कुआँ
कुआँ
तहुर बहुत खुश हुआ था अपने निकाह पर| उसने सुना था अपनी बहन से भी और अन्य कई लोगो से कि उसकी होने वाली बीवी बहुत ही खुबसूरत और ज़हीन है| जब उसने अपनी बेगम को दुल्हन के लिबास में देखा था तो उसके मुहं से बस “वाह” निकला था| जैसा उसने सुना था उससे भी कहीं ज्यादा खुबसूरत थी उसकी दुल्हन “रमिशा”| तहूर ने उससे कहा था “रमिशा! तुम दुनिया-जहान के तमाम गुलाबो से भी ज्यादा खुबसूरत और खुशबूदार हो, मेरी जिन्दगी महक गयी तुम्हे पाकर"| शादी के बाद के ये कुछ महीने कैसे बीते पता ही नहीं चला| इन कुछ महीनो में तहुर की दीवानगी रामिशा के लिए रत्ती भर भी कम नहीं हुई बल्कि और ज्यादा बढ़ गयी थी| तभी तो ब्याह के चंद महीने बाद ही तहुर ने बीवी के कहने पर माँ-बाप और भाइयों से अलग रहना शुरू कर दिया था| उसने अपनी ज़मीन और मवेशी भी बाँट लिए थे| खूब कहा गाँव वालो ने की अलग मत रहो जवान और खुबसूरत बीवी है| तुम तो काम धंदे पर रहोगे अगर पैर बहक गए तो, और अभी तक तो कोई बच्चा भी नहीं हुआ है| लेकिन तहुर दीवाना भी था और अपनी बीवी पर विश्वास भी करता था|
लेकिन आज तहुर का भेजा एकदम सुन्न था अपनी बीवी को किसी गैर मर्द के आगोश में देखकर|
मक्का खेतों में पक चुकी थी जंगली मवेशी नुकसान कर देते थे इसलिए रात को खेतो पर पहरा होता था| सब किसान मिलकर और दिन बांटकर पहरा दे लेते थे| ज़मींदारी ख़त्म हो चुकी थी इसलिए अब तहुर जैसे ज़मींदारो को भी खुद अपनी ज़मीन की देखभाल करनी पड़ती थी| आज तहुर का वार था पहरे का लेकिन तहुर को रमिशा की इतनी याद आई की पहरा छोड़कर चुप चाप घर की तरफ हो लिया| सोचा था चुपके से जाकर रमिशा को बाँहों में भर लेगा| लेकिन जैसे ही वो घर पहुंचा तो वहाँ का नज़ारा देखकर उसका कलेजा फट गया|
रमिशा किसी अजनबी के साथ हमबिस्तर थी| दोनों एकदूसरे में समा जाने को अमादा थे| तहुर के समझ नहीं आया क्या करे? कमरे में अँधेरा था, तहुर ने सोचा कि देखूं “कभी ये रमिशा ना होकर कोई और हो”| ऐसे अनचाहे हालात में दिमाग अकसर कुछ बेहतर कल्पनाएँ पैदा कर देता है और उम्मीदें टूटने नहीं देता| वो चुपचाप छुपकर देखने और सुनने की कोशिश करने लगा|
चंद मिनटों बाद वो दोनों अपने खेल से फारिग हुए तो दोनों में बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ|
रमिशा ने उस अजनबी को अपने ऊपर से धकेलते हुए कहा “तुम शराब मत पिया करो बहुत बदबू आती है, और फिर ये सेहत के लिए भी सही नहीं”
अब तहुर को नाउम्मीदी ने जकड लिया था क्योंकि ये आवाज़ रमिशा की ही थी| जिस आवाज़ को सुनकर तहुर के दिल में प्यार और उत्तेजना की तरंगे उठ जाती थी आज वो आवाज़ नस्तर सी चुभ गयी थी और तहुर की रूह तक को भेद दिया था| तहुर ने मन में सोचा कि इस अजनबी ने शराब पी रखी है मतलब ये मुसलमान तो है नहीं| “बदजात औरत एक काफिर के साथ जिनाखोरी” तहुर के दिमाग में एक चीख उठी और उसके पुरे वजूद को भेदती हुई निकल गयी|
तभी उस अजनबी ने रमिशा के सवाल का जवाब दिया “रमिशा मेरी जान अल्लहा पाक परवर दिगार के दर पर तो उस दिन ही जाना छोड़ दिया था जिस दिन तूने मुझे छोड़ा| उसके दर पर जब भी जाता था तो तुझे ही मांगता था, और कुछ मेरी तमन्ना भी नहीं रही तेरी मोहब्बत के अलावा| जिस दिन तूने मुझे छोड़ा उस दिन तो मुझे मेरा वजूद, ये दुनिया सब एक कुफ्र लगने लगे| रमिशा हुआ करें वो जिनका हिसाब कयामत को होगा, मेरा हिसाब तो अल्लहा ने उस रोज़ ही कर दिया जब तू किसी और के साथ रुखसत हुई| अब तो मैं एक मुर्दा हूँ ऐसा मुर्दा जिसे मुर्दे भी अपनी जमात में ना बैठने दें| मेरे लिए क्या कुफ्र और क्या अज़ाब? अब तो ये शराब ही सहारा है, कभी तुझसे मिल लेता हूँ तो लगता है फिर से जिन्दा हो गया हूँ”|
तहुर को उस अजनबी की बात से ये तस्दीक हो गयी थी कि वो मुसलमान ही है कोई काफिर नहीं| पता नहीं क्यों लेकिन तहुर को एक अजीब सी तसल्ली हुई ये जानकर कि उसकी बीवी का आशिक काफ़िर नहीं एक मुसलमान है| तहुर की पहचान में ये आवाज़ अभी तक नहीं आ पा रही थी|
रमिशा ने उस अजनबी की छाती पर अपना सर रखकर कहा “मैं क्या करती मजबूर थी, जिसके साथ घरवालो ने भेज दिया चली आई| लेकिन उस दिन ही एक कसम खायी थी...मेरी मोहब्बत बस तू ही रहेगा इशाक| अब ये दीन की नाफ़रमानी हो तो हुआ करे”
इशाक कुछ शराब के नशे से और कुछ रमिशा के बदन के नशे से अब बेसुध हो चूका था और गहरी नींद में सो गया था| पता नही उसने रमिशा की पूरी बात सुनी भी या नहीं?
“इशाक” ये नाम तहुर के दिमाग में बिजली सा कौंध गया| ये रमिशा का ही रिश्तेदार था, अच्छी-खासी जायदाद थी| निकाह के दौरान ही तहुर की मुलाक़ात हुई थी इशाक से| उसने तो कभी ख्वाब में भी नही सोचा था कि उसकी बीवी जो उसके साथ रहती है और उससे मोहब्बत जताती है, वो हकीक़त में किसी और से ही इश्क लड़ा रही है|
“इसलिए ही इस बदचलन औरत ने मुझे मेरे घरवालो से अलग रहने को मजबूर किया ताकि ये अपने आशिक के साथ खुलकर अय्याशी कर सके”| तहुर के दिमाग में एकदम से ये बात कौंधी और उसका मुहँ जैसे कड़वा हो गया हो| उसके माथे पर ऐसे सलवट पड गयी जैसे कोई सांप अपनी कुंडलियों को उमेठता है|
तभी रमिशा इशाक को सोता छोड़कर बाहर निकल गयी| तहुर कमरे के रोशनदान से सब कुछ देख रहा था| ये मकान गाँव के बाहरी तरफ था और कुछ दिन पहले ही बनवाया था तहुर के परिवार ने| अभी इस मकान में खिड़कीयों पर दरवाजे भी सही से नहीं लगे थे| तहुर अपनी बीवी के साथ इसमें ही रहने आ गया था जायदाद का बटवारा करके| उसके कमरे में भी एक रोशनदान था जो थोडा ऊँचा था लेकिन उसमें कोई दरवाजा नहीं लगा था| तहुर ने देखा कि रमिशा कमरे से बाहर गयी है शायद फारिग होने| उसने बाहर ही रखि कुल्हाड़ी उठायी और कमरे में दाखिल हो गया| इशाक नशे में बेसुध निपट-नंगा लेटा हुआ था| इशाक और रमिशा ने ज़मीन पर ही चटाई बिछाई हुई थी और उसपर ही दोनों इश्क का खेल खेल रहे थे| उस चटाई पर ही इशाक अब नंगे बदन पड़ा था| तहुर ने अँधेरे में ही एक बार और उसे देखने की कोशिश की और फिर एक झटके में कुल्हाड़ी से उसके गले पर वार किया| जिस गुस्से की आग में तहुर पिछले कुछ लम्हों से जल रहा था वो सारी आग तहुर ने अपने वार में उतार दी थी| वार बहुत गहरा था, एक ही वार में इशाक का शरीर मुर्दा हो गया| इशाक की गर्दन लगभग आधी से ज्यादा कटकर एक तरफ लुढ़क गयी| नामालूम वो वजह नशा रहा या तहुर के वार की तेजी कि इशाक के मुहँ से हलकी सी भी आवाज़ नहीं निकली| तहुर ने एक और वार इशाक के सिने पर किया। तहुर अपना काम करके घर से बाहर निकल आया और खेत की तरफ चल दिया| लेकिन कुछ दूर जाकर वो रास्ते में एक तरफ बैठ गया| कुछ देर बैठे रहने के बाद उसे पता नहीं क्या हुआ वो फिर से वापस घर की तरफ चल दिया|
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रमिशा जब फारिग होकर अपने कमरे में आई तो पहले तो उसे अँधेरे में कुछ दिखा ही नहीं| वैसे भी बाहर थोडा रौशनी थी लेकिन कमरे में तो बिलकुल अँधेरा था| लेकिन फिर उसके पैर पर कुछ गीला सा लगा| एक बारगी रमिशा ने सोचा कि कहीं नशे में इशाक ने पेशाब तो नहीं कर दिया| उसने लेम्प जलाया| थोड़ी सी रौशनी होते ही रमिशा की जान निकल गयी इशाक का हाल देखकर| वो तुरंत नीचे झुकी उसने देखा कि कुछ नहीं बचा है और उसे जो गीला लगा था वो इशाक का लहू था जो चटाई को पूरा तर करके अब कमरे के फर्श पर बह रहा था| रमिशा की आँखों के आगे अँधेरा छा गया था| अभी तो इशाक उससे बातें कर रहा था| ये कौन कर गया?? कैसे कर गया?? उसे कुछ समझ नहीं आया..हाँ उसने पास पड़ी उस कुल्हाड़ी को जरुर देख लिया|
कुछ देर रमिशा आंशु बहती रही लेकिन फिर उसे याद आया कि जब तहुर आएगा तो वो ये सब देख लेगा| एकदम से उसने होश संभाला और कुछ देर सोचने के बाद उसने वो ही कुल्हाड़ी उठायी और इशाक के बदन के टुकड़े किये| रमिशा औरत थी लेकिन फिर भी उसके वारों में ताक़त थी|
इस मकान में ही एक कुआँ था| पहले ये कुआँ प्याऊ था लेकिन अब नल लग गए थे तो तहुर के पिता ने इस कुएं की घेराबंदी करते हुए एक मकान बना लिया था, जिससे कुआँ मकान के एक कोने में आ गया था| तहुर जो लौटकर वापस आया था वो अब दिवार से उचक कर घर में झाँक रहा था| उसने देखा कि रमिशा ने तीन बोरे कुएं में डाले| तहुर समझ गया इन बोरो में इशाक का मुर्दा ही है| ये देखकर तहुर ने फुफुसाते हुए खुद से ही कहा “देख मादरजात तुझे कब्र भी नसीब नहीं हुई| सच कह रहा था तू तुझे तो मुर्दे भी अपनी जमात में शामिल नहीं करेंगे”| तहुर को एक तसल्ली हुई ये देखकर कि रमिशा अपने हाथो से उसके रकीब के मुर्दे को कुएं में फेंक रही है| कुँआ एक कोने में था और मकान काफी बड़ा तो तहुर को अँधेरे के धुन्दलको में क्या हो रहा है ये हल्का सा दिख तो रहा था लेकिन कुएं के पास की हलचल की कोई आवाज़ तहुर तक नहीं पहुँच रही थी| जब तहुर ने देखा कि रमिशा कमरे में चली गयी है तो वो भी वापस खेत की तरफ चल दिया|
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रमिशा ने बोरो में इशाक के बदन के टुकड़े और घर में रखे कुछ पत्थर भरकर उन्हें कुएं में फेंक दिया| उस घर में पत्थर, लकड़ी या कबाड़ कुछ ज्यादा ही भरा था क्योंकि अब से पहले ये घर रहने के लिए इस्तेमाल ही नहीं हो रहा था| रमिशा ने उन बोरो को कुएं में डालने के बाद कुछ देर तक नीचे देखा| इतने अँधेरे में भी उसे कुएं की गहराई में कुछ दिख रहा था क्या? कहा नहीं जा सकता| हाँ कुएं के पानी की आवाज़ कुछ देर तक आती रही| रमिशा ने कुएं की जगत पर हाथ रखे हुए थे अपने हाथो को नीचे की तरफ दबाना शुरू कर दिया| रमिशा की आँखों में एक बार फिर आंशुओ की धार बहने लगी| फिर खुद से ही बोलने लगी “मेरी जान इशाक हमारी मुहब्बत ना दुनिया को मंजूर थी ना ऊपर वाले को| पता नहीं किस शैतान ने तेरा क़त्ल किया, लेकिन इशाक तेरी रमिशा कसम खाती है तेरी मोहब्बत की... जिन्दा रहेगी तब तक... जब तक के ये मालूम ना करले कि कौन है वो तेरा नामुराद कातिल? और इशाक कसम खाती हूँ जिस दिन पता चला उस नामुराद-कमजर्फ का उस दिन तेरी ये रमिशा उसकी गर्दन जिबह करके तेरे पास आ जाएगी| मुझे नहीं पता इशाक वो दुनिया कैसी होगी जहाँ अब तू है| मेरे इशाक तुझे तो अब ना ही कब्र नसीब होगी और ना ही अल्लहा की और कोई नेमत.... तूने सही कहा था इशाक हमारा फैसला तो अल्लहा ने कर दिया| अब तेरी रमिशा को भी कुछ नहीं चाहिए इस जिन्दगी से और ना ही इस जिन्दगी के बाद”
रामिशा ने एक हिचकी ली और बोली “मेरे इशाक इंतज़ार करना मेरा”
अब रामिशा कमरे में गयी और कमरे से खून और बाकी निसान मिटाने में जुट गयी|
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तहुर खेत में बैठा सोच रहा था कि क्यों उसने रामिषा को छोड़ दिया? फिर एक दम से उसने खुद को ही समझाया “अगर रमिशा को कुछ हुआ तो बिरादरी में चर्चाएँ उडेंगी| उसके परिवार की बहुत इज्ज़त है सब बर्बाद हो जायेगा| फिर उसने एकदम से सोचा कि क्या रमिशा ने भी उस कुएं में ही कूदकर आत्महत्या कर ली होगी? अगर रमिशा को कुछ भी हुआ तो सब पता चल जायेगा दुनिया को| या खुदा मेरे परिवार को इज्ज़त बख्श” उसने ऊपर हाथ करते हुए अल्लहा को सजदा किया|
इस तरह के विचार उसके दिमाग में चल रहे थे जबकि हकीक़त ये थी कि वो रमिशा के प्यार में इस कदर जकड़ा हुआ था कि उसकी बेवफाई को अपनी आँखों से देखकर भी उसका कुछ नहीं कर पा रहा था| उसने इशाक को तो क़त्ल कर दिया लेकिन रमिशा??? उसके साथ तो वो अब भी जिन्दगी गुजारना चाहता था| इन सब खयालातों में खोये कब सुबह हो गयी उसे पता ही नहीं चला| तहुर की हिम्मत नहीं हो रही थी गाँव की तरफ जाने की| फिर वो घर की तरफ चल दिया|
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तहुर जैसे ही घर में घुसा तो रमिशा ने रोज़ के अंदाज़ में ही उसकी अगवानी की| रमिशा ने आकर उसके होठों पर अपने होठों की जुम्बिश से उसका स्वागत किया और बोली “कहाँ रह गए थे, इतना देर कर दी आने में| चलिए जल्दी से नहा लीजिये और फिर कुछ खा लीजिये”|
तहुर कमरे में आया तो कमरा एकदम साफ़ था| एक निसान नहीं था कमरे में रात की घटना का और ना ही रमिशा के चेहेरे पर कोई निसान था उस घटना का| तहुर नहाने के बाद बाहर आंगन में ही खाट पर लेटकर सोच रहा था कि रात उसने कोई ख्वाब देखा या वो सच था| उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो उस कुएं की तरफ जाकर देखे| रमिशा रोज़ की तरह ही एकदम तरोताज़ा थी जबकि रात ही उसने अपने आशिक के मुर्दे के टुकड़े करके कुएं में डाले थे और कमरे में से उसका खून साफ़ किया था|
“बेहद सख्तजान औरत है कमबख्त” तहुर ने बुदबुदाते हुए खुद से ही कहा| रमिशा ने खाना लगा दिया था उसने खाना खाया और कमरे में जाकर लेट गया| जबकि हकीक़त में उसके दिमाग में रात का ही मंजर घूम रहा था| कमरे में रमिशा आई, वो आज भी खुबसूरत लग रही थी| रमिशा को देखते ही तहुर के दिमाग में रात का नज़ारा एकदम से ताज़ा हो गया| उसे याद आई इशाक और रमिशा के नंगे बदनो की वो धींगा-मुस्ती| अब तहुर के भीतर एक अलग ही जोश नुमाया हो गया| उसने एकदम से रमिशा को बाहों में जकड़ा और पागलो की तरह उसके कपडे फाड़कर उसके बदन से अलग कर दिए| पता नहीं वो अपनी उत्तेजना को शांत कर रहा था या फिर ये उसकी नफरत थी| बहुत देर तक दोनों में वो खेल चलता रहा| रमिशा के लिए इसमें कुछ नया नहीं था जब भी एक रोज़ या एक रात को तहुर उससे दूर होता था तो उससे तहुर की आग और ज्यादा भड़क जाती थी| लेकिन आज तहुर के भीतर कुछ ज्यादा ही बेसब्री सी थी| लेकिन इस बात पर रमिशा का ध्यान नहीं गया|
दोनों अब एक दुसरे के साथ लेटे हुए थे| तहुर के दिमाग में अभी भी वो ही सब चल रहा था| वो सोच रहा था “क्या कोई इतनी खुबसूरत और नाज़ुक सी दिखने वाली औरत इतनी शातिर भी हो सकती है?” उसने रमिशा की तरफ देखा वो सोयी हुई थी और उसकी बंद आँखे, उसका तराशा हुआ चेहरा, उसकी तीखी नाक, उसके एकदम सुर्ख होंठ.. उसे बेहद मासूम और खुबसूरत बना रहे थे| पूरी रात जागा था तहुर अब उस पर भी एक बेहोशी सी छा गयी|
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इतने बड़े हादसे के बाद भी रमिशा के चेहरे पर कोई शिकन नहीं आया था| तहुर भी चुप ही रहा ये मालूम नहीं कि उसकी ये चुप्पी खानदान की इज्जत की खातिर थी या फिर वो रमिशा की दीवानगी थी| लेकिन तहुर को लगता था कि रमिशा की कोई मज़बूरी रही होगी नहीं तो वो उसकी लाश को यूँ ठिकाने लगाकर ऐसे शांत ना रहती|
तहुर पूरी तरह ना वाकिफ था कि रमिशा ने इशाक की लाश के सामने कौल किया है कि वो उसके क़त्ल का बदला लेगी और उसके पास आएगी| तहुर की हिम्मत उस कुएं के नजदीक जाने की भी नहीं होती थी| कुआँ घर के भीतर था तो कोई और भी नहीं आता था उस कुएं के पास| हाथ से चलने वाले छोटे पानी खीचने के नल आ चुके थे| तहुर ने भी घर में लगवा रखा था एक पानी का नल, तो पानी के लिए कुएं की जरुरत नहीं रह गयी थी| वो कुआँ अब वीरान था, जैसे वो भी कुछ ना बोलना चाहता हो उस रात के बारें में जबकि वो कुआँ ही तो था जो उस रात के राज़ को अपने में दफ़न किये हुए था| रमिशा और तहुर में से कोई भी उस कुएं के निकट नहीं गया ये भी देखने कि कहीं उस रात के राज़ तैर कर ऊपर तो नहीं आ गए या उनसे बदबू तो नहीं उठ रही| एक महिना और दो महिना फिर महिना दर महिना कुवें ने उस राज़ के हर निसान को जैसे हज़म कर लिया| तहुर को भी अब उस रात का ख्याल आना बंद ही हो गया था| उन दोनों की जिन्दगी एकदम सामान्य चल रही थी|
फिर लगभग चार साल बाद वो समय आया जब तहुर के घर में खुशियों ने दस्तक दी| रमिशा के बेटा हुआ था.. शादी के पाँच साल बाद, जो एक लम्बा समय था| पिछले तीन साल तो तहुर और रमिशा ने अपनी बेऔलादी के लिए सहानुभूति और ताने ही सुने थे लेकिन अब तहुर खुश था| बच्चे के जन्म के कुछ समय बाद एक दिन सुबह ही एक आदमी तहुर के घर आया| तहुर उसे कुएं की तरफ ले जाकर कुछ बातें करने लगा| रामिशा कमरे में से परदे के पीछे से देख रही थी| तहुर और वो आदमी कुएं के एकदम नजदीक चले गए और कुएं को देखते हुए बाते करने लगे| रामिशा को शक हुआ कि इनकी बातें जरुर कुएं के बारे में ही हैं| रमिशा अपनी चुन्नी से पर्दा किये हुए ही बाहर आ गयी और तहुर को अपने पास बुलाया| ये अजीब था कि एक गैर मर्द की मोज़ुदगी में इस खानदान की बहु बस चुन्नी से पर्दा करके ऐसे बाहर आ जाये| पता नहीं क्यों तहुर जो अब उस रात को भूल चूका था उसके मन में एक तरंग उठी उस रात की याद की| तहुर रमिशा के पास गया और दोनों में धीमी आवाज में गुफ्तगु शुरू हो गयी| दोनों की आवाजें इतनी धीमी थी कि उस अजनबी तक नहीं जा रहीं थी|
रमिशा : क्या बात है कौन है ये? क्या दिखा रहे हो इस कुएं में इसे?
रमिशा ने एक साथ कई सवाल किये थे|
तहुर : वो... ये कुआँ बेकार है तो बंद करवाना है|
तहुर के इस एक जवाब ने रामिशा के सारे सवालों का जवाब दे दिया था|
रामिशा को एक झटका लगा ये सुनकर| वो कुआँ जहाँ उसका आशिक सोया है गहरी नींद में वो कैसे बंद हो जायेगा| रमिशा ने बेहद सामान्य अंदाज़ में जवाब दिया “नहीं कोई जरुरत नहीं है”
तहुर : घर में बच्चा है अब, कभी खुदा ना खास्ता कोई हादसा हो गया तो? और अब जरुरत भी क्या है कुएं की?
रमिशा थोड़ी देर समझ ही नहीं पायी... फिर कामुक से अंदाज़ में बोली “तहुर मियाँ ये डर है क्या कि आपकी रमिशा कहीं इस कुएं में कूदकर ख़ुदकुशी ना कर ले? घबराइये मत ये रमिशा तो जन्नत छोड़ दे पर आपको ना छोड़े”
तहुर के चेहेरे पर एक प्यार भरी मुकुराहट तैर गयी| दिल तो उसका किया कि रमिशा को बाहों में भर ले लेकिन वो अजनबी घर में ही था| रामिशा के हुस्न का जादू तहुर पर एक रत्ती भी कम नहीं हुआ था आज भी|
तहुर ने फिर जोर देकर कहा “अरे तुम अन्दर जाओ बेगम क्या करना है इस कुएं का?” और फिर तहुर ने पीछे को घूमकर अपने पीछे कुएं के पास खड़े उस अजनबी से कहा “मियां आज ही काम ख़तम कर दो, जितनी मिट्टी चाहिए खेत से ले आना” तहुर ने इंतज़ार भी नहीं किया था रामिशा के जवाब का और अपनी ये बात पूरी कर दी थी| बात पूरी होते ही तहुर को अपने बाजू पर एक शख्त पकड़ महसूस हुई और उसने देखा कि रमिशा ने अपने नाज़ुक हाथों से ये पकड़ बनायी थी| रमिशा ने उसे अपनी तरफ लगभग जबरदस्ती घुमाते हुए सख्त लहजे में कहा “आपसे कहा ना ये कुआँ बंद नहीं होगा, रही बात हादसे की तो तहुर मियां आपके बेटे की और आगे आने वाली हर औलाद की जिम्मेदार मेरी है” रमिशा की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि उस अजनबी को भी सुन गयी थी| रमिशा ने घूमकर कमरे की तरफ जाते हुए तेज आवाज़ में कहा “कोई जरुरत नहीं कुएं को बंद करने की.... मुझे आदत है इस कुएं की”
रमिशा ने इस अंदाज़ में कहा था कि उसकी बात दोनों के लिए थी उस अजनबी के लिए भी और तहुर के लिए भी|
वो कुआँ बंद नहीं हुआ लेकिन आज की इस घटना ने तहुर के दिल में फिर एक तूफ़ान खड़ा कर दिया था| अपने खेत में बैठा तहुर अपने ख्यालो में खोया था “कैसी बदजात औरत है अपने आशिक की गल चुकी हड्डियों से मोहब्बत निभा रही है और वहीँ मेरे साथ भी हमबिस्तर हो रही है और औलाद पैदा कर रही है”| फिर उसकी आँखों के सामने उसके बेटे का मासूम चेहेरा आया और फिर रमिशा का चेहेरा और उसके वो शब्द “आपके लिए तो मैं जन्नत छोड़ दूँ लेकिन आपको ना छोडूं” तहुर के खयालात एकदम बदल गए और फिर उसके मन में ख्याल आया “डर गयी होगी कि कहीं राज़ ना खुल जाएँ उस रात का, बेवकूफ उस राज़ को और ज्यादा गहराई में दफ़न करने को ही तो इस कुवें को बंद करवा रहा हूँ” फिर तहुर ने अपनी आँखे बंद कर ली और धीरे से बुदबुदाया “या अल्लहा उस मनहूस रात का साया कब हमारी जिंदगियों से दूर होगा? खैर कर अल्लहा..” तहुर ने हाथ ऊपर उठाकर सजदा किया।
तहुर के इस राज़ का राजदार कोई नहीं था इसलिए इस जख्म के हरा होने पर वो खुद से ही बातें करता था| पहले तो बस रमिशा की दीवानगी ही थी अब एक बेटा भी था। तो तहुर के लिए अब और ज्यादा आसान था अपने मन को समझाना| उसके खुद से ही इस बातचीत का नतीजा एक ही होता था... वो ये कि रमिशा उसे धोखा नहीं दे सकती| उस रात के इतने बड़े हादसे ने भी उन दोनों की जिन्दगी को सामान्य और खुबसूरत बनाया था ये भी शायद तहुर के रमिशा पर इस भरोसे का ही नतीजा था|
तहुर शाम को घर आया और ये शाम भी बाकी शामों की तरह ही सामान्य थी| रात में उनदोनो ने बाकी कई रातों की तरह ही एक दुसरे के बदन की गर्मियों को ठंडा किया|
रामिशा ने बड़े प्यार से तहुर से कहा “पिछले चार साल आपने बहुत ताने खाएं मेरी बेऔलादगी को लेकर लेकिन अब नहीं, अब हमारे घर में हमारी और भी औलादें खेलेंगी| बस आप अपनी मोहब्बत कम ना करना और मैं भी आपको आपकी मोहब्बत के नजराने देती रहूंगी” तहुर उसकी इन बातों से बेसुध हो गया और अपने बदन की जवानी की सारी आग या कहो के अपनी मुहब्बत उसपर लुटाने लग गया| उनकी वो रात भी बाकी कई रातों की तरह बेहद खुशनुमा रही|
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तहुर रमिशा पर अपनी मोहब्बत लुटाता रहा और रामिशा ने भी उसे उसकी मोहब्बत के नजरानो से उसे नवाज दिया, खुबसूरत औलादे पैदा करके| तहुर की उसके परिवार से तल्खियां भी ख़त्म हो गयी थी| रमिशा जिस तरह से अपने बच्चो को, घर को और नातों रिश्तों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभा रही थी उसे देखकर सब उसकी बहुत बड़ाई करते थे| उसकी ससुराल, गाँव और रिश्तेदारियों में लोग कहते थे कि बहु हो तो रमिशा जैसी| रमिशा के मायके में बाकी लड़कियों को उसका उदाहरण देकर ताकीद की जाती थी कि रमिशा की तरह ही अपने मायके की इज्ज़त ससुराल में जाकर चमकाएं| तहुर और रमिशा के कुल 6 औलादें हुईं जिनमे चार लड़के और दो लड़कियां थी| उसके सबसे छोटी भी लड़की ही थी| आज तहुर और रमिशा की शादी को 30 साल बीत गए थे रमिशा और तहुर के चेहेरों पर बुढ़ापे ने अपनी नक्काशियां दिखानी शुरू कर दी थी| लेकिन इसमें कोई शक नहीं था कि आज इस उम्र में भी रमिशा की खूबसूरती मन मोह देने लायक थी| और ये रमिशा की दीवानगी थी या कुछ और कि तहुर भी इस उम्र में ख़ासा मजबूत था| उसका वो घर अब और भी खुबसूरत हो चूका था| उसके चारो बेटें पढ़ लिखकर बाहर अच्छी नौकरीयों और कारोबार में थे| उन चारों की शादी हो चुकी थी और उनकी बीवियां और औलादें उनके साथ ही शहरों में रहती थी| दोनों बेटियों का ब्याह कर दिया था| नाती और पोतो को भी देख चुके थे ये दोनों| सब कुछ था जो बदल गया था| दुनिया जहान की तमाम चीज़े अब पास के शहर के बाज़ार में मिल जाती थी| गाँव और शहरों की दूरियों को बसों ने जैसे ख़तम ही कर दिया था| सिनेमा और टी वी ने घरों में दस्तक दे दी थी और उनके जरिये पूरी दुनिया के देश जैसे लोगो के घरों में सिमट कर आ जाते थे| तहुर के दिमाग में अब उस रात के ख्याल बिलकुल भी नहीं आते थे| लेकिन वो कुआँ आज भी वैसे ही था जब सब जगह के कुवें बंद किये जा चुके थे या उनमें रुंध जाने के कारण पानी आना बंद हो गया था तो इस कुवें में आज भी पानी था| जैसे ये कुआँ खुद उस पानी से ढकें रहना चाहता था उस रात के राज़ को|
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तहुर की सबसे छोटी बेटी का ब्याह भी एक अच्छे घर में हो गया था| तहुर जिन्दगी की हर ख़ुशी से सराबोर था| गाँव ही नहीं शहर तक उसकी पहचान एक सफल और संपन्न आदमी के रूप में थी| उसके पुरे खानदान में उसकी बीवी की इज्ज़त थी| उसकी हर औलाद संपन्न थी| अब यारों की महफ़िलों में तहुर ज्यादा समय गुजार रहा था| अब घर में एक बार फिर बस तहुर और रमिशा ही रह गए थे| तहुर ने एक दो दफा शराब भी पी ली थी| आज की रात भी वो शराब पिए हुए था वो भी कुछ ज्यादा ही| थोडा लड़खड़ाते हुए वो घर में घुसा|
रमिशा ने देखा तो उसे उसका यूँ शराब पीकर आना अच्छा नहीं लगा| रमिशा ने रूखे अंदाज़ में कहा “खाना लगा दूँ”
तहुर ने अपने हलके से लडखडाते शब्दों से कहा “नहीं जानेमन ठाकुर शहब के यहाँ दावत थी खा लिया”
रमिशा ने थोडा और तल्ख़ होकर कहा “काफिरों की दावते, काफिरों के शोक और अब काफिरों के ये ऐब भी”
तहुर ने ध्यान नहीं दिया और रमिशा का हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींचना चाहा तो रमिशा ने हाथ झटक दिया|
तहुर ने रामिशा को देखा और थोडा प्यार से बोला “जानेमन आओ ना..... तड़प रहा हूँ मैं”
रमिशा ने गुस्से में कहा “आप नशे में बेसुध हैं, सो जाइये”
तहुर ने फिर हल्का हसते हुए कहा “कारोबारी दोस्त हैं हमारे ठाकुर साहब, कारोबार में इतना तो चलता ही है”
और फिर एक बार तहुर ने रमिशा को अपनी तरफ खींचने का प्रयास किया| जैसे ही तहुर ने रामिशा को पकड़ा तो वैसे ही रमिशा ने तहुर को एक झटके में अलग कर दिया| तहुर को ये बिलकुल अच्छा नहीं लगा| अब तहुर जबरदस्ती पर उतारू हो गया और रमिशा को बिस्तर पर धकेल दिया| ऐसा पहले कभी भी इनकी जिन्दगी में नहीं हुआ था| अव्वल तो रमिशा ने ही कभी तहुर की गुजारिश को ठुकराया नहीं था लेकिन अगर कभी ऐसा हुआ कि तहुर को रमिशा की नाइच्छा लगी तो उसने भी उसके साथ जबरदस्ती नहीं की| लेकिन आज शायद शराब का असर था कुछ और तहुर ना सुनने को तैयार ही नहीं था| तहुर की जबरदस्ती में रमिशा के कपडे भी फट गए थे| रामिषा ने एक जोरदार झटका तहुर को दिया और खुद को अलग कर लिया। इस झटके से तहुर का सर लकड़ी के पलंग के लकड़ी के तकिये से टकरा गया और उसे हल्का सा दर्द भी हुआ| इस दर्द ने तहुर के जूनून को गुस्से में बदल दिया, तहुर थोडा चीखते हुए बोला “रमिशा मै तुम्हारा शौहर हूँ”
रमिशा ने एक दम बेरुखी से जवाब दिया “शौहर हैं तो क्या आप जबरदस्ती करेंगे”
तहुर ने उस गर्म लहजे में ही कहा “जबरदस्ती तुम कर रही हो.. मैं नहीं| मै वो कर रहा हूँ जो एक शौहर और बीवी के बीच होता है और होना भी जरुरी है| तुम इस तरह इनकार नहीं कर सकती”
आज पहली बार रमिशा ने तहुर के भीतर एक रुढ़िवादी मुसलमान देखा था| जो ये कह रहा था कि रमिशा को कभी भी बिस्तर पर खींच लेना उसका हक है क्योंकि वो उसका शौहर है, बीवी की इच्छा इस मामले में कोई मायने नहीं रखती|
रमिशा की आँखों में हल्का सा पानी आ गया था| उसने रुआंसी होकर कहा “रोज़ आप मेरे पास मोहब्बत के जूनून में आते थे लेकिन आज ये शराब का जूनून हैं| मुझे उबकाई आती है शराब की बदबू से, दूर रहिये मुझसे”
शायद रमिशा सही थी, आज तहुर को शराब का जूनून ही था| रमिशा का इनकार तहुर के वजूद पर एक चोट कर रहा था और उसके जूनून को और भी ज्यादा बढ़ा रहा था लेकिन वहीँ रमिशा की जिद भी बढती ही जा रही थी|
तहुर ने चीख कर कहा “रामिशा बकवास मत कर बदजात औरत तू अपने शौहर से जबान लड़ाएगी, मुझ पर हाथ उठाएगी, ये ही सिखा है तूने?” तहुर ने रमिशा के उसे धक्का देने को लेकर ये इल्जाम लगाया था रमिशा पर|
रमिशा अब लगभग रोने ही लगी थी लेकिन उसके शब्दों की सख्ती कम नहीं हुई थी “मैंने हाथ नहीं उठाया आप पर बस आपको अलग किया है, आप ही मुझपर ज़बरदस्ती कर रहें हैं| और ये शराब पीकर मुझे सही गलत ना सिखाओ तहुर मियां| मैं कुफ्र नहीं करती, अपने दीन ओ ईमान की पक्की हूँ”|
तहुर ने गुस्से से पागल होते हुए खिंची हुई आवाज़ में कहा “तू कुफ्र और दीन ईमान की बात कर रही है...तू, बदचलन औरत” तहुर ने इससे पहले भी शराब पी थी| और कई मसलो पर दोनों में पहले भी तल्ख़ बहस हुई थी| लेकिन कभी भी तहुर ने रमिशा पर कोई लांछन नहीं लगाया था| आज उस 30 साल पुराने जख्म की टिस एकदम से उभर कर आई थी, जो तहुर के शब्दों में साफ़ दिख रही थी|
तहुर के इन तल्ख़ अलफाजो से रमिशा भी भीतर तक बिंधी जा रही थी अब उससे रहा नहीं गया और चीखते हुए बोली “तहुर मियां अपना हर फ़र्ज़ आजतक निभाती आई उसका ये सिला दे रहे हो आप मुझे| इतनी भद्दी गलियां दे रहे हो| तुम खुद को ही भूल चुके हो शराबी हो गए हो तुम, शर्म भी नहीं आती...एकबार देखो खुद को”| रमिशा अब जोर जोर से रो रही थी|
तहुर अब पागल हो गया और उसने जिन्दगी में पहली बार...हाँ पहली बार रामिशा पर हाथ उठाया, एक जोरदार तमाचा रामिशा के गाल पर पड़ा| इतना ही नहीं तहुर ने आज अपने सीने में दफ्न राज़ को भी बाहर उगल ही दिया| तहुर गुस्से से ताना देते हुए बोला “मादरजात औरत आज मेरी शराब में बदबू आ रही है, जबकि उस दिन उस शराबी के साथ यहाँ इस कमरे में ही ऐश उड़ा रही थी| उस दिन बदबू नहीं आ रही थी शराब की” तहुर ने ज़मीन की तरफ ऊँगली करते हुए ये बात कही| फिर रमिशा के चेहरे को बिना देखे ही तहुर बोलता रहा “साली भूल गयी.... क्या हाल किया था तेरे यार का? उस दिन तुझे भी जिबह कर देता उसके साथ और फेंक देता उस कुएं में तो ही ठीक रहता” तहुर चुप हो गया पता नही उसकी बात ख़तम हो गयी थी या रामिषा के चहरे के भाव देखकर वो चुप हो गया था|
रमिशा के आगे ये राज़ खुलते ही उसका चेहरा पत्थर हो गया था जो रामिषा जोर जोर से रो रही थी अब उसके चहरे पर एक सख्ती आ गयी थी| रामिषा ने अपने दांत मिसमिसाने के अंदाज़ में कहा “तहुर उस दिन काट दिए होते मुझे और फेंक देते उस कुएं में तो अच्छा होता| यूँ 30 साल इंतज़ार तो ना करना पड़ता”|
तुरंत ही रामिषा ने फुर्ती से तहुर पर एक जोरदार वार किया उसने ये वार पलंग के सिरहाने की तरफ ताँक पर रखि एक कैंची से किया था| वार इतनि फुर्ती से किया था कि तहुर के कुछ समझ ही नहीं आया और कैंची की धारदार नौंक तहुर के माथे को चीरते हुए उसके गाल को पूरा काट गयी, आँख बच गयी थी किसी तरह से| जख्म बहुर गहरा था लेकिन इस वार से तहुर की जान नहीं जाने वाली थी| तहुर इस वार से बचने को पीछे हटा और ज़मीन पर गिर गया| तहुर का नशा उसका जुनून सब काफूर हो चुका था रमिशा का ये रूप देखकर| तुरंत रमिशा ने दुसरे वार के लिए तहुर के सिने को निसाना बनाते हुए दोनों हाथो से पकड़ कर कैंची ऊपर उठायी लेकिन फिर पता नहीं क्या हुआ रमिशा के हाथ एकदम से रुक गए| रामिशा की आँखों से एक आंशुओ की धार फूटी और उसने रोते हुए कहा “इशाक... तुझसे किया ये कौल नहीं निभा पाएगी तेरी रमिशा, आ रही हूँ तेरे पास अब चाहे सजा देना या अपनी मोहब्बत से सराबोर कर देना” इतना कहकर रामिषा तेज़ी से बाहर आंगन की तरफ भाग गयी| और तभी आँगन की तरफ पीठ करे बैठे तहुर के कानों में कुएं के पानी की हलचल की तेज़ आवाज़ आई, जिसने उस घर के सन्नाटे को बिखेर दिया| तहुर जान गया कि रमिशा अपने आशिक के पास चली गयी उस कुएं में| तहुर अपने ज़ख्म पर हाथ रखे बैठा था, वो सुन्न हो चूका था और उसके चेहरे का खून बहकर उस फर्श तक आ गया था। जहाँ 30 साल पहले इशाक का खून बह रहा था।