाज, चारों तरफ शांति ही शांति थी अब मैं अपने आप को कोस रहा था की “और बैठ ले सीट पे ... बन ले महाराजा...आराम से उतरूंगा" की इतने में दूर से आते इक ऑटो की आवाज़ कानों में सुनाई पड़ी और देखते ही देखते ऑटो सामने आ रुका और भाई ने बैकग्राउंड में बजते हुए गाने की आवाज़ मंदी करते हुए कहा “हां भाईसाहब कहाँ जाना है टोरंटो, कैलिफ़ोर्निया, लॉस वेगास, न्यू जेर्सी... ऐसा कहते हुए ऑटो वाला भाई ने हमारे शहर के सारे चौक के नाम बता दिए, मैं: भाई वाशिंगटन जाओगे ??

ऑटो: हाँ आजाओ बैठो ... पर भाई एक दो सवारी लेकर ही चलूंगा !!

मैं: अरे भाई दो सवारी के पैसे मैं दे दूँगा चल

ऑटो: नहीं मैं तो सवारी ही लेकर चलूंगा

मैं: ठीक है भाई जैसा जी करे तेरा

पांच मिनट गुजर गयी मगर कोई सवारी नहीं आई

मैं: अरे चल मामा तू भी आज ही कमाएगा सारी माया

ऑटो: बस एक मिनट और भाईसाहब

तभी एक कन्या ऑटो में आकर बैठ गयी और ऑटो वाले से बोली

कन्या: भईया वेगास चौक जाओगे ???

ऑटो: हाँ मैडम बैठो ...(और इसके साथ ऑटो वाले ने रेस मार दी )

अब सारी सड़क घोर शांत थी बस एक ऑटो की और दूसरी ऑटो में बजते गाने की ही आवाज़ गूँज रही थी

वो कन्या और मैं एक दम शांत सीट पर बैठे हुए थे और मैं तो वास्तव में आंखे बंद किये संगीत का आनंद ले रहा था और टेम्पो एक के बाद एक सभी चौक को पार करता जा रहा था।

तभी एक दम से आवाज़ आई “काटे नहीं कटते दिन ये रात ...कहनी थी जो तुमसे ....” टेम्पू में बजने लगा

मौके की नज़ाकत को समझते हुए ऑटो वाले भाई ने आवाज़ तुरंत प्रभाव से मंदी कर दी फिर गाना बंद कर दिया।

तब जाके साँस में सास आई

अब वेगास चौक कुछ ही दूरी पर था की कानों में एकाएक ध्वनि पड़ी

कन्या: हेल्लो आपका नाम क्या है ??

मैं: प्रदीप

कन्या: नाईस टू सी यू

“लो मैडम वेगास आ गया” टेम्पू वाले ने कहा और वो उतर कर वेगास चौक की अँधेरी गली में लुप्त हो गयी

उस से अगले स्टॉप वाशिंगटन उतर कर मैं जेब में हाथ डाले यही सोचता जा रहा था

“ये क्या हादसा था भाई रे...समझ सा नहीं आया.... लगता है कोई आत्मा वात्मा होगी “

पर इस घटना से एक बात समझ आई की जीवन में कुछ चीज़े हो जाती है अलग ....अचानक !!!

बाकी स्वादों में जिन्दगी है और जिन्दगी में स्वाद है ..... राम राम


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