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यह दिवाली अमावस्या या पूनम

यह दिवाली अमावस्या या पूनम

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अरे तुम, तुम बहुत अच्छी मेहंदी लगाती हो।

हाँ दीदी, बहुत सुंदर लग रही है।

मुझे सिखा दो।

हाँ आप आओ ना हमारे घर।

कौन सी क्लास में हो।

अभी आठवीं में गई हूँ मेरा सातवीं में सेकंड रैंक आया।

गुड।

आज शाम को मूवी जायेंगे।

हाँ दीदी, मूवी के सॉन्ग बहुत अच्छे हैं। हाँ, मुझे ना उसमें डांस भी आता है।

अरे वाह, तुम डांस भी करती हो।

अरे, मेरी बेटी इतना अच्छा डांस करती है। हमेशा फर्स्ट आती है और इस बार तो समर कैंप में बच्चों को सिखाया भी था।

अरे कोमल, मुझे भी सिखा दो।

हाँ दीदी, जरूर आप घर तो आओ हमारे।

कुछ दिनों की मुलाकात के बाद हम हमेशा अगले साल की छुट्टियों में ही मिलते थे मगर इस बार कुछ ऐसा हुआ कि मिले, मगर नहीं मिले बच्ची से।

स्कूल खुले ही थे की स्कूल में फीस के लिए बार-बार कहा जाता। मम्मी चाह रही थी कि तीनों बच्चों को इतने बड़े स्कूल में नहीं पढ़ाये। मम्मी कह रही थी- तुम दूसरे स्कूल में पढ़ो, मगर मैं नहीं चाह रही थी।

मम्मी, मैंने तो किताबों कॉपी में नाम लिख लिया है।

ड्रेस तो इस साल चल जाएगी।

फिर आप मुझे ही क्यों बोलते हो छोटी को बोलो, नहीं तू समझदार है। सायंकाल दूर तक चल सकती है।

अभी रे, छोटी घर के पास ही ठीक है।

मैं, मैं नहीं।

आखिर जिद के आगे माँ को झुकना पड़ा।

तो फीस खुद कहाँ से भरेगी।

मैं मेहंदी लगा कर कमा लूँगी।

उसके ऐसे जवाब से माँ का दिल थम सा गया

इस साल के लिए पापा से बात करती हूँ। नेक्स्ट यीअरर तुम स्कूल चेंज करना।

ठीक है मम्मी, आप बहुत अच्छे हो।

इस साल स्कूल में कई नए बच्चे आए थे शायद उनके पापा का ट्रांसफर हुआ था। बहुत से नए दोस्त बने।

कुछ महीने तो निकल गए।

और एक दिन, सब कहते तुम पार्टी नहीं देती।

मैं क्या कहूँ। अब से मैं तुम्हारे साथ पार्टियों में चलूँगी।

अगर मैं जाऊँगी तो मुझे पार्टी भी देनी पड़ेगी ना और तेरा बर्थडे तो राखी के बाद है ना।

मन में सोच रही थी राखी में मेहंदी लगा-लगा कर बहुत कमाई हो जाएगी फिर तो।

मैं इस बार बर्थडे पार्टी दे दूँगी। माँ तो फालतू फीस के लिए मुझे डरा रही है। मेरा बर्थडे कुछ दिनों में आने वाला है और मैं रोज पैसे जमा कर रही हूँ।

पैसे बहुत जमा कर लिए। मेरी फीस और पार्टी भी हो जाएगी।

मैंने शहर के नए रेस्टरा में पार्टी दी। सब ने बहुत तारीफ की है। सबको बहुत मजा आया। मैं पहली बार सहलियो के साथ बर्थडे पार्टी में गई थी, जिसमें कुछ हमारी क्लास के लड़के-लड़कियाँ थे। पता नहीं मम्मी ने कैसे एक बार में हाँ बोल दिया है।

मम्मी बहुत अच्छी है मगर घर और पार्लर के काम के कारण चिड़चिड़ी हो गई है। आज तीज है, चाँद बहुत सुंदर नजर आ रहा है और सब तो तैयार होने में बिजी हैं इसलिए मम्मी अभी तक घर नहीं पहुँची।

मेरी दोस्ती क्लास के समीर से हो गई। वह मुझे बहुत अच्छा लगता था और बहुत प्यार से बात करता था। मैं जब भी उदास रहती मुझसे सब पूछता था।

पता नहीं कब वह प्यार महसूस होने लगा। रोज मिलना बातें करना, यह सब अच्छा लगने लगा। कभी-कभी सहेलियाँ एक-दूसरे को चिढ़ाती- यह तेरा वाला, वह मेरा वाला

और हम बहुत मजे करते क्लास में, बेंच में अक्सर हम एक-दूसरे के लिए कुछ लिखते थे। हम स्पोर्ट्स पीरियड में क्लास में ही बैठकर बातें करते थे। कभी-कभी फिल्म जाने की प्लानिंग भी करते थे मगर गए कभी नहीं। कभी एक-दूसरे का होमवर्क करते तो कभी क्लासेस मैं एक-दूसरे की टेस्ट में हेल्प।

एक दिन उसने बेंच पर आई लव यू लिखा और मुझे इशारा किया। मैं पढ़ कर भाग गई। अगले दिन स्कूल की छुट्टी थी तो हम सब नानी के घर थे। मैं मंडे का इंतजार कर रही थी। कब स्कूल जाऊँ, मगर मम्मी को पार्लर का कुछ सामान लेना था। हम चाह कर भी ना जा सके।

मुझे रुकना पड़ा मगर वह क्या सोच रहा था पता नहीं। शायद नाराज होगा मगर मुझे उसके साथ समय बिताना अच्छा लगता था। फिर मंडे की रात को देर से आने की वजह से मैं दूसरे दिन भी स्कूल नहीं गई और अगले दिन जब गई तो वह मुझसे बात नहीं कर रहा था। मुझे देखा भी नहीं।

हमारी तरफ देख भी नहीं रहा था। उसे लगा मैडम को कहीं कम्पलेन न कर दूँ, लेकिन मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। फिर हमारी दोस्ती अच्छी हो गई।

कभी-कभी एक-दूसरे की पसंद का टिफिन लाते। छोटी-छोटी बातें भी हम शेयर करते थे, या यूँ कहूँ, प्यार हो गया।

हमारे पास मोबाइल नहीं था इसलिए कागज पर लिख कर हर बात कहते थे।

1 दिन किताब के बीच रखा लव लेटर मम्मी के हाथ लगा। फिर घर में तूफान सा आ गया। मम्मी रोज हमारी चैकिंग करती। सबके सामने डरती थी। बहन भी जासूस की तरह मम्मी को सब बताती थी। एक दिन हमारी साइकिल पंचर हो गई तो उसने कहा- तुम हमारी साइकिल ले जाओ पंक्चर बनाने में टाइम लगेगा। बारिश बहुत हो रही है। दुकान बहुत दूर है। हम तुम्हारी साइकिल घर छोड़ देंगे।

मैं कुछ कह नहीं पाई। बहन को बैठाकर घर पहुँची। पापा घर पर थे। सवाल पर सवाल पूछने लगे। इतने में मम्मी भी आ गई। मम्मी-पापा दोनो चिल्लाकर बातें कर रहे थे, और पहली बार समीर मेरे घर आया था। उनकी बातों से वह डर सा गया। मैं अंदर चली गई।

मम्मी घर पर हर वक़्त अजीब से सवाल-जवाब करती और मेरी बहन जासूसी करती। थोड़ी-थोड़ी बात या यूँ कहो, हर बात मम्मी को बताती थी। मम्मी के आने का इंतजार करती थी। मुझे ब्लैकमेल करती थी- मुझे यह दो, मुझे वह दो, मेरा होमवर्क करो, नहीं तो मैं मम्मी को बता दूँगी।

हालांकि मैंने ऐसा कभी कुछ नहीं किया था, सिवाय कुछ लेटर लिखने के अलावा। घर पर सबका नजरिया मेरे प्रति बदल गया था। एक ग्रहण सा लग गया था। अमावस्या की तरह अंधेरी रात होती थी, मुझे ऐसा लगता था। मुझे कोई प्यार नहीं करता। उनके ताने, उनकी बातें, मुझसे सहन नहीं होती थी। मेरे प्रति अपनापन नहीं था। मुझे सिर्फ अब दोस्तों में ही अपनापन लगने लगा।

एक दिन छोटी के पेट में दर्द था। मम्मी स्कूल अचानक आई। मुझे लंच टाइम में समीर के साथ बात करते देख लिया और हर वक़्त ताने मारती। वे उसके घर गई और उसे बहुत सुनाया- मैंने कहा था, मेरी बेटी से बात मत करना, तो उसे क्यों परेशान कर रहे हो। दोबारा मुझे उसके साथ मत दिखना।

मुझे हर वक्त स्कूल के टेस्ट, मम्मी की बातें ही सुनाई और दिखाई देती।

कभी-कभी लगता मर ही जाऊँ। कुछ दिनों बाद समीर का बर्थडे था मेहंदी से पैसे जमा किए थे। एक अच्छा गिफ्ट दूँगी और दो दिन पहले से ही जब किसी को मेहंदी लगाने गई तो बैग में रखा था। साथ में एक प्यारा सा मैसेज भेज दिया। अब मुझे वही अपना लगता था। क्योंकि घर पर मम्मी डाँटती और बार-बार बातों-बातों में कहती- मर जा, ऐसी औलाद से अच्छा न होती।

दिन भर परेशान करती हो। घर का रूखापन बढ़ गया था और समीर के प्रति मेरा अपनापन भी। फिर रोज स्कूल जाने का इंतजार करती थी। कुछ घंटे सुकून मिलता था।

मुझे घर के सारे काम करने पड़ते थे और छोटे भाई के पूरे दिन देखभाल भी। उसे पढ़ाती भी थी और अपनी पढ़ाई में बहुत थक जाती थी मगर मम्मी को फुरसत ही नहीं थी पार्लर से। कुछ दिनों बाद दिवाली थी। हर वक़्त मुझे काम बोलती। कभी 1 मिनट खाली नहीं बैठने देती थी और मैं नहीं कहूँ तो बहुत डाँटती थी। कहती थी- ऐसी औलाद ही क्यों पैदा हुई, ना होती तो अच्छा था।

अब दिवाली में घर का काम बढ़ गया था और स्कूल का होमवर्क भी। मम्मी कभी प्यार से बैठकर हमसे बात भी नहीं करती थी। दिवाली के पहले रंगोली में देर हो गई थी। मैंने दीए नहीं बनाए। बहुत गुस्सा हो गई मम्मी। उनको काम समय पर पसंद है। वे तीनों को डाँटने लगी। केवल उठते-बैठते काम, हिसाब-किताब की बातें। कभी कभी लगता है, माँ ऐसी होती है ?

अपना टिफिन भी मैं खुद बनाती और बाकी को भी बना कर देती हूँ। मेरे बाल इतने लंबे थे कि मुझे चोटी करने में टाइम लगता था मगर कभी मम्मी ने नहीं की। मैं बहुत होशियार हूँ। सब कहते हैं, बस मम्मी कहती है- नालायक बेटी। और जब परेशान होती तो है कहती है- मर जाओ।

उनके शब्द कभी-कभी सहन नहीं होते थे। लगता था मर जाऊँ। सारा दिन मुझे बातें सुन-सुन कर बहुत दुख होता था। कई बार मम्मी दोनों बच्चों का गुस्सा मुझ पर उतारती थी। दिवाली की छुट्टियां लगने वाली थी। हमें बहुत होमवर्क मिला था और छुट्टियों से पहले मुझे एक समीर का लेटर, जिसे मैं बैग में लेकर रख दी मगर पढ़ नहीं पाई। छिपा कर रखा था। पता नहीं कैसे बहन ने मम्मी को दे दिया।

मैंने कॉपी के कवर के अंदर रखा था जिससे बस पढ़ने ही वाली थी। मम्मी तो बस तूफान की तरह तेज-तेज मारती जा रही थी। बहुत मारा, अब इतना गुस्सा था, लगा सच में मर जाऊँ।

इस दिवाली मेरी बेटी।

नहीं, मैंने उसको बहुत मारा। अब वह गुस्से में बाथरूम के पास रखा मिट्टी का तेल डालकर जल गई, जल चुकी थी। हम सब ने उसे बचाने की बहुत कोशिश की। मैंने जिंदगी की सारी जमापूंजी लगा दी मगर हम उसे नहीं बचा पाए। दिवाली में पटाखे, दीए जलाते मगर मैंने बेटी को जलते देखा। वह नहीं बच सकी। मुझे हमेशा बहुत दुःख होता है कि उसके कोमल मन को मैं नहीं समझी। हमेशा गुस्सा किया। काम कराया। काश वो आ जाए। मैं कभी नहीं डाँटूूँगी ।बहुत प्यार करना चाहती हूँ। करूँगी, उसकी पसंद की चीजें बनाऊँगी। जिसे मैं बना कर दूँगी

इस दिवाली तुम आ जाओ बेटी, तुम्हारी बहुत याद आती है। मुझे माफ कर दो, कभी नहीं समझा तुम्हें, काश तुम हमारे साथ होती। तुम्हारे बिना यह दिवाली सूनी है। रंगोली डालो, मेहंदी की तारीफ सब करते हैं। सब तुम्हें याद करते हैं। मैं तुम्हें कभी नहीं मारूँगी। तुम आ जाओ।

जीवन में कभी-कभी कुछ ऐसा होता है कि वापस नहीं आ सकता। हर रिश्ते को प्यार से सँवारे। इस दिवाली संकल्प करें, हमेशा सबके मन को समझे। प्यार से बच्चों को समझाए। गुस्सा करने, ताने देने से कोमल मन को कितना ग़लत प्रभाव पड़ता है। मेरे से ज्यादा कोई नहीं जान सकता। एक बेटी, मैंने अपने कोध्र के कारण खो दी मगर दूसरी नहीं खोना चाहती।

मैंने अपने काम को घर पर ही करना उचित समझा और बच्चों पर पूरा ध्यान देती हूँ। उम्मीद करता हूँ कि मैं कभी भी गुस्से में बच्चों को कुछ गलत शब्द नहीं कहूँगी।

आप भी इस दिवाली संकल्प कीजिए। रिश्तो को प्यार से सींचे। मिठास बनाए रखें।

मैं अपनी बेटी वापस नहीं ला सकती मगर अब मैं गुस्सा नहीं करती। किसी को ग़लत शब्द नहीं कहती। मुझे माफ़ कर देना। मेरी बच्ची, मैंने तुम्हें समय नहीं दिया। तुम पूर्णिमा के चाँद की तरह सुंदर, शीतल, प्यारी बच्ची थी मेरी जिसे मैंने अमावस्या के अंधेरे की तरह समझा.......


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