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लौंभा और गीदड़

लौंभा और गीदड़

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एक बार एक लोभा थी और वह गर्भवती थी। वह दौड़ी-दौड़ी गई और सड़क पर जाकर लेट गई। वहां सड़क पर एक चावलों की बोरियों से भरा हुआ ट्रक आया। लोभा के पास आकर - लोभा ! हट ले नही तो मर जाएगी। लोभा बोली नहीं हटूंगी। पहले एक चावल की बोरी उदारकर दो।

ट्रक चालक ने एक बोरी उतार दी और ट्रक को लेकर चला गया। लोभा उस बोरी को उठा लाई और अपने घर में रख दी तथा फिर दौड़ी-दौड़ी गई और उसी सड़क पर लौट गई। फिर गुड़ की बोरियों का ट्रक आया और लोभा के पास रुककर ड्राइवर कहने लगा कि लोभा हट ले। नही तो मारी जाएगी। लोभा बोली एक बोरी गुड़ की डाल दो। उस ट्रक वाले ने एक बोरी गुड़ उतार दी। लोभा ने उस बोरी को उठाया ओर अपने घर ले जाकर वहां पर ब्यागी। उस लोभा ने छः बच्चे दिए। जिनमें एक बच्चा भूरा था, एक काना तथा बाकी चार अन्य रंगो के थे।

लोभा सबसे ज्यादा प्रेम अपने भूरे बच्चे से करती थी। वह काने बच्चे को छोड़कर सभी पांचो बच्चो से अपना दूध पिलाया करती थी। इस प्रकार से वह छटा बच्चा गुड़ खाकर ही जिंदा रहता। लोभा जब भी बाहर जाती भूरा बच्चा अन्दर की कुंदी लगा लेता और जब लोभा बाहर से आती तो कहती - गुड़ से लिपूं, चावलों से लिपूं, खोलिए मेरे भूरे बच्चे। तो झट अन्दर से कुंदी खुल जाती। इस प्रकार दूध पिलाकर लोभा फिर बाहर चली जाती।

एक दिन की बात है, जब लोभा अपने भूरे बच्चे से कह रही थी तो झाडि़यों में छुपे एक गीदड़ ने यह शब्द सुन लिया। वह लोभा तो दूध पिलाकर बाहर निकली थी कि वह गीदड़ आ धमका और बोला - गुड़ से लिपूं चावलों से लिपूं खोलिए मेरे भूरे बच्चे। यह सुन शब्द जब भूरे बच्चे ने सुना तो सोचा कि आज तो जल्दी ही मां घर आ गई। उसने झट से कुंदी खोल दी।

क्ुदी खुलते ही गीदड़ ने पहले तो उस भूरे बच्चे को खाया बाद में काने बच्चे को छोड़कर बाकी सभी बच्चों को भी उसने खा लिया और निकल गया। अब कुछ देर पश्चात जब लोभा वापिस आई और दरवाजे पर आकर बोली गुड़ से लिपूं चावलों से लिपूं खोलिए, मेरे भूरे बच्चे। यह सुनकर उस काने ने छो में भरकर जवाब दिया, खुले हैं तेरे भूरे बच्चे और अन्य चार बच्चों को तो गीदड़ खा गया। लोभा यह सुनते ही दौड़ी-दौड़ी एक खाती के पास गई और बोली - खाती भाई एक मूसल बना दे। खाती ने मूसल बना दिया।

ज्ब लोभा उस मूसल को लेकर वन के मध्य बने तालाब के एक किनारे पर जा बैठी, सांय के समय जो भी गीदड़ वहां पानी पीने के लिए आता उसी से कहती - गीदड़ भाई तुमने मेरे बच्चे खांए हैं। सभी मना कर देते। अन्त में एक गीदड़ आया जिसका पेट भी फुला हुआ था। उसको देखकर लोभा ने पूछा - भाई तुमने मेरे बच्चों को खाया हैं। अब गीदड़ ने सोचा - यह बेचारी क्या करेगी ! सच बता देता हूँ। वह गीदड़ बोला - हां बहन, मैंने तुम्हारे बच्चे खांए हैं।

अब तो लोभा को ताव आ गया। उसने दाएं देखा न बाएं। लगी मूसल से गीदड़ को पीटने, जब तक उसके पेट से अपने पांचो बच्चों को निकाल न लिया तब तक उसे पीटती ही रही। अपने पांचो बच्चे निकलने तक लोभा ने गीदड़ को अधमरा कर दिया। पांचो बच्चों सहित वह घर गई तो उसने काने बच्चे को धन्यवाद दिया, कि आज वह उसको सही नहीं बताता तो आज उसके सारे बच्चे मर ही जाते। अब तो वह अपने काने बच्चे को भी उतना ही प्यार करने लगी जितना कि वह अन्य बच्चों से करती थी।


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