कुछ नहीं मालूम
कुछ नहीं मालूम
मैंने बारहवीं कक्षा में प्रवेश ले लिया तो पिताजी से स्मार्ट फोन ले देने के लिए कहा। पिताजी ने मुझे पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कहा।
मैं बोला, "पिताजी आपको कुछ नहीं मालूम, फोन से भी पढ़ाई होती है।"
पिताजी ने मेरी ज़िद देखते हुए मुझे स्मार्ट फोन लेकर दे दिया, हालाँकि एक साधारण फ़ोन मेरे पास पहले से ही था।
कभी छुट्टी के दिन पिताजी मुझे हमारी आटा चक्की पर सहायता करने के लिए कहते तो मैं फोन पर गेम खेलने में व्यस्त उत्तर देता, 'पिताजी, आपको कुछ नहीं मालूम, मैं पढ़ाई कर रहा हूँ।' और मैं गेम खेलने या चैट करने में लग जाता।
कभी घर में माँ या कोई और बीमार पड़ता तो पिताजी को अस्पताल जाने के लिए दुकान बंद करनी पड़ती। वे मुझे अस्पताल चलने के लिए कहते तो मैं टाल जाता। कोई काम नहीं करता, न अस्पताल जाता, न दुकान संभालता..।
एक दिन पिताजी बाथरूम से लौटे तो अचानक गिरकर बेहोश हो गए। मेरे हाथ-पाँव फूल गये। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ। वो तो पिताजी का सहायक हरिया, जिसकी अनपढ़ता का मैं अक्सर मज़ाक उड़ाता था, उसी समय किसी काम से घर आया तो उसने स्थिति को संभालते हुए पिताजी को अस्पताल में भर्ती कराया। कहाँ, क्या, कैसे करना है, मुझे तो कुछ पता ही नहीं था।
पिताजी के दिमाग की एक नस फट गई थी और उनका एक हिस्सा पूरी तरह से पैरालाइज़ हो गया। पिताजी अपनी इस स्थिति से बहुत दुखी हो गये और अस्पताल में ही तीसरे दिन हार्ट अटैक से वे चल बसे।
हरिया ने जैसे तैसे स्थिति को संभाला। "पिताजी, आपको कुछ नहीं मालूम " कहने वाला मैं बेबसी में बस यही दोहराए जा रहा हूँ... पिताजी, आपको तो सब मालूम था, मुझे तो कुछ भी नहीं मालूम..।
महिन्द्र कौर (मोनी सिंह)