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satish bhardwaj

Abstract Inspirational

3.3  

satish bhardwaj

Abstract Inspirational

खारा पानी

खारा पानी

3 mins
730


बुंदेलखंड में हरेन्द्र पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ घूम रहा था। दिल्ली में व्यवसाय अच्छा था, हाल ही में राजनीति में पदार्पण हुआ था। सपना कोई चुनाव जीतकर विधान भवन में जाने का था। अपने सामाजिक सरोकार अच्छे होने के कारण पार्टी में अच्छा पद भी मिल गया था। गर्मी काफी थी, गाड़ी का ऐ सी पूरी ताक़त से गाड़ी को ठंडा कर रहा था। गाड़ी एक छोटे से गावं में रुकी। कुछ झोपड़ियाँ थी, शायद दलित वर्ग की थी। पार्टियों के झंडे तो यहाँ पहुँच गए थे लेकिन विकास नहीं।

हरेन्द्र एक छप्पर के नीचे खाट पर बैठ गया। कार्यकर्ता भी वहीं खड़े हो गए। गावं के कुछ बुजुर्ग और युवक वहां एकत्र हो गए।

हरेन्द्र के साथ एक पुराने नेता थे। जानते थे कैसे पब्लिक को मोहित किया जाता हैं। बैठते ही बोले “पानी मिलेगा क्या ?”

एक व्यक्ति ने जोर से एक महिला से कहा “पानी लाओ री।”

हरेन्द्र को कुछ अजीब लगा, सोच रहा था की पानी साफ़ भी होगा या नहीं।

नेता जी: और कैसा चल रहा है सब

ग्रामीण: चल का रओ, बस उई खानो कमानो। और काये लाने आये नेता जी इतै।

नेताजी: जनता के बीच आने को भी कोई बहाना चाहिए। हमारी पार्टी बुदेलखंड का विकास चाहती है। बस आप लोगो का आशीर्वाद मिले तो।

ग्रामीण: हमाओ से का लोगे नेताजी। हम का देई।

नेताजी: वोट! तुम्हारा वोट ही तो हमारी ताक़त हैं।

फिर कुछ देर और बातों का दौर चला।

इतने में नेता जी को याद आया और बोले “क्या भैया, पानी भूल गए ?”

बातों में ही पौन घंटा बीत गया था। पानी के लिए गिलास तो आ गए थे पर पानी नहीं।

ग्रामीण: आयरो नेता जी पानी लेने के लाने उत गयी मुर्हाओं।

तभी एक बुढिया बोली “आऊत तन देर मई नेता जी, लिंगा भौते दूर रऐ, टेम लगै।”

तभी हरेन्द्र ने देखा एक औरत अपने सर पर पानी का घड़ा लिए आ रही है पसीने से लथपथ। उसने आते ही सबको पानी दिया।

हरेन्द्र को कुछ बेचैनी हो रही थी। उसने ग्रामीण से पूछा “कितनी दूर से लाये हो पानी ? क्या घर में बिलकुल भी नहीं था।”

ग्रामीण: हैओ पानी तो नेताजी, पर मोए लगा ताज़ा पी लेओ। उ कोई एक कोष जाना परै पानी के लाने।

हरेन्द्र पानी पीते पीते ही उस जगह से उठकर थोडा अलग चला गया क्यूंकि अब वो अपनी आँखों के बहाव को रोक नहीं पाया था।

वहां से चलने पर हरेन्द्र बोल पड़ा “मुझे वापस जाना है।”

नेताजी ने अचकचा कर “क्यूँ ?”

हरेन्द्र: तैयारी करनी है।

नेता जी: तैयारी ही तो चल रही है। एक महीने बाद टिकट चयन होगा। भाई तब तक पार्टी जहाँ बोल रही है वहाँ घुमो। पार्टी को जरुरत हैं बड़े जनाधार की।

हरेन्द्र: तैयारी टिकट की नहीं करनी है नेता जी। चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं है अभी।

ये सुनकर नेताजी सकपका गए

हरेन्द्र विस्मृत सा बोल रहा था “इन लोगो के वापस पास आना है। उन सब के पास भी जाना है जिन्हें मेरी जरुरत है।”

नेताजी मुस्कुराते हुए बोले “भैया विधायक छोड़ नेता बनने का ख्वाब देख रहे हो।”

हरेन्द्र: पता नहीं नेताजी, बहुत ही खारा था ये पानी। बहुत सारा नमक अन्दर चला गया। उसका ऋण उतारने को शायद सारी उम्र भी कम पड़ जाए।


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