पानी कब आएगा ?
पानी कब आएगा ?
सरकारी दफ़्तर का एक कर्मचारी हूँ और इस सरकारी दफ़्तर का नाम "सरकारी विद्यालय" है ! तो मास्टरी करते हुए मुझे इस विद्यालय में ज़्यादा दिन नहीं बीते थे क्यूंकि मेरा यहाँ तबादला हुए सिर्फ़ ३ महीने ही हुए थे ! विद्यालय ग्रामीण परिसर में था और भारत के एक पश्चिमी राज्य में था जो अपने गर्म मौसम और स्वभाव के लिए मशहूर है तो पानी की यहाँ अच्छी खासी समस्या है ! ख़ैर तो एक दिन मैं बैठा हुआ कॉपियाँ जाँच रहा था कि प्यास से व्याकुल होने पर मैंने अपने चपरासी, ओह ! माफ़ कीजिये, हमारे "पीओन" (उन्हें चपरासी कहलवाना पसंद नहीं है) को बुलवाया,
"अरे रामचरण जी ! भाई ये बोतल खाली पड़ी है ज़रा भर के तो ले आओ, प्यास के मारे गला सूखा जा रहा है और ऊपर से ये जेठ की गर्मी !"
रामशरण जी मेरे सम्मुख उपस्थित हुए और कहने लगे, "सर जी ! पानी नहीं आ रहा है सकूल में, तो पानी नहीं ला पाऊँगा आपके लिए !"
मैं बोला, "अरे अभी तो गर्मियों की छुट्टियाँ है, बच्चे भी नहीं है फिर पानी कैसे ख़त्म हो गया !"
रामशरणः उवाचः, "साहब! अब क्या करें ? एक काम करते हैं प्रिंसिपल साहब के पास चलते हैं !"
मुझे भी रामशरण का सुझाव पसंद आया और हम दोनों चल दिए प्रिंसिपल साहब के कक्ष की ओर ! प्रिंसिपल साहब के कक्ष के द्वार पे खटखटाकर हमने प्राचार्य महोदय से अंदर आने की आज्ञा मांगी और आकर उन्हें सारा किस्सा सुनाया !
"अच्छा ! लगता है कहीं पे पानी के पाइप में लीकेज हो गया है इसलिए पानी बंद कर दिया होगा और इस समय चुनाव का माहौल भी है तो सब अपनी चुनावी ड्यूटियों में मशग़ूल होंगे इसलिए अभी अगर शिकायत भी करते हैं तो कोई कार्यवाही भी नहीं होगी ! फिर भी मैं एक बार अपने जानकारी के द्वारा शिकायत दर्ज़ कर देता हूँ ! और हाँ पानी की समस्या है तो ये पर्ची पर दस्तख़त करके दे देता हूँ, कमला चौक में ये फलां दुकान है, रामशरण को पर्ची लेकर भेज दो और बिल लेकर मुझे दे देना जिसे मैं 'रीऐंबर्स' करवा लूँगा !"
इस तरह से पानी के दो १० लीटर के डिब्बे आते जिसे हमें दिन भर चलना होता था ! चुनाव आये और गए ऊपर से प्रिंसिपल साहब भी १० दिन की छुट्टी पर चले गए थे परन्तु अब भी डिब्बे आना बंद नहीं हुए! यहाँ से मुझे शक होना शुरू हुआ कि जिस डिब्बे को प्राचार्य महोदय अपने दस्तख़त से मंगवाते थे आज वो उनकी गैर-हाज़िरी में भी बेधड़क आये जा रहे हैं ! ख़ैर, शक को अपने मन में दबाते हुए मैं अपने काम में मग्न हो गया !
अगले ही दिन में जलदाय विभाग पहुँचा और कौनसे अधकारी जलापूर्ति सम्बंधित शिकायतों का निवारण करते हैं, ये पता लगा, उनके समक्ष पहुँच गया ! "साहब ! पिछले १६ दिनों से फलां सरकारी विद्यालय में पानी नहीं आ रहा है और आपके यहाँ शिकायत भी दर्ज़ करवाई गयी थी ! माना आप चुनावी ड्यूटियों में व्यस्त थे परन्तु अब तो उस कार्य से आप निवृत्त हो गए हैं तो अब तो इस असुविधा को दूर करिये !"
अधिकारी बोले, "श्रीमान ! ठहरिये ! ठहरिये ! १६ दिन पहले आपने कहा शिकायत दर्ज़ की गयी है, मैं देखकर बताता हूँ क्या 'स्टेटस' है और अगर कुछ नहीं हुआ होगा तो आज ही आपकी समस्या का निवारण होगा !"
करीब १५ मिनट के इंतज़ार के बाद वो अधिकारी आकर एक अचंभित करनेवाली ख़बर लाये,"जनाब ! उस विद्यालय के नाम से तो यहाँ कोई शिकायत ही दर्ज़ नहीं है !" मैं थोड़ा विस्मित हुआ और "परन्तु प्रिंसिपल साहब ने तो...." ये बुदबुदाकर आगे बढ़ गया ! मैं इंतज़ार करने लगा कि उन डिब्बों की अगली खेप कब आएगी और जब खेप आयी तो मेरी और उसे लानेवाले वार्तालाप हुई वो कुछ इस तरह से है:
"भाईसाहब ! नमस्कार !" मैंने कहा।
"सर ! आपको भी नमस्कार !" उसने प्रत्युत्तर दिया।
"भैय्या ! ये पानी आप उसी फलां दुकान से ला रहे हैं न !"
"जी हाँ सर !"
"ये दुकानवाले प्रिंसिपल साहब के कोई रिश्तेदार हैं क्या ?"
"जी हाँ ! साहब उनके छोटे भाई हैं !"
"अच्छा ! भैय्या ! चलो राम ! राम !"
"ठीक है सर ! राम ! राम !"
इस वार्तालाप के तुरंत बाद मैंने उस पाइप की लाइन का निरिक्षण करना शुरू किया तो पता लगा जहाँ से लाइन विद्यालय के लिये काट रही थी वहीं का वाल्व किसी ने बंद कर रखा था और तब सारा माज़रा मुझे समझ में आ गया परन्तु मैंने वाल्व बंद ही रखा ! ख़ैर ! प्रिंसिपल वापिस आये और वापिस से पानी की समस्या के बारे में हमसे पूछा ! हमने भी वही उत्तर दिया जो वो सोच रहे थे ! मैं वापिस लौट रहा था और हैरान था ये सोचकर कि वाल्व खोलने पर वो पानी तो आ जाएगा परन्तु अपनों को ऊपर उठाने हेतू किया गए इस कार्य से प्राचार्य साहब का पानी हमारी आँखों से उतर गया था ! प्राचार्य महोदय को छुट्टी से लौटे आज ३ साल हो चुके हैं और आज भी वाल्व बंद है !