Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

दो माएँ

दो माएँ

4 mins
14.8K


उस दिन पाठशाला में तहलका मच गया था। दूसरे दिन होली थी। कुछ बच्चे दुकान से रंग ख़रीद लाए थे। जिनके पास रंग नहीं था, वे या तो अपने आप को रंग लगने से बचाने की कोशिश कर रहे थे, या पानी से रंगवाले दोस्त को भिगो रहे थे। क्लास शुरू होने ही वाली थी कि आशीष ने मुझपर रंग फेंका। मेरी पूरी शर्ट लाल पीली हो गयी। मुझे बहुत गुस्सा आया। आशीष मेरा बहुत अच्छा दोस्त था। उसकी यह हरकत मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं आई। मैंने उसे गुस्से से देखा, तो मुझे चिढ़ाते हुए वह अपनी जगह पर बैठ गया।

टीचर ने आकर पढाना शुरू कर दिया। आज क्लास में मेरा मन नहीं लग रहा था। मैं आशीष से उस फेंके रंग का बदला लेना चाहता था। जैसे तैसे मैंने वह क्लास ख़तम की। आशीष और मैं पड़ोसी ही थे। हम दोनों साथ ही स्कूल आया जाया करते थे। स्कूल से निकलने के बाद मैं उसके लिए न रुका। उसे लगा शायद मुझे गुस्सा आया है। मैं जब घर पहुँचा तो आशीष माँ से बातें कर रहा था। मैंने हाथ में लाया रंग लगाने के लिए उसकी तरफ दौड़ लगाई कि वह ग़ायब हो गया। अब तो मेरे गुस्से का कोई ठिकाना न रहा। मैंने माँ से कहा,"उसने स्कूल में मेरी पूरी शर्ट खराब कर दी और यहाँ आकर तुमसे बातें कर रहा था, जैसे उसने कुछ किया ही न हो। झूठा कहीं का। मैं उसे छोडूंगा नहीं।" माँ ने मुझे समझाते हुए कहा," देखो राहुल, ये बातें तो होती ही रहती हैं। आखिर वह तुम्हारा दोस्त है। वैसे भी आज होली है। जाने भी दो। " लेकिन मैं कहाँ सुननेवाला था। मैं उसके घर गया। मेरे हाथ में बहुत सारा रंग था। वह शायद कुछ काम कर रहा था। मैं धीरे से उसके पास गया। उसके कंधे पर हाथ रखा। वह पीछे मुड़ ही रहा था कि मैंने हाथों में थमाया पूरा रंग उसके चेहरे पर डाल दिया। वह मुझे धकेलता हुआ घर के अंदर भागा। मुझे समझ में नहीं आ रहा था आखिर हुआ क्या है। मैं उस के पीछे घर के अंदर गया। वहाँ उसकी माँ उसे नहला रही थी। उसके चेहरे पर लगा रंग निकालने की कोशिश कर रही थी। मैंने गौर से देखा तो उसकी आँखों में रंग चला गया था। मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक गई। जाने अनजाने में मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई थी। मैं भी क्या करता। मेरे सर पर बदला लेने का खून जो सवार था। मैं रोने लगा। उसकी माँ का मेरी तरफ ध्यान गया। वह उसका चेहरा साफ़ करते हुए बोली,"अरे बेटा रो मत। ये तो चलता ही रहता है।" उसके बाद उन्होंने डाक्टर को फ़ोन लगाया। तुरंत ही उसे अस्पताल लेकर जाने लगी। मैं उन दोनों के पीछे चलने लगा था चूँकि ग़लती मेरी थी। मेरी ग़लती का मुझे एहसास हो गया था। मुझे वो सब बातें याद आने लगी जो आशीष में अच्छी थी। उसके साथ मैं न जाने कितना घूमा था। हमने मिलकर न जाने कितने पेड़ो से आम, इमली और बेर निकालकर खाए थे। जो भी हो, वह मेरा एक अच्छा दोस्त था। पर हाँ, वो शरारती भी था। आज उसकी शरारत और मेरे गुस्से ने ऐसा कुछ काम कर दिया था कि शायद वह कभी देख ही न पाए। मुझे उसकी बड़ी फ़िक्र होने लगी। मैं मन ही मन अपने आप को कोसते हुए भगवान से उसके ठीक हो जाने के लिए प्रार्थना करता बाहर खड़ा था।

माँ को यह बात पता चली तो वह तुरंत ही अस्पताल पहुँच गई। डाक्टर आशीष को आपरेशन थिएटर ले गए थे। माँ ने आते ही मुझे दो थप्पड़ लगाए। यह बात उसने सही की थी। लेकिन मैं कुछ बोलने लायक बचा कहाँ था? माँ आशीष की माँ से बोली, "इसे मैंने कहा था कि ये अनबन चलती ही है, फिर भी इसने मेरी एक नही सुनी।" कहकर माँ फिर से मेरी तरफ बढ़ने लगी। तब आशीष की माँ ने उसे रोक कर कहा ,"जाने दीजिए, बच्चा है। बेटा आपका हो या मेरा, एक ही तो है। अगर मेरा बेटा आपके बेटे के साथ ऐसा करता, तो मेरा भी यही हाल होता। जाने दीजिए। इनको अभी भले-बुरे की समझ नहीं है। अभी नादान हैं।" माँ ने कहा, "आशीष भी मुझे उतना ही प्यारा है जितना आपको ये। इसीलिए मुझे गुस्सा आ रहा है।" मैं सुनकर दंग रह गया। उसके बाद डाक्टर बाहर आ गए। उन्होंने बताया , "अब आशीष खतरे से बाहर है।" वे चले गए। मैंने भगवान को धन्यवाद दिया। तब मैं सोचने लगा। इतनी सी बात पर मैंने कैसे बर्ताव किया जबकि हमने इतना वक़्त साथ गुजारा है। मुझे उसकी इतनी सी बात का इतना बुरा लगा और ये माएँ हैं जिनको अपने बेटे के बराबर दूसरे बेटे की भी उतनी ही चिंता है। अगर मैं इनकी जगह होता तो..... इतना बड़ा मन मेरे पास नहीं था। मुझे अपने आप पर बहुत शर्म महसूस हुई। "माँ" का बड़प्पन मुझे तब पता चला। साथ ही ख़ुशी और गर्व हुआ कि मेरी एक नहीं दो माएँ हैं।


Rate this content
Log in

More hindi story from Somesh Kulkarni

Similar hindi story from Inspirational