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कटी उंगलियां भाग 4

कटी उंगलियां भाग 4

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सारी बरात इसके बाद खिन्न मन से रवाना हुई। द्वारपूजा तो निर्विघ्न संपन्न हुई पर रात्रि में विवाह के समय पता नहीं कहाँ से दो बौराये हुए बिल्ले लड़ते हुए आकर यज्ञ वेदी में गिर पड़े और अफरा तफरी मच गई। किसी तरह उन्हें भगा कर विवाह सम्पन हुआ। 
             असली खेल तो अगले दिन से शुरू हुआ। घर में नई दुल्हन आई तो उत्साह का वातावरण होना चाहिए था लेकिन भय और असमंजस का बोलबाला हो गया। अजीबोगरीब घटनाएं होने लगीं। मोहित के हाथ पाँव ऐंठ गए। उसे उठाकर सब डॉक्टर के पास ले गये तो कुछ पता नहीं चला। आश्चर्य की बात यह कि रह-रह कर शरीर ऐंठता और फिर शांत हो जाता। डॉ ने फ़ूड पॉइजनिंग जैसा कुछ बताया। घर पर भी अपने आप कांच तड़कने लगे। बर्तन इधर-उधर उछल जाते। ऐसा लगता था मानो किसी प्रेतात्मा का प्रकोप है। रायपुर वाले मामाजी बोले, लगता है कोई ऊपर की बला घर पर काबिज हो गई है। मेरी मानो जगदम्बा, तो किसी पहुंचे हुए पीर फ़कीर को दिखला दो। जज जगदम्बा प्रसाद ने बात हंसी में उड़ा दी। लेकिन अगले दिन तो गजब हो गया। मोहित बाथरूम में नहा रहा था अचानक उसके ऊपर से आ रहा पानी लाल हो गया। एक तरह से उसपर रक्त की वर्षा होने लगी। वो चीखता हुआ बाथरूम से निकल भागा। बाहर निकलते ही उसके पैरों से एक अखबारी पैकेट टकराया जिसे उसने खोला तो उसमें से तीन इंसानी उँगलियाँ गिर पड़ीं। जिनमें से रक्त चू रहा था। मोहित तो बेहोश-सा होकर गिर पड़ा। रचना ने आकर उसे संभाला और फूट-फूट कर रो पड़ी। घर के बाकी सदस्य भी शोर गुल सुनकर दौड़े आये और माजरा देखकर अवाक् रह गए। अब सभी भयभीत हो गए और आनन् फानन में एक ओझा बुलवाया गया जिसकी इलाके में काफी ख्याति थी। 
      महंत अघोरनाथ गिरी अपने दो मुस्टंडे साधुओं के साथ घर में प्रविष्ट हुए तो चौखट पर ही ठिठक गए। आँखें बंद करके सर हवा में थोडा-सा उठाकर कुछ बुदबुदाते हुए खड़े रह गए।उनके माथे पर चिंता की गहरी लकीरें उभर आईं थीं। कुछ पल बाद आँखें खोल कर बोले, बच्चा! यह घर तो भयानक रूप से शापित हो चुका है। मुझे भारी अनर्थ की आशंका दिखाई पड़ रही है। जगदम्बा प्रसाद इन चीजों को ढकोसला मानते थे पर मरता क्या न करता, आँखों देखी चीज को कैसे नकारते? बाबा के पाँव छूकर बोले,अब आप ही इस बवाल से निकालिये महाराज! बाबा बोले, मैं पूरी कोशिश करूँगा बच्चा! आगे भगवान् की मर्जी। बाबा अघोरनाथ ने रोली गुलाल लेकर एक वेदी बनाई और अपने झोले से कई हड्डियाँ निकाल कर उसपर सजा दी फिर वेदी में अग्नि प्रज्वलित कर उसके पास बैठकर एक पूजा आरम्भ कर दी। उनके चेले भी पूरी तरह सहयोग कर रहे थे। बाबा ने मोहित और रचना को बुला कर अपने अगल-बगल बैठा लिया और मंत्रोच्चार करने लगे। वे जब ओम ह्रीम् क्लीम् स्वाहा कहकर यज्ञ वेदिका में मुठ्ठी भर आहुति झोंकते तो लपलपाती हुई ज्वाला अचानक भड़क  उठती। मोहित और रचना तो आँखें बंद किये मानो काँप से रहे थे। बेचारों ने नए जीवन की शुरुआत क्या की कि ऐसी परिस्थिति में पड़ गए थे। अचानक कुछ ऐसा हुआ जिसने सभी के हाड़ कंपा दिए। 

कहानी अभी जारी है...

पढ़िए कटी उंगलियां भाग 5


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