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तीन दिन भाग 3

तीन दिन भाग 3

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तीन दिन

भाग 3

 

     थोड़ी देर बाद झाँवर और बादाम बैग टाँगे घूमने रवाना हुए। उनके पीछे मानव और कामना निकले। चंद्रशेखर पहलवान और उसकी पत्नी किले में ही बने एक मंदिर में भगवान् के दर्शन के लिए रवाना हो गए। रमन और छाया ने हलके जूते पहने और गोल्फ स्टिक लेकर गोल्फ खेलने चल दिए। मंगतराम आराम ही करता रहा तो नीलोफर बाहर निकल कर बिंदिया के साथ बैडमिंटन खेलने लगी। उसका शटल कॉक झाड़ियों में चला गया वो उसे निकालने का प्रयत्न कर रही थी कि अचानक जोर से चीख मार कर पीछे को उलट गई। सुरेश थोड़ी दूरी पर फूलों को निहार रहा था वह दौड़ कर आया तो उसने देखा कि अविश्वसनीय आकार का एक किंग कोबरा अपने आराम में खलल पड़ने पर कुपित हो गया था और ज़ोर-ज़ोर से फुंकार कर फन पटक रहा था। सौभाग्य से उसने नीलू को डंसा नहीं था वह इस बार बच गई थी। वे तुरन्त खेल बंद कर के कमरे में लौट आए। नीलू अभी भी उस कोबरा को याद करती तो उसके बदन में झुरझुरी आ जाती थी।

          अचानक बिंदिया ने नीलू को बताया कि वो देखो दूर बादाम बाई जा रही है। उसके आगे झाँवर मल जा रहा था। इतनी दूर से भी दोनों के आकार का अंतर स्पष्ट नजर आ रहा था। यह बेमेल जोड़ी देखकर नीलू को हंसी आ गई और उसका डर थोडा कम हुआ तो बिंदिया भी हंस पड़ी मगर वे दोनों  यह नहीं जानती थी कि यह हंसी ज्यादा देर तक उसके होठों पर नहीं रहने वाली थी। 

                लगभग चार बजे दोपहर में हार्ट स्पेशलिस्ट मानव मिश्र अपने मित्र प्रोफेसर सुदर्शन के साथ बारादरी के एक कोने पर बनी बड़ी सी खिड़की पर खड़े कुछ विचार विमर्श कर रहे थे तभी उन्होंने देखा कि दूर टीले पर बादाम बाई अपनी पीठ पर बैग टाँगे चली जा रही थी। उसका थुलथुला बदन पसीने से तर था पर वह उत्साह में भरी चढ़ान पर बढ़ी जा रही थी। उसने मुड़कर मानव और सुदर्शन की ओर देखा और चिल्लाते हुए हाथ हिलाया। यहां से भी दोनों ने उत्साहवर्धन करते हुए हाथ हिलाये फिर बादाम धीरे-धीरे ढलान पर ओझल हो गई फिर दोनों अपने अपने कमरे में चले गए और बाहर घूमने के लिए तैयारी करने लगे। ये दोनों जब अपनी पत्नियों के साथ घूमने निकले तो इन्होंने झाँवरमल को जल्दी जल्दी लौटते देखा जिसका बदन पसीने से नहाया हुआ था और चेहरा धूप के कारण लाल भभूक हो चुका था। मानव ने दूर से चिल्ला कर उससे कुछ कहना चाहा पर उसने मानो सुनकर भी अनसुना कर दिया और दौड़ता हुआ दूसरी दिशा में चला गया। जब मानव और सुदर्शन कामना और शोभा के साथ कुछ घण्टों बाद घूमकर लौटे तो किले के मुख्य कमरे में अफरा-तफरी मची हुई थी और काफी शोरगुल मचा हुआ था। झाँवरमल की तीर-सी तीखी आवाज मानो कानों में बरछी की तरह चुभ रही थी। मंगतराम गुरनानी उसे कुछ समझाने की चेष्टा कर रहा था। अचानक झाँवरमल फूट-फूट कर रो पड़ा। 

 कहानी अभी जारी है ........

आखिर क्या हुआ झाँवरमल के साथ? क्या वो सचमुच रो रहा था या यह एक नाटक था? जानने के लिए पढ़िए भाग 4


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