बदला
बदला
"गुज़र गए दिन
यही कुछ पाँच;
नहीं, सात दिन | "
यहाँ कुछ सात दिनों से पड़ा हूँ |
कुछ समझ नहीं आ रहा हैं कि, मुझे यहाँ क्यों रखा गया है ...
मुझे इतना पता है कि,
मैं कोमा में हूँ |
बचपन से ही सोचता था की मृत्यु क्या हैं?
जब इस शरीर से आत्मा निकल कर उस रहस्मय व अदभुत आकाश की ओर जाकर मिलेगी, तब क्या वो स्वर्ग का रास्ता ढूँढ पाएगी ?
याद आता है वो दिन जब हम पुलिस मेें भर्ती होने चले थे।
याद आता है वो दिन जब हमने इस देश की रक्षा करने का वादा किया था |
अब मेरी एक ही इच्छा है दोस्तों,
काश मैं उन 160 देशवासियों की मृत्यु का बदला ले सकू |
लेकिन,
मुझे पता है,
मैं कोमा में हूँ।
हो सके तो बदला ले लेना दोस्तों...
मुझे तो मृत्यु ने बुलाया हैं।
जय हिंद।