छंटती धुंध
छंटती धुंध
वह सो रहा था। उसने श्वेत-श्याम स्वप्न देखा।
उसने देखा, एक छोटा आसमान है, जिसमें सूर्य चमक रहा है। उसी समय कुछ काले-घने बादल आये जिन्होंने सूर्य को ढक दिया, वहीँ उड़ रहे पंछी अँधेरे के कारण रास्ता भटक गए। उसने देखा एक महिला बिस्तर पर सो रही है। उसने ध्यान से देखा - वह महिला तो उसकी पत्नी ही है।
तभी एक देवी प्रकट हुई, उसके मुंह से निकल गया, "माँ दुर्गा"। देवी उसे देखकर मुस्कुराई और वह एक छोटी बच्ची में बदल कर उसकी पत्नी के बिस्तर पर बैठ गयी।
उसे देखते हुए बच्ची उससे बोली, "पापा, ये देखो !" उस बच्ची ने चित्रकारी का एक ब्रश जाने कहाँ से निकाला और बादलों के अंदर छिपे सूर्य को रंग दिया, सूर्य लालिमा से रौशन हो उठा, जिससे पंछियों को भी रास्ता मिल गया।
उसी समय उसकी पत्नी ने उसे झिंझोड़ते हुए जगाया, "सुनो ! डॉक्टर भाईसाहब का फ़ोन आया है" और उसकी पत्नी ने फ़ोन के माइक पर हाथ रख कर डरते हुए पूछा, "और अगर बेटी हुई तो..."
उसने उनींदी आँखों को अपनी पत्नी की डरी हुई आँखों से मिलाया, और नींद में ही कहा, "बेटी ही है... उसका नाम रौशनी रखेंगे..."
और पत्नी का डर विश्वास में बदल गया।