वड़वानल - 70
वड़वानल - 70
गॉडफ्रे और रॉटरे खुश थे। इंग्लैंड से जो हवाई जहाज़ मँगवाए थे वे हिन्दुस्तान पहुँच गए थे। HMIS ग्लास्गो एक–दो दिनों में पहुँचने वाला था। गॉडफ्रे द्वारा दी गई अन्तिम निर्णायक चेतावनी के बाद सैनिक शान्त थे। इसका मतलब उन्होंने यह लगाया कि सैनिक डर गए हैं।
‘‘रॉटरे, पुलिस कमिश्नर को फ़ोन करके शहर में सब जगह कर्फ्यू लगाने के लिए तैयार रहने को कहो।’’ गॉडफ्रे ने कहा।
‘‘सर, अब इसकी क्या ज़रूरत है ?’’ रॉटरे ने पूछा।
''Let us hope for the best and be prepared for the worst. मान लो, नौसैनिकों ने कुछ गड़बड़ की और हमें हवाई हमला करना पड़ा तो नागरिक सैनिकों की ओर से खड़े होंगे। संगीनों के ज़ोर पर उन्हें घरों में बन्द रखने के लिए कर्फ्यू लगाना होगा।’’
‘‘एक बार ये सब ख़त्म हो जाए तो जान छूटे!’’ रॉटरे के चेहरे पर तनाव के लक्षण स्पष्ट थे।
‘‘ज़्यादा से ज़्यादा अठारह घण्टे, अठारह घण्टों में यदि स्थिति सामान्य न हो जाए तो कहना।’’ अनेक तूफ़ानों का मुकाबला कर चुके गॉडफ्रे ने हँसते हुए कहा, ‘‘मेरे अनुमान से वे अभी, कुछ ही देर में बातचीत के लिए आएँगे। यह सब हम पहले ही की तरह करेंगे। मगर मुझे ऐसा लग रहा है कि ब्रिटिशों के हिन्दुस्तान छोड़ने का वक्त अब आ गया है,’’ गॉडफ्रे ने गम्भीरता से कहा।
‘‘क्यों ? क्या महात्मा गाँधी कोई आन्दोलन छेड़ने वाले हैं ?’’ रॉटरे ने पूछा।
‘‘सरकार महात्माजी के आन्दोलन को घास भी नहीं डालेगी। मगर अब साम्राज्य की नींव ही चरमरा रही है। जिस सेना के और पुलिस के बल पर हम अपनी हुकूमत टिकाए हुए थे वे ही सैनिक और पुलिस अब हमारे ख़िलाफ़ जा रहे हैं। आज यदि सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर भी दिया, तो भी वे चोट खाए नाग की तरह हैं। फ़न निकाल कर कब दंश करेंगे इसका कोई भरोसा नहीं।
इस उपमहाद्वीप में अन्य उपनिवेशों से सेना लाकर हुकूमत टिकाना कठिन है,’’ गॉडफ्रे ने स्पष्ट किया।
वे काफ़ी देर तक अगले दिन के आत्मसमर्पण की योजना के बारे में बात कर रहे थे। पहरेदार सैनिक ने आकर सूचना दी कि सेन्ट्रल कमेटी के कुछ सदस्य मिलने आए हैं।
गॉडफ्रे ने उन्हें अन्दर भेजने को कहा।
खान, मदन, दत्त और गुरु अन्दर आए। उनके चेहरे उतरे हुए थे।
''What is your decision ?'' गॉडफ्रे की आवाज़ कठोर थी। उसने सैनिकों को बैठने के लिए भी नहीं कहा।
‘‘अगर आप ‘कैसल बैरेक्स’ और अन्य नाविक तलों का घेरा उठा दें तो...’’
खान को बीच ही में रोककर गॉडफ्रे गरजा, ''Nothing doing. हमारा निर्णय अटल है। बिना शर्त आत्मसमर्पण। कब कर रहे हो आत्मसमर्पण यह बताओ।’’ गॉडफ्रे का चेहरा निष्ठुर हो गया।
खान, दत्त, गुरु और मदन भले ही ऊपर से शान्त प्रतीत हो रहे थे, मगर मन में बवंडर उठ रहा था। वे नि:शब्द हो गए थे।
''You may go now!'' उन चारों को ख़ामोश देखकर गॉडफ्रे ने उन्हें लगभग बाहर ही निकाल दिया।
गॉडफ्रे के बर्ताव से वे चिढ़ गए थे। ‘‘समझता क्या है अपने आप को ? कम से कम बैठने को भी नहीं कहा! दरवाज़े के कुत्ते को भी इससे ज़्यादा इज्ज़त दी जाती है।’’ मदन से अपमान बर्दाश्त नहीं हो रहा था।
‘‘अगर कांग्रेस और लीग ने समर्थन दिया होता तो ऐसी दयनीय हालत न हुई होती ।’’ दत्त शान्त था।
‘‘क्या हमें एक बार फिर सरदार पटेल से मिलना चाहिए ?’’ खान ने पूछा।
‘‘मैं नहीं समझता कि इससे कोई लाभ होगा।’’ दत्त ने कहा।
‘‘मिलने में क्या हर्ज है, नहीं तो...’’ मदन बोला।
‘‘ठीक है, देख लेते हैं मिलकर,’’ गुरु ने कहा ।
वे चारों फिर एक बार सरदार पटेल से प्रार्थना करने चले।
ठीक ढाई बजे कोस्टल बैटरी के सामने क्षितिज रेखा पर चार बिन्दु दिखाई दिये। ये बिन्दु धीरे–धीरे बड़े होने लगे और नौसैनिक समझ गए कि गॉडफ्रे ने जिनकी धमकी दी थी, ये वे ही हवाई जहाज़ हैं। हवाई जहाज़ तेज़ी से आगे बढ़ रहे थे। ‘पंजाब’ पर सुजान चीखते हुए अपनी एन्टी एअरक्राफ्ट गन की ओर दौड़ा, ‘‘अगर हम बरबाद हो रहे हैं तो तुम्हें भी नेस्तनाबूद कर देंगे।’’
‘‘सुजान, बेवकूफी न कर!’’ चैटर्जी उसके पीछे दौड़ा और उसे गनर्स सीट से खींचते हुए चिल्लाया, ‘‘तेरी बेवकूफ़ी से पूरी नौसेना ख़त्म हो जाएगी!’’ उसने विरोध करने वाले सुजान को दो थप्पड़ मारे। लड़खड़ाते सुजान ने ख़ुद को सँभाला और फूट–फूटकर रोने लगा।
सुरक्षित ऊँचाई पर ये हवाई जहाज़ उड़ रहे थे और हिन्दुस्तानी जहाज़ों की तोपें शरणागत की भाँति सिर झुकाए खड़ी थीं।
रास्ते पर जगह–जगह सैनिक खड़े थे। खान, दत्त, गुरु और मदन यूनिफॉर्म में थे। उनके पास परिचय–पत्र थे, फिर भी उन्हें हर नाके पर रोका जा रहा था, उनकी छानबीन की जा रही थी, सवाल पूछे जा रहे थे, वरिष्ठ अधिकारियों के सामने खड़ा किया जा रहा था। सारी औपचारिकताएँ पूरी होने के बाद ही उन्हें आगे जाने दिया जा रहा था।
‘‘अपने ही घर में हम चोर हो गए हैं!’’ गुरु ने चिढ़कर कहा। औरों ने गहरी साँस छोड़ी।
रास्ते में एक–दो जगहों पर जले हुए वाहनों के ढाँचों से धुआँ उठ रहा था, जगह–जगह खून बिखरा था, जम गए खून पर मक्खियाँ भिनभिना रही थीं।
‘‘ब्रिटिश सैनिकों के सामने आज खुद क्रूरता ने भी गर्दन झुका दी होगी।’’ दत्त का स्वर भावविह्वल था।
‘‘इण्डोनेशिया में भी तो उन्होंने यही किया था! ब्रिटिश साम्राज्य की नींव ही गुलामों के रक्त–मांस की है।’’ गुरु ने जवाब दिया।
‘‘सरदार से मिलकर हम अपना समय ही बरबाद करने वाले हैं।’’ दत्त ने कहा।
‘‘अन्तिम परिणाम चाहे जो हो, हम अन्तिम घड़ी तक कोशिश करेंगे। सैनिकों का घेरा उठाने और सम्मानपूर्वक बातचीत के लिए हर सम्भव पत्थर पलटकर देखेंगे। कहीं न कहीं आधार मिलेगा।’’ खान की आशाएँ धूमिल नहीं हुई थीं।
सरदार पटेल से चर्चा करने के बाद जब वे ‘तलवार’ पर वापस लौटे तो रात के साढ़े आठ बज चुके थे। शहर में कर्फ्यू का ऐलान हो चुका था। मदन ने सभी जहाज़ों और नाविक तलों को सन्देश भेजकर प्रतिनिधियों को बुला लिया था। सन्देश मिलते ही ठेठ ठाणे से प्रतिनिधि ‘तलवार’ की ओर चल पड़े। प्रतिनिधियों के पास परिचय–पत्र होने के बावजूद कइयों को बीच में रोका गया। कुछ लोगों को आगे ही नहीं जाने दिया, कुछ को घण्टा–डेढ़ घण्टा रोककर रखा गया। जब तक सारे प्रतिनिधि तलवार पर पहुँचे रात के बारह बज चुके थे।
हवा में अब काफ़ी ठण्डक हो गई थी। नौसैनिक भविष्य की चिन्ता के दबाव में थे। दोपहर को दो बजे तक जिन जहाज़ों पर उत्साह और ज़िद मचल रहे थे, वहाँ अब नैराश्य का वातावरण था। रास्ते से ब्रिटिश सैनिकों के जूतों की अनुशासित खटखट के साथ बीच–बीच में तेज़ी से गुज़रने वाले सैनिक–ट्रकों की आवाज़ मिल जाती थी। सरकार ने अगले दिन की कार्रवाई की शुरुआत कर दी थी।
चार दिनों से जागे हुए जहाज़ों और नाविक तलों के सैनिक अभी भी जाग रहे थे। हरेक के मन में एक ही जिज्ञासा थी, क्या सेन्ट्रल कमेटी हथियार डालने को कहेगी या संघर्ष जारी रखेगी ? जहाज़ों और नाविक तलों पर एक डरावनी ख़ामोशी छाई थी और इस ख़ामोशी के बोझ तले हर कोई नि:शब्द हो गया था।
‘तलवार’ पर सेन्ट्रल कमेटी की बैठक में छत्तीस प्रतिनिधि उपस्थिति थे। बैठक से पहले सबने गम्भीरता से ‘सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा’ गीत गाया।
‘‘दोस्तों, आज हम एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए जमा हुए हैं।’’ खान की आवाज़ में जोश नहीं था। खान ने सुबह से हुई घटनाओं की रिपोर्ट पेश की:
‘‘आज शाम को हम सरदार पटेल से मिले। उन्होंने कांग्रेस पार्टी की ओर से एक सन्देश दिया है। मैं पढ़कर सुनाता हूँ।’’ खान न संदेश पढ़ना आरंभ किया:
‘‘वर्तमान में निर्मित दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति में कांग्रेस रॉयल इंडियन नेवी के सैनिकों को यह सलाह देती है कि जैसा कहा गया है उस तरह से वे हथियार डालकर आत्मसमर्पण की औपचारिकताएँ पूरी करें। नौसैनिकों की बलि नहीं चढ़ेगी और उनकी न्यायोचित माँगें सरकार जल्दी से जल्दी मान्य करे इसके लिए कांग्रेस अपनी ओर से पूरी कोशिश करेगी‘‘सारे शहर में भयानक तनाव है, जान–माल का भयंकर नुकसान हुआ है। नौसैनिक और सरकार दोनों पर ही दबाव है।
‘‘सैनिकों के उद्देश्य और उनके धैर्य की कांग्रेस प्रशंसा करती है। वर्तमान स्थिति में कांग्रेस की उनके प्रति सहानुभूति होते हुए भी कांग्रेस उन्हें यह सलाह देती है कि इस तनाव को समाप्त करें। यह सभी के हित में है।’’
खान ने सन्देश पढ़कर सुनाया। सभी सुन्न हो गए। पटेल के सन्देश में कोई भी नयी बात नहीं थी ।
‘‘दोस्तों! सरदार पटेल की राय में यदि हम अपना संघर्ष जारी रखते हैं तो यह शीघ्र ही आने वाली स्वतन्त्रता के लिए हानिकारक होगा। हम रॉटरे और गॉडफ्रे से मिले थे। उन्होंने तो सीधे–सीधे धमकी ही दी है: चुपचाप आत्मसमर्पण करो, वरना नेस्तनाबूद कर देंगे। और अपनी धमकी सच करने की तैयारी भी उन्होंने शुरू कर दी है। शहर में आज कर्फ्यू लगा दिया गया है। 'Shoot at sight' ऑर्डर्स दे दिए गए हैं। हम लीग के नेताओं से भी मिले। वे जिन्ना से सम्पर्क करके सलाह देंगे।’’ खान परिस्थिति की कल्पना दे रहा था।
‘‘दोस्तों! हमारे पैरों तले ज़मीन पूरी तरह खिसक गई है। जिनकी तरफ़ हम बड़ी आशा से देख रहे थे, उन्होंने ही अपने हाथ ऊपर उठा दिये हैं। हम आज फाँसी के तख्ते पर खड़े हैं और ये राजनीतिक पक्ष और सरकार हमारे पैरों के नीचे की पटरी खींचने की तैयारी में है। मेरा ख़याल है...’’ खान पलभर को रुका, उसका गला भर आ या...
''Come on, do not lose your heart Khan, speak out.'' बगल में बैठा मदन पुटपुटाया।
‘‘दोस्तों! मेरा ख़याल है कि हम यह संघर्ष...’’ खान की आँखें डबडबा गई थीं। उसे शब्द नहीं सूझ रहे थे। पलभर को ऐसा लगा जैसे शक्तिपात हो गया हो, धरती फट जाए और उसमें समा जाऊँ तो अच्छा होगा। पूरा हॉल नि:शब्द हो गया था। अनेकों के चेहरे पर उत्सुकता थी, कुछ लोगों को परिस्थिति का धुँधला–सा एहसास हो गया था। ''Come on Speak out, man.'' दत्त की आवाज़ सामने बैठे प्रतिनिधियों ने साफ़–साफ़ सुनी।
‘‘मेरा ख़याल है कि हम यह संघर्ष यहीं रोक दें और...’’ खान शब्द समेट रहा था। उसकी आँखें डबडबाई हुई थीं, शब्द सूझ नहीं रहे थे। कब्रिस्तान सी ख़ामोशी छाई थी। खान ने दत्त की ओर देखा, धीरज बटोरते हुए वाक्य पूरा किया, ‘‘बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दें!’’
ऐसा लगा मानो सब पर बिजली गिर गई है। सभी स्तब्ध रह गए। पलभर को निपट ख़ामोशी छाई रही। फ़िर, जैसे शान्त वातावरण में एकदम मूसलाधार बारिश होने लगे, वैसा ही हुआ। सभी लोग एकदम ही अपनी–अपनी भावनाएँ व्यक्त करने लगे। कुछ लोग अपना आपा खोकर चीखते हुए आगे की ओर बढ़ने लगे।
‘‘राष्ट्रीय नेताओं की परवाह क्यों करें ? कराची, कोचीन, विशाखापट्टनम के नाविक तल और सारे जहाज़ हमारे साथ हैं। मुम्बई, कराची की जनता हमारे साथ है। मुम्बई, जबलपुर, दिल्ली आदि स्थानों के तल हमारे साथ हैं। सामान्य जनता हमारी खातिर सड़कों पर उतर आई है, हमारे लिए खून बहा रही है। ऐसी परिस्थिति में पीछे हटने का मतलब है हमें समर्थन देने वालों के प्रति गद्दारी। ये गद्दारी हम नहीं करेंगे। हम हँसते–हँसते मृत्यु को स्वीकार करेंगे, मगर आत्मसमर्पण नहीं करेंगे।’’ चट्टोपाध्याय चीखते हुए कह रहा था।
‘‘हम लड़ेंगे, बिलकुल आखिरी दम तक लड़ेंगे। हमारा साथ देने के लिए भूदल और हवाईदल अवश्य आगे आएँगे। क्या जान के डर से आत्मसमर्पण करके हम अमर हो जाएँगे ? आत्मसमर्पण के बाद की बेशर्म ज़िन्दगी हम नहीं चाहते। हमें वीरगति चाहिए।’’ यादव चिल्ला रहा था।
‘‘अरे, ये नेता लोग अब थक चुके हैं। इन बूढ़े बैलों में हिम्मत ही नहीं है टक्कर देने की। हम लडेंगे, हम लड़ेंगे। जनता के साथ मिलकर लड़ेंगे। ब्रिटिश साम्राज्य तो अब जर्जर हो चुका है, अब ज़रूरत है सिर्फ एक ज़ोरदार धक्के की। वह धक्का हम देंगे और आज़ादी प्राप्त करेंगे।’’
आवाज़ें ऊँची होती जा रही थीं। पता ही नहीं चल रहा था कि कौन क्या कह रहा है। सभी एक साथ बोल रहे थे। कुछ लोग संघर्ष जारी रखने के पक्ष में थे तो कुछ लोगों की यह राय थी कि वे अकेले पड़ गए हैं, अत: संघर्ष यहीं रोक देना चाहिए। आज तक अनुशासित रहने वाले सैनिक अनुशासन भूल गए थे। सभा के सभी नियमों को वे ठुकरा रहे थे और इस हंगामे में कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
मदन और खान सिर पकड़कर बैठे थे। उनके मन में तूफ़ान उठ रहा था। मदन स्वयँ भी आत्मसमर्पण के निर्णय के ख़िलाफ़ था।
‘हमने आगे बढ़कर इन सैनिकों का आत्मसम्मान जागृत किया, उनके मन में सोई पड़ी स्वतन्त्रता की आस को जगाया और आज हम ही उन्हें पीछे घसीट रहे हैं, ’ मदन अपने आप से बड़बड़ा रहा था।
‘विद्रोह करके जमे रहो। एकाकी संघर्ष के लिए तैयार हो जाओ, अनेकों का साथ मिलेगा, ’ मन कह रहा था।
‘तू इस समिति का एक अंश है। समिति का निर्णय मानना तेरी नैतिक ज़िम्मेदारी है, ’ दूसरा मन चेतावनी दे रहा था।
खान से यह सब बर्दाश्त नहीं हो रहा था। शरीर पर पड़ी भारी–भरकम शिला को दूर हटाया जाए उस तरह से अपनी पूरी ताकत इकट्ठी करके खान खड़ा हो गया। उसके मुँह से शब्द नहीं फूट रहे थे, दिल भर आया था, गला अवरुद्ध हो गया था। एक–दो मिनट तक वह गर्दन झुकाए खड़ा था।
‘‘दोस्तों! कृपया शान्त हो जाइये! आपकी भावनाओं को मैं समझ रहा हूँ।’’ खान की अपील की ओर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। खान बार–बार शान्त रहने की विनती कर रहा था। दो–चार मिनट बाद हंगामा कुछ कम हुआ। खान अब तक सँभल चुका था।
‘‘ऐसे हंगामे में हम कोई निर्णय नहीं ले सकते। मेरी भावनाएँ आप जैसी ही तीव्र हैं। मगर भावना के वश होकर लिए गए निर्णय अक्सर गलत साबित होते हैं। हमें वास्तविकता को ध्यान में रखना होगा। मैंने आत्मसमर्पण करने का निर्णय क्यों लिया इस पर विचार कीजिए।’’ बीच–बीच में बेचैन सैनिक ज़ोर–ज़ोर से बोल रहे थे, नारे लगा रहे थे। गुरु, दत्त, दास और ‘तलवार’ के उनके सहयोगी उन्हें शान्त करने की कोशिश कर रहे थे।
‘‘हम सरदार पटेल से मिले। उनके सामने पूरी परिस्थिति रखी और कांग्रेस का समर्थन माँगा। यह समर्थन हम आरम्भ से ही माँगते आ रहे हैं; और पटेल विद्रोह के पहले दिन से जो सलाह हमें देते आ रहे हैं, वही उन्होंने कल भी दी, ‘बिना शर्त आत्मसमर्पण करो।’ आज उन्होंने वादा किया कि कांग्रेस नौसैनिकों की समस्याएँ सुलझाने की कोशिश करेगी। इसके लिए सेन्ट्रल असेम्बली में स्थगन प्रस्ताव लाएगी।’’
‘‘इससे क्या होगा ?’’ कोई चीखा। खान ने फिर एक बार शान्त रहने का आह्वान किया और आगे बोला, ‘‘कांग्रेस यह सुनिश्चित करेगी कि सैनिकों को उनके इस काम के लिए सज़ा नहीं दी जाएगी।’’
‘‘हमने कोई गलत काम तो किया नहीं है। हमने जो कुछ भी किया वह आज़ादी के लिए किया, हमें उसका अभिमान है। हमारे इस काम के लिए जो भी दी जाएगी वह सज़ा भुगतने के लिए हम तैयार हैं। इस सज़ा को एक सम्मान पदक के रूप में प्रदर्शित करेंगे।’’ चट्टोपाध्याय शान्त नहीं हुआ था। ‘‘हमें कांग्रेस की सहायता की कोई ज़रूरत नहीं है।’’
खान दो मिनट चुप रहा।
‘‘मुस्लिम लीग के चुन्द्रीगर मुझसे मिले थे। उन्होंने भी संघर्ष वापस लेकर आत्मसमर्पण करने की सलाह दी है, ’’ खान समझाने लगा, ‘‘आज मैं रास्ते पर घूम रहा था तो पता है मैंने क्या देखा ? रास्ते पर जगह–जगह खून के डबरे, उन पर भिनभिनाती मक्खियाँ, वाहनों के अधजले, सुलगते कंकाल। हमें समर्थन देते हुए अब तक करीब दो सौ नागरिकों की जानें गई हैं और ज़ख़्मियों की संख्या लगभग पन्द्रह सौ तक पहुँच गई है।’’ खान अपने कथन का परिणाम देखने के लिए एक मिनट रुका।
सारे प्रतिनिधि शान्त थे। अनेकों को इस वास्तविकता का ज्ञान नहीं था।
‘‘यह सच है कि लोगों का समर्थन हमें प्राप्त है। हम जब रास्तों से गुज़र रहे थे तो लोग भाग–भागकर आ रहे थे, हमसे हाथ मिला रहे थे, हमें शुभकामनाएँ दे रहे थे और कह रहे थे - लड़ते रहो, हम तुम्हारे साथ हैं। एक ने तो हमसे यह कहने के लिए आते–आते ही हँसते–हँसते अपने सीने पर गोली झेली और तड़पते हुए कहा, तुम्हारा संघर्ष जारी रखना। मुम्बई के नागरिक कल हमारा साथ देंगे और आगे भी देते रहेंगे। मगर साथ ही सरकार भी गोलियाँ झाड़ेगी और आज के मुकाबले में कहीं ज़्यादा लोग मौत के मुँह में चले जाएँगे, ज़ख़्मी हो जाएँगे। सरकार सुबह वाले चार बॉम्बर्स भेजकर हमें नेस्तनाबूद कर देगी।
हम यदि तोपों से मार करेंगे तो उनसे केवल हवाई जहाज़ ही नहीं, बल्कि मुम्बई भी नष्ट हो जाएगी। यह सब करने का हमें क्या अधिकार है ? अपना संघर्ष आगे खींचते हुए निरपराध लोगों की जान से खेलने का हमें क्या अधिकार है ? इसीलिए मेरी यह राय है कि हम संघर्ष रोक दें और आत्मसमर्पण कर दें।’’ खान नीचे बैठ गया। अपने आँसू वह रोक नहीं सका।
‘‘ये, ऐसा होना नहीं चाहिए था...’’ सिसकियाँ दबाते हुए खान ने मदन से कहा। मदन ने खान के कन्धे पर हाथ रखकर उसे ज़रा–सा अपने नज़दीक खींचा, मानो वह खान से कहना चाहता हो, ‘‘हमने अपनी ओर से पूरी कोशिश की... हमारा दुर्भाग्य, और क्या!’’
खान को मदन के स्पर्श में दोस्ती की गर्माहट महसूस हुई। उसके मज़बूत हाथ की पकड़ मानो उससे कह रही थी, तू अकेला नहीं है। हम तेरे साथ हैं। खान को ढाढ़स बँधा।