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असहनीय पीड़ा

असहनीय पीड़ा

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''तुलसी ओ तुलसी --अरी कहाँ मर गयी जाकर ? --यह लड़की भी न -!'' सुमन जोर से अपने घर काम करने वाली एक बारह वर्षीय लड़की तुलसी को जोर-जोर से आवाज दे रही थी ।

''मम्मी मेरा बैग अभी तक नहीं लगाया है। तुलसी की बच्ची ने बुलाओ !'' निधि सुमन की बेटी, तुलसी की हमउम्र नाश्ता करते हुए चिल्लाई ।

''अरे भाई मेरे शूज कहाँ हैं ? अरे इनको अभी तक साफ़ नहीं किया कहाँ है यह तुलसी ?'' विवेक जोर से दहाड़े ।

''बहुत सिर चढ़ रही है आज बताऊँगी इसको। मैं तो कहती हूँ इसके गाँव में बैठी इसकी माँ से कह ही दो कि अब यह तुम्हारी लड़की काम-धाम नहीं करती पता नहीं कौन सी दुनियाँ में खोई रहती है ?''

''ठीक कहती हो !''

''मुझे नाश्ता तो दे दो !'' इस बार बिट्टू सुमन का बेटा चीखा।

''लगता है नहाने गयी है अभी जाकर देखती हूँ !''

''तुलसी दरवाजा खोल !''सुमन ने दरवाजा खोला जो एकदम हल्के झटके से ही खुल गया। बाथरूम के कुंडे पर तुलसी लटक रही थी बिल्कुल खामोश। सुमन की चीख निकल गयी।

वहीं वाश-बेशन पर एक कागज का टुकड़ा रखा हुआ था जिसमें लिखा था ।

''माँ मैं इस दुनियाँ को छोड़कर जा रही हूँ। पूरे दिन काम करते -करते थक जाती हूँ। मगर कोई प्यार से बात तक नहीं करता। मेरा भी मन करता है स्कूल जाने का --निधि की तरह इठलाने और माँ को नखरे दिखाने का मगर यहाँ तो सब मुझे ही नखरे दिखाते रहते हैं। ऐसा लगता है मानो मैं कोई मशीन हूँ ! अलविदा माँ आपकी प्यारी बेटी तुलसी ..मेरी आप सभी से प्रार्थना है कि मेरी यह चिटठी माँ तक जरूर पहुँचा देना ताकि मेरी छोटी बहिन को वह किसी की गुलामी के लिये न भेज दे !''

पढ़कर सुमन की भी आँखे भर आयी। ग्लानि और अफ़सोस से सबके सिर झुक गये ''मैंने कभी सोचा क्यों नहीं कि वह भी एक बच्ची है ?''कहकर सुमन फफक -फफककर रो पड़ी मगर अब कोई फ़ायदा नहीं था ।


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