Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

हिम स्पर्श 17

हिम स्पर्श 17

5 mins
512


17

मीठी हवा की एक धारा आई, वफ़ाई, जीत एवं सारे घर को स्पर्श करती हुई चली गई। दोनों को हवा भाने लगी।

“किन्तु तुमने मुंबई क्यों छोड़ा ? सब कुछ तो सही हो रहा था। सफलता भी, नाम भी, सम्मान भी। सब कुछ तो ठीक था। तो फिर ?” वफ़ाई ने प्रश्नों की धारा बहा दी।

“मैं तुम्हारी जिज्ञासा को समझता हूँ। उचित समय पर मैं यह सब भी बता दूंगा।“

“समय के यह क्षण क्या उचित समय नहीं है ? हम जिस समय में जीते हैं वह समय ही सदैव उचित समय होता है। मेरा आग्रह है कि तुम अभी सब कुछ बता दो।“वफ़ाई ने कहा।

“तुम्हारा तर्क उचित है किंतु, समय सदैव उचित नहीं होता। कभी कभी हमें सही एवं उचित समय की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।“ जीत ने वफ़ाई के मुख के भावों को देखा।

“वह समय कब आएगा ?” वफ़ाई नि:श्वास भरा।

“बस, प्रतीक्षा करो। वह अवश्य ही आएगा। वैसे भी तुम बाइस से पचीस दिन यहीं हो, इतने में वह समय भी आ जाएगा।“

“ठीक है। मैं प्रतीक्षा करूंगी।“ वफ़ाई ने कहा,”एक और प्रश्न। कारोबार बेचने पर खूब धन मिला होगा। भारत देश में और पूरे संसार में अनेक सुंदर स्थल है जो प्रकृति के अनेक रूप जैसे पर्वत, नदी, झरनें, जंगल अथवा सागर से भरपूर है। जहां सौन्दर्य भी है और शांति भी है। तो उन सब को छोडकर इस मरुभूमि को पसंद करने का क्या तात्पर्य ? यह एकांत भरा, सूखा, निर्जन और रंग विहीन स्थल जहां मानव नहीं है, जीवन नहीं है, सौन्दर्य भी नहीं है। है तो केवल रेत जो रात्रि में दारुण एवं अंधकारमय हो जाती है। यह मरुभूमि में कोई रंग नहीं है, मात्र गहन अंधकार ही है। तो इसे क्यूँ पसंद किया ? और वह भी जीवन भर के लिए ?”

“चलो, कुछ बातों को स्पष्ट कर देता हूँ।“ जीत ने कहा। वफ़ाई को अपने प्रश्नों के उत्तर की अपेक्षा हुई।

“प्रथम, काला अंधकार स्वयं ही एक रंग है। सामान्य व्यक्तियों को यह ज्ञात भी नहीं की अंधकार कितना सुंदर होता है। वह रंगीन भी है और सुंदर भी।

दूसरा, दिवस के प्रकाश में सुंदर दिखने वाली प्रत्येक वस्तु रात्रि में भयावह एवं काली दिखती है। यह सभी सुंदर स्थल जैसे सागर, जंगल, पर्वत अथवा नदी, सब के लिए सत्य है। यह तर्क सभी सुंदर वस्तु, सभी सुंदर व्यक्ति और सभी सुंदर क्षणों पर भी लागू होता है। यह मरुभूमि भी प्रकृति के उसी नियम का पालन करती है।

तृतीय, यह मरुभूमि निर्जन अवश्य ही है, किन्तु यहाँ जीवन है, रंग है, सौन्दर्य भी है।

चतुर्थ, यह स्थल भी प्रकृतिक ही है। प्रकृति का यह भी एक रूप है। यह शांत भी है। इस भूमि की अपनी ही नीरवता है, अपना ही मौन है।“ जीत मरुभूमि को दूर तक देखता रहा और अपने ही विचारों में खो गया।

“अपनी इस मरुभूमि का खूब सशक्त पक्ष रखा है तुमने, जीत। किन्तु नीरवता और शांति में अंतर होता है। क्या तुम जानते हो ?“

“अवश्य। यहाँ तुम्हें दोनों मिलेंगे। नीरवता में मौन और मौन में नीरवता का अनुभव होगा।“ जीत ने स्मित दिया।

“वह कैसे ?”

“यह तो बिलकुल सरल है। मौन को आमंत्रित करोगी तो नीरवता स्वयं चली आएगी।“ जीत ने मौन धारण कर लिया। वफ़ाई ने भी मौन को आमंत्रित कर दिया। दोनों मौन हो गए। प्रगाढ़ मौन व्याप्त हो गया।

वह मौन गहन था, बिना व्यवधान वाला था। वह सागर सा गहन, गगन सा विशाल, पर्वत सा ऊंचा, धूप सा तेजोमय, चाँदनी सा शुध्ध, पुरातन वृक्ष की भांति स्थिर, झरने की भांति निर्बाध, हिम की भांति शीतल, रेत की भांति उष्ण, पवन की भांति मधुर, घाटी की भांति तीव्र, मयूर की भांति नृत्यमय, कोयल की भांति संगीतमय, जीत के चित्र की भांति रंगीन था।

दोनों नीरव मौन की समाधि में थे। समय भी समाधिस्थ था, स्थिर सा हो गया था।

“जीत, मौन की समाधि में खूब समय व्यतीत हो गया है।“ वफ़ाई ने मौन तोड़ा।

जीत ने धीरे से आँखें खोली और वफ़ाई को स्मित दिया।

“वफ़ाई, यह केवल मौन नहीं था, यह समाधि थी। इस अवस्था पाने को अनेक ऋषि मुनि तरसते हैं। किन्तु उन्हें भी नहीं मिलती यह अवस्था। कितनी नीरवता थी ? कीनता मौन था ?”

“वह अद्भूत था, अनुपम था।“

“ध्यान का यह सौन्दर्य है कि वह समय से परे है, समय से भिन्न है। वह समय को बहने देता है और समाधिस्थ व्यक्ति को अनुभव होता है कि समय स्थिर है। किन्तु समय तो चलता ही रहता है।“ जीत ने कहा।

“सम्मत हूँ। मुझे समाधि अवस्था में ले जाने के लिए धन्यवाद किन्तु मेरा प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है।“ वफ़ाई ने प्रश्नार्थ दृष्टि से जीत को देखा।

“वह क्या है ?”

“तुमने यह कच्छ की मरुभूमि को क्यों पसंद किया ?” वफ़ाई ने प्रश्न दोहरा दिया।

“ओह, मैंने इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया, है ना ?”

“बिलकुल नहीं दिया।“ वफ़ाई उत्सुक हो गई।

“जान बूझकर मैंने उतर नहीं दिया। पुन: उचित समय की प्रतीक्षा करनी होगी, वफ़ाई।“

वफ़ाई ने आग्रह नहीं किया, केवल स्मित दिया।

“जीत, यहाँ इस मरुभूमि में आने के बाद की यात्रा के विषय में कुछ कहो। कैसा रहा यह समय ? तुमने क्या किया, कैसे किया, जीवन कैसे बिता, कितने चित्रों का सर्जन किया, यह कला कैसे सीखी ? इस गहन और निर्जन मरुभूमि के विशेष अनुभव कैसे रहे ? और जो भी तुम बताना चाहो, कहो।“

“अवश्य। समय समय पर सब बताता रहूँगा।“

“मुझे प्रतीक्षा रहेगी।“ वफ़ाई ने स्मित दिया।

अब रेत की ऊष्मा से हिम पिघलने लगा, टूटने लगा। बिखरी रेत झरने के प्रवाह से एक साथ हो गई। वफ़ाई और जीत ने एक साथ एक दूसरे की तरफ हाथ बढ़ाए, एक साथ स्वीकार किए। दोनों के अधरों पर स्मित था। एक बड़ा सा काला बादल गगन में छा गया, सूरज को अपने आँचल में छुपा ले गया।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama