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Mahesh Dube

Thriller

4.8  

Mahesh Dube

Thriller

मकड़जाल भाग 13

मकड़जाल भाग 13

4 mins
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मकड़ जाल भाग 13

 

करियप्पा के कत्ल से एक दिन पहले मेरे पाँव के अंगूठे पर जोरदार ठोकर लग गई थी और नाखून उखड़ गया था तब सुब्बू ने ही उसपर प्याज और हल्दी बाँधी थी। जब मोर्ग में सुब्बू ने करियप्पा की लाश के पाँव देखे तो दोनों अंगूठों के नाख़ून सलामत थे। वह फौरन समझ गई कि वह किसी और की लाश है।  वह नहीं जानती थी कि दिव्या षड्यंत्र के तहत उस लाश को अपने पति की बता रही है। अगर वह वहीँ राज फाश कर देती तो हमारे सपने चकनाचूर हो जाते तो दिव्या उसे किसी तरह घर ले आई और मुझे फोन किया। मैं अगले दिन सुब्बू को समझाने उसके घर गया। वह मुझे देखते ही विक्षिप्त सी हो गई। उसने मुझसे भगवान से डरने को कहा। अगर वह पुलिस तक पहुंच जाती तो मेरा खेल।खत्म हो जाता। मैंने उसे पांच लाख का लालच भी दिया पर उसने मेरा साथ देना स्वीकार नहीं किया तो मैंने उसका गला रेत दिया क्यों कि मुझे डर था कि तुम कभी भी उस तक पहुंच कर सच उगलवा लोगे 

तुम्हारा डर सही था रत्नाकर! मैं उस तक पहुंच गया था पर कुछ मिनटों की देर हो गई। पर तुमने अपने सेफ ठीहे पर दिव्या को क्यों बुलाया? क्या तुम्हे डर नहीं था कि पुलिस उसका पीछा कर रही होगी?

दिव्या को मैंने खुद से संपर्क करने से बिलकुल मना कर रखा था। उसने एक बार सुब्बू प्रकरण की जानकारी देने के लिये होटल फोन किया तो मैंने उसे बहुत डांटा और फोन न करने को कहा क्यों कि मैं जानता था कि पुलिस इसके फोन टेप भी करवा सकती है। इसपर उसने अपनी तरफ से पूरी सावधानी बरती और मुंह ढक कर मुझे तुम्हारे बारे में सन्देश देने टैक्सी से होटल आई। फिर भी मैं ने अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए फौरन वह होटल छोड़ दिया। मुझे डर था कि कोई इसका पीछा न कर रहा हो।

मैं पीछे ही था विशाल बोला, वहाँ भी एकाध मिनट लेट हुआ था। 

दिव्या ने खिड़की से झाँक कर तुम्हे पहचान लिया था तभी तो आनन फानन में हम बैक डोर से भागे। मैंने दिव्या को टैक्सी से घर रवाना किया और एक पीसीओ फोन से डॉ सान्याल को कॉल करके दिव्या की एलिबाई गढ़ने का काम सौंपा। 

वो क्यों मदद कर रहा था तुम लोगों की?

मैंने उसे दस लाख रूपये पहले ही दे रखे थे। मुझे पता था कि इस खेल में उसकी कहीं भी जरूरत पड़ सकती थी। पैसे मिलने पर बीस लाख और देने का वादा था। 

और नई नौकरानी?

ये तो बच्ची है। दिव्या ने कुछ कहकर मदद ले ली होगी।

मुझे घायल करके इन्होंने तुम्हे कैसे सूचित किया? 

उसी पीसीओ का नम्बर मैंने दिव्या को दिया था कि मुझे तुम्हारे बारे में बताती रहे। मैं पीसीओ के पास ही एक लॉज में ठहरा था। इनकमिंग कॉल के लिए मैंने पीसीओ वाले को बीस रुपये देने को कहा तो वह कॉल आते ही बुलाने आ जाता। वही हुआ। पर यहाँ आकर तो...और रत्नाकर फिर फफक पड़ा। 

तुमने अपनी ओर से बहुत शातिराना खेल खेला रत्नाकर ! लेकिन देख लो तुम्हारे साथ क्या हुआ। किसी निर्दोष की जान लेने वाला कैसे सुखी रह सकता है? ऊपरवाले ने तो तुम्हारा इन्साफ कर ही दिया है लेकिन क़ानून भी तीन तीन कत्लों के लिए जरूर फांसी देगा।  

          रत्नाकर ने चेहरा उठाकर विशाल को देखा और उसकी आँखों की विचित्र चमक देखकर वह डर गया। एक अनजाना संकल्प उनमें चमक रहा था। इसके पहले कि वह संभल पाता रत्नाकर ने उसके हाथ से रिवाल्वर झपट ली और हाथ उठाया। भय की एक ठंडी लहर विशाल की रीढ़ में दौड़ गई और आसन्न मृत्यु के भय से उसकी आँखें बंद हो गयी। एक धमाका हुआ और उसके साथ ही विशाल पीठ के बल गिरा लेकिन यह देखकर उसे आश्चर्य हुआ कि गोली उसे नहीं लगी थी। उसने पलटकर देखा तो रत्नाकर ने अपनी कनपटी के चीथड़े उड़ा लिए थे।  

      सारे केस का हल हो गया था और एकमात्र जीवित अपराधी कमउम्र नौकरानी को बालसुधार गृह भेज दिया गया। इंस्पेक्टर वीरेंद्र सिंह ने विशाल की कर्मठता की भूरि- भूरि प्रशंसा की और सुभाष पांचाल कृतज्ञता प्रकट करने आया। विशाल को अपने सभी सवालों के जवाब भी मिल गए थे लेकिन इंसान पैसों के लालच में इतना क्यों गिर जाता है यह सवाल अनुत्तरित रह गया। 

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