गुल्लू तो पिटेगा ही
गुल्लू तो पिटेगा ही
अरे भाई ६५ साल की उम्र और ऊपर से सरकारी स्कूल की मास्टरी से रिटायर।
दोपहर की तपती धूप जब हॉस्पिटल से बाहर निकला। अरे भाई, किसी को भी पूछने नहीं अपनी दवा दारू लेने गया था।
इस उम्र में ये हॉस्पिटल से दोस्ती तो करनी ही पड़ती है। बस स्टैंड पहुँचते-पहुँचते बोतल का सारा पानी खत्म हो चुका था और ऊपर से इतनी भीड़ देखकर गला और सूखने लग गया, लेकिन न बाबा, न रेहड़ी का पानी नहीं पीना, बचपन से ही फ़िल्टर का पानी जो पिया था, खैर, मेरी बस आ गयी थी ऐसे लग रहा था मानो सभी लोगों को आज मेरे साथ ही जाना था इतनी भीड़। खैर जैसे-तैसे मैं आगे से चढ़ गया। दस मिनट तक तो साँस ही बड़ी मुश्किल से नॉर्मल हुई।
इतने में देखा कि आई.टी.ओ. का पुल आ गया है। अरे, ये क्या बस, तो साइड में रुक गई। नीचे नजर पड़ी तो ये जीप पर डी.टी.सी. का स्टाफ था। मैं तो जैसे होश मैं आ चुका था। मैंने टिकट तो ली ही नहीं थी। जब तक जेब में हाथ डालता चेकर ने मुझसे टिकट माँगी। मेरी शक्ल पर बारह बजे देख कर फ़ौरन पहचान गया।
अपने साथ जीप की तरफ ले जाकर मेरी कुछ सुने बिना ही इस मास्टर को सारे पाठ पढ़ने लगा कि जेल की हवा तक खानी पड़ सकती है। इतनी देर मैं ही एक लड़का हवा मैं टिकट लहराता आया और बोला कि मास्टरजी की टिकट मेरे पास है।
और उसने वो टिकट उस चेकर के हाथ में रख दी ,,,एक तो टिकट और ऊपर से मास्टरजी सुनकर
मुझे लगा की आज भगवान खुद ही नीचे आ गए हैं। इस बूढ़े मास्टर को बचाने जल्दी से वो युवक और मैं बस में चढ़ गए। मैं बाल-बाल बचा था शर्मिंदा होने से।
उस युवक ने बताया कि मैंने आपको बस में चढ़ते देखा तो आपका भी टिकट ले लिया था। आपने मुझे पहचाना नहीं, मैं हूँ गुल्लू, मेरी तो जैसे आँखों के आगे वो क्लास आ गयी।
सबसे शरारती लड़का था गुल्लू, हमेशा मुझसे सजा पता था और मैं उसको कहता था-और कोई पिटे या न पिटे गुल्लू तू तो पिटेगा ही। ये वही गुल्लू था।