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Asif Khan Dehlvi

Drama

2.5  

Asif Khan Dehlvi

Drama

दरबार -ए- सुल्तान इल्तुतमिश….!!!

दरबार -ए- सुल्तान इल्तुतमिश….!!!

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दीवान-ए-आम का काम चल ही रहा था कि गज़नी दरवाज़े से घंटियाँ बजने की तेज़ आवाज़ें आने लगी । सुल्तान इल्तुतमिश घंटियों की आवाज़ सुनते ही बोले, “वज़ीर-ए-आज़म जुनेदी, शायद कोई फ़रियादी इंसाफ़ मांगने आया है । उसे फ़ौरन पेश किया जाए ।” वज़ीर-ए-आज़म ने ताली बजाई, एक ग़ुलाम हाज़िर हो गया । जुनेदी उससे बोले, “फ़रियादी को फ़ौरन हाज़िर किया जाए..”
ग़ुलाम अदब के साथ झुककर गज़नी दरवाज़े की तरफ़ चला गया ।

सुल्तान अभी सल्तनत के बारे में तज़किरा कर ही रहे थे कि एक बुढ़िया रोती हुई दीवान-ए-आम में हाज़िर हुई ।

सुल्तान बोले, “बेख़ौफ़ होकर अपनी परेशानी बयान करो ।”

बुढ़िया अपनी फटी हुई धोती से आंसू पोंछते हुए बोली, “मदद सुल्तान, मदद! मेरी जवान बेटी को शहज़ादे रुक्नुद्दीन फ़िरोज़ के आदमी सरे-बाज़ार से उठा ले गए जब वो बाज़ार से सामान लेने गयी थी ।” बुढ़िया के हलक़ से एक एक अलफ़ाज़ बा-मुश्किल निकल रहा था ।

शहज़ादे का नाम सुनते ही पूरे दीवान-ए-आम में, जैसे सबको साँप सूंघ गया.. वैसे सुल्तान के कानों ने शहज़ादे की कई हरकतें सुन रखी थी I पर ये बेज़ा हरक़त एक नाबालिग शहज़ादा ही बेहूदा हरक़त कर सकता है; सुनकर सुल्तान आग-बबूला हो गये । सुल्तान की आँखों में जैसे खून उतर आया था.. दरबार में बैठे सभी दरबारी सुल्तान के गुस्से से वाकिफ़ थे.. सुल्तान ने गुस्से में कहा -
“वज़ीर-ए-आज़म जुनैदी”
“हुक़्म आलमपनाह..”
“शहज़ादे को फ़ौरन गिरफ़्तार करके हमारे सामने दीवान-ए-ख़ास में पेश किया जाए और अगर कोई सामने आये तो उसे मौत की नींद सुला दिया जाये, चाहे हमारा शहज़ादा किसी भी तरह की रुकावट डाले ।”
सुल्तान बात बोल भी ना पाये थे कि दीवान-ए-आम में बैठे सभी हाज़रीन ‘रहम रहम रहम आलमपनाह’ चिल्ला उठे और परदे के पीछे बैठी शहज़ादे की अम्मा मल्लिका जहांशाह-ए-तुरक़ान काँप उठी ।

सुल्तान एकदम से तख़्त से उठे और अपनी ख़्वाबगाह की तरफ़ चल पड़े और ख़िदमतगार ख्वाजसराह बंदियाँ उनके पीछे-पीछे चल पड़े ।
दीवान-ए-आम में मौजूद तमाम मुल्ला, मौलवी, उलेमा, शेख़ हाज़रीन आपस में काना-फूसी करते रह गए ।

कुछ ही देर में ये ख़बर तीर की तरह पूरे ‘किला-ए-राय पिथौरा’ में फैल गयी । क़िले के ख़्वाजसराह, खिदमतगार, बंदियाँ, लौँडियां, इस मामले को लेकर आपस में बात कर रहे थे कि आज शहज़ादे की ख़ैर नहीं । उधर ये ख़बर क़ुतुब-बेग़म, जो मरहूम सुल्तान क़ुतुबुद्दीन ऐबक की शहज़ादी थीं, तक पहुंची I ख़बर सुनते ही परेशान हो उठीं कि शहज़ादा , सुल्तान के जलाल से कैसे बचेगा ? साथ ही उन्हें बुढ़िया की बेटी की भी फ़िक्र थी कि उस बेचारी पर क्या बीत रही होगी !

इधर सुल्तान अपनी ख़्वाबगाह में गए ही थे कि पीछे-पीछे बेग़म जहांशाह-ए-तुरक़ान बिना कुछ बोले ख़ामोशी से अंदर आ गयीं । सुल्तान अपने तख़्त पर गाव तकिये के सहारे बैठ गये.. उनके माथे पर शिकन साफ़ दिख रही थी.. काफ़ी देर की ख़ामोशी के बाद सुल्तान ने अपनी चुप्पी तोड़ी ।
“बेग़म अपने लाडले की करतूत सुनी?” सुल्तान की आवाज़ में गुस्सा साफ़ झलक रहा था।
“हुज़ूर, शहज़ादा अभी नादान है..कमसिन है.. नासमझी में ऐसी ग़लती कर बैठा है। बांदी की गुज़ारिश है सल्तनत के वली-ए-अहद से ज़्यादा सख़्ती से ना पेश आवें ।”
“बेग़म, आपका शहज़ादा कमसिन और नादान नहीं रहा, क्यूंकि कमसिन लोग ऐसी गुस्ताख़ हरकतों को अंजाम नहीं दिया करते । बेग़म, अब आपका लख़्ते-जिगर , जैसे-जैसे बड़ा हो रहा है उसकी बेज़ा हरकतें, उसकी अय्याशियाँ बढ़ती जा रही हैं I और आज तो हमें सरे-आम दीवान-ए-आम में उसकी बदौलत कड़वा घूँट पीकर शर्मिंदा होना पड़ा.. अगर वली-ए-अहद ऐसी हरकत को अंजाम देगा तो रय्यात शहज़ादे को दिल से कभी अपना निगेहबां नहीं मानेंगी । मा-बदौलत को कुछ फ़ैसले अब लेने ही होंगे ।”
“मेरे सरताज , आप तो जानते हैं शहज़ादों के ऐसे शौक़ तो हमेशा से रहे हैं…आप….!”
“बेग़म, आप ख़ामोश रहें .. आप समझ नहीं रही हैं.. सर-ज़मीं-ए-हिन्द ने हमें बा-मुश्किल अपनाया है । अब हमें कुछ ऐसे कड़े फ़ैसले लेने होंगे जिससे हमारी नस्लें यहां सदियों तक कायम रहे । बेग़म, अगर बुढ़िया की बेटी आपके लाडले के पास से बरामद हुई तो मा-बदौलत उसे सख़्त सज़ा से नवाजेंगे और आपकी एक ना सुनेंगे ।”
“रहम मेरे आका, रहम ।”
जहांशाह-ए-तुरक़ान अपना सर सुल्तान के पैरों पर रख कर रोने लगी । सुल्तान अपनी सभी बेग़ुमातो में से सबसे ज़्यादा इश्क़ जहांशाह तुरक़ान से करते थे । अपनी बेग़म को यूँ रोते देख सुल्तान ने उनके चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर लिया और ऊपर उठाया । बेग़म की झुकी हुई आँखों से अभी भी आंसूओं का सैलाब निकल रहा था और शाह तुरक़ान के गोरे गाल कश्मीर के लाल सेब में तब्दील हो गए थे । सुल्तान ने उनके चेहरे का बोसा लिया और बेग़म को अपनी बाँहों में जकड़ लिया, “बेग़म हम समझते हैं आपके दिल पर क्या गुज़र रही है पर इस बात की कसूरवार आप ही हैं.. आपके ही लाड़-प्यार ने शहज़ादे को बिगाड़ा है.. आप हमेशा उनकी हरकतों पर परदा ढंकते आई हैं I और आज की हरक़त कोई मामूली हरक़त नहीं है.. सबकी निग़ाहें तख़्त की तरफ हैं.. हम एक बाप के साथ-साथ रय्यात के रहनुमा भी हैं.. आज अगर कोई सख़्त कदम ना उठाया गया तो हिंदुस्तान के सुल्तान की क्या इज़्ज़त रह जायेगी !”
परदे के पीछे से एक बांदी ने अदब के साथ झुककर कहा, “मुआफ़ हो हुज़ूर, क़ुव्वत उल मुल्क , दीवान-ए-ख़ास में आपसे मिलने की इजाज़त चाहते हैं।”
“..उनको इंतज़ार करने को कहो..”
“जी हुज़ूर..”

कुछ ही देर में सुल्तान दीवान-ए-ख़ास में हाज़िर हुए.. वहाँ क़ुव्वत उल मुल्क मलिक याकूत के अलावा, वज़ीर-ए-आज़म जुनेदी, परदे के पीछे क़ुतुब बेग़म और शाह तुरक़ान बेग़म मौजूद थीं । जमालुद्दीन याक़ूत ने सुल्तान के सामने कॉर्निश बजाई और अदब के साथ झुक गए ।
“शहज़ादा कहाँ है..?”
“जी…जी…मालिक..” याक़ूत की ज़बान लड़खड़ाने लगी ।
“बेझिझक बयान करो..”
“आका, शहज़ादे के साथ एक लड़की बरामद हुयी है..”
“शहज़ादे को हमारे सामने पेश किया जाए..”
शहज़ादा, जो दीवान-ए-ख़ास के बाहर इंतज़ार कर रहा था, अपने अब्बा हुज़ूर का हुक़्म सुनते ही कंपकंपाते हुए दीवान-ए-ख़ास में हाज़िर हुआ । शहज़ादे ने सुल्तान को अदब तो बजाया पर शर्म के मारे नज़रें नहीं मिला पा रहा था ।
“वज़ीर-ए-आज़म जुनेदी, फ़ौरन उस लड़की और उसकी माँ को यहाँ हाज़िर किया जाए..”
एक बांदी दोनों माँ-बेटी को दीवान-ए-आम में ले आयी.. लड़की बेहद डरी और सहमी हुई थी.. उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे ।
सुल्तान शहज़ादे को बिना कुछ कहे लड़की की तरफ़ मुख़ातिब होकर बोले, “बेटी, मा-बदौलत बेहद शर्मिंदा हैं..आप बेहिचक बयाँ करो, क्या शहज़ादे के नापाक हाथों ने आपके पाक जिस्म को छुआ तो नहीं !”
लड़की शर्म के मारे कुछ बोल ना सकी । परदे के पीछे बैठी शाह तुरक़ान बेग़म प्यार से बोलीं, “बेटी, सुल्तान कुछ पूछ रहे हैं.. बयाँ करो.. डरो मत..”
लड़की ने दबी ज़बान से कहा, “सुल्तान का इक़बाल बुलन्द हो । आज ख़ुदा ने फ़रिश्ते के रूप में जनाब क़ुव्वत उल मुल्क को मेरी आबरू बचाने भेज दिया..वरना आज…” कहते-कहते लड़की फिर रोने लगी ।
सुल्तान दाँत पीस कर रह गए..फिर कुछ देर सोच कर बोले, “शहज़ादे रुक्नुद्दीन, आप फ़ौरन लश्कर के साथ तराई के मैदान की ओर कूच करें.. आपकी परवरिश इन महलों में नहीं , बल्कि जंग-ए-मैदान में होगी । और जमालुद्दीन याक़ूत, आप पता लगाएं इस बेज़ा हरक़त में शहज़ादे के कौन कौन लोग शामिल हैं? जिन भी लोगों का हाथ हो, उन्हें फ़ौरन उनके अहदों से बर्खास्त कर दिया जाए और दिल्ली से दूर भेज दिया जाए।”
सुल्तान फिर बोले, “बेटी, मा-बदौलत हम शहज़ादे की बेज़ा हरक़त से बेहद शर्मिंदा हैं । अगर आपके बदन को शहज़ादे के नापाक हाथों ने ज़रा भी छुआ है तो बेहिचक बयाँ करो.. मा-बदौलत आपका निकाह शहज़ादे से करा देंगे..”

परदे के पीछे बैठीं शाह तुरक़ान को सुल्तान से ये उम्मीद नहीं थी I उन्हें दर था कि सुल्तान बिना सोचे-समझे इस बुढ़िया की बेटी का निकाह वली-ए-अहद से ना करा दें. .मगर मौके की नज़ाकत को देख, वो खून का घूँट पीकर रह गयीं ।
सुल्तान की ज़बान से ये अल्फ़ाज़ सुनकर बुढ़िया के दिल को थोड़ी तसल्ली मिली । उसने ऐसा ख़्वाब में भी ना सोचा था.. पर उसकी बेटी अभी भी ख़ामोशी के साथ नज़रें झुकाये खड़ी थी । सुल्तान के दुबारा पूछने पर उसके रुंधे हुए गले से आवाज़ निकली, “सुल्तान का इक़बाल बुलंद हो । हज़रत अगर मेरा निकाह शहज़ादे के साथ करा भी दें , तब भी शहज़ादे की करतूतों में कमी ना आवेगी.. आपसे गुज़ारिश है हमें रुख़सत कर दिया जाए ।”
परदे के पीछे बैठी शाह तुरक़ान की ज़बान से निकला “हमें तुमपर नाज़ है, बेटी । हम शहज़ादे की करतूतों से शर्मिंदा हैं” – ये कहते हुए शाह तुरक़ान ने बस्र की मोतियों की माला तोहफ़े के तौर पर बांदी के हाथ बुढ़िया की बेटी को दिलवा दी ।

सुल्तान ने वज़ीर-ए-आज़म जुनेदी को हुक़्म किया कि “फ़ौरन शहज़ादे को तराई के मैदान में कूच कराया जाए। शहज़ादे की परवरिश अब ऐश-ओ-आराम से दूर जंग-ए-मैदान में होगी।”

सुल्तान ने मलिक याक़ूत की तरफ़ निग़ाह करके हुक़्म फरमाया, “जमालुद्दीन याक़ूत, आप इस शरीफ़जादी और इसकी माँ को बाइज़्ज़त इनके घर पहुंचाए I इनके वास्ते शहर में इक हवेली का इंतज़ाम किया जाए I मा-बदौलत की तरफ़ से पांच हज़ार चांदी के टांके इन्हें इनायत किया जाए I शहर-ए-कोतवाल को हुक़्म है कि जब इस शरीफ़जादी का ब्याह हो, उस वक़्त ख़ुद शादी में शरीक हो..शादी का माकूल इन्तेज़ामात कराए I शादी के लिए पाँच हज़ार टंका सूबा-ए-दिल्ली की तरफ़ से देने का हुक़्म मा-बदौलत फ़रमाते हैं…”I

बुढ़िया और उसकी बेटी का सर सुल्तान-ए-अली के सामने अदब से झुक गया.. बेग़म शाह तुरक़ान की आँखें अब भी शहज़ादे की बेज़ा हरक़त से झुकी हुईं थीं…।

 


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