पहली पगार
पहली पगार
८ नवंबर २०१६ की रात थी और आज माधो आज बहुत खुश था। ३५-३७ दिन के काम के बाद उसे पहली पगार मिली थी। वेसे तो १००-१२० रूपए नगद २ समय का चाय - नाश्ता और रात का खाना तय हुआ था पर नगद के नाम पर ठेकेदार रोज कोई बहाना बना के टाल जाता। सब ठीक ही चल रहा था, नाश्ता-चाय खाना मिल ही जाता था और कभी कभी ठेकेदार ५०-१०० रूपए टिका के बाकी का हफ्ते बाद एक साथ ले लेना बोल कर निकल जाता। माधो भागलपुर के पास के सिकंद टोला से मजदूरी करने जबलपुर आया था, यहाँ उसके चाचा के २ छोरे पहले से मजदूरी कर रहे थे। भाईयों का साथ था तो वेसे तो उसे दिक्कत होती नहीं थी, अगर जरुरत हो दिनेश और मुकेश भी उसको कुछ पैसे तो उधार दे देते थे। तीनो साथ ही रहते थे पर काम अलग-अलग जगहों पर रहता था, ठेकेदार के पास ४-५ ठेके थे। कारीगरों और मजदूरों की जरुरत के हिसाब से उनको बदली या रेगुलर शिफ्ट के हिसाब से लगाया जाता था।
माधो की मुकेश से कुछ ख़ास जमती थी क्योंकि अपने बड़े भाई की रात पारी होने पर वह कई बार माधो को पास के देसी ठेके पर ले जाता था और दिलदारी से यह बोल कर पीला था कि "भाईजी, जब पहली पगार मिले तो अंग्रेजी पिलाना !" अभी कल रात को ही जोश मैं आ कर अपने माधो ने मुकेश को बोल दिया कि "बड़े, कल ठेकेदार से पूरी पगार वसूलूंगा। अगर उसने नहीं दी तो साले को मैदान के खम्बे पर उल्टा लटका दूंगा !" सुबह की पारी में ठेकेदार कम ही आता था और माधो की दोपहर की पाली थी, इसलिए उसे पता था की ठेकेदार से बात हो ही जायगी पर, शाम तक उसे ठेकेदार के दर्शन ही नहीं हुए। रात को ८-९ बजे माधो उदास मन से अपनी पाली ख़तम कर के वापस जा रहा था कि अचानक ठेकेदार ने आवाज दी " माधो.." माधो ने देखा ठेकेदार के साथ उसका सेठ भी कल्लन कि दुकान पर खड़े है, वेसे तो सेठ कभी बिरले ही शाम को आता था और तुरंत चले जाता था पर आज बहुत इत्मीनान से चाय कि चुस्की मार रहा था और २-३ अन्य ठेकेदारो से बात कर रहा था। वह हिचकता हुआ सा ठेकेदार के पास जाने लगा उसके दिमाग मैं रह-रह कर यह बात उठ रही थी कि कही कल रात का किस्सा कही ठेकेदार को पता तो नहीं चल गया। वह ठेकेदार के पास पंहुचा ठेकेदार ने उसे कहा " सेठ से भी बात हुई है कि तेरा काम अच्छा है, तू अभी अपनी पुरानी पगार रख साथ मैं अगले ३ महीने का भी ले और यहाँ साइन कर दे तुझे १ हफ्ते बाद मजूरी से हटा के तेरे भाइयो के साथ कारीगरों मैं डाल देंगे।" माधो को अपनी किस्मत पर भरोसा ना हुआ। उसे लगा आज उसे अपनी मेहनत का फल मिल गया है। उसने दिल से ठेकेदार को शुक्रिया बोला और ख़ुशी ख़ुशी अपनी धर की तरफ लौटने लगा। उसके दिमाग मैं सिर्फ यह चल रहा था कि आज मुकेश भाई को अंग्रेजी पिलाऊंगा, अंग्रेजी कि दुकान खुली होगी ,वहाँ से ले लू या उससे अच्छा है की ठेके पर जा कर ही कार्यक्रम किया जाए। आज दिनेश भाई की रातपाली है तो कार्यक्रम घर पर भी हो सकता है और ठेके पर भी। इसी सोच विचार मैं वह अपनी खोली पर पहुंच गया। वेसे तो मुकेश का काम ९ तक ख़तम होता था और वह १०:३० तक आ जाता था ,पर आज ना जाने क्यों उसका इंतजार करना भारी पड़ रहा था।
अचानक मुकेश के खतरी साइकल के भोपू घंटी की आवाज आई। मुकेश ने उसकी साईकिल मैं घंटी के बदले ऑटो का भोपू लगाया था। इसलिए वह अलग से समझ आता था। माधो तुरंत बाहर भागा और मुकेश को पकड़ लिया "भाई चलो, आज तुम्हे अंग्रेजी पिलाते है। " मुकेश ने उसे देखा और कहा " तेरे को भी आज पगार मिली क्या ? " माधो ने ख़ुशी से लगभग चिल्ला के कहा "हाँ, मुकेश " मुकेश ने कहा "अगर १०००-५०० के नोट है तो कलाली या अंग्रेजी की दुकान मैं नहीं चलेंगे " माधो ने अपने जेब से वह कागज के टुकड़े निकाले और उन्हें पागलो की तरह घूरने लगा !