छोटा आदमी
छोटा आदमी
रामेश्वर पांडे जल्दी से घर में घुसे और दरवाज़ा धाड़ से बंद कर लिया। जैसे उन्हें चिंता थी कि बाहर खड़ा रिक्शे वाला जिसे वो दस का फटा हुआ नोट चुपके से थमा आये थे उनकी चोरी पकड़कर, नोट वापस करने के लिए अन्दर न आ जाए। पत्नी शारदा ने कहा ‘“ये आपने ठीक नहीं किया बेचारा ग़रीब आदमी है। कुल मिलाकर सत्ताइस रुपये तो हुए थे उसके, उसमें से भी दस रुपये फटे हुए निकलेंगे तो उसका बहुत नुक्सान हो जायेगा। जाइए उसे अच्छा वाला नोट दे दीजिये।” रामेश्वर ने झिड़क दिया,“चुप रहो तुम, मैंने भी कौन सा घर में उगाया था वो दस का नोट? मुझे भी किसी ने ऐसे ही चिपका दिया था।” शारदा ने कहा, “लेकिन हमारे लिए दस रुपये मायने नहीं रखते पर उसके लिए बहुत हैं। पूरे दिन में मुश्किल से सौ डेढ़ सौ कमाता होगा, वो बेचारा छोटा आदमी है।” बिगड़ उठे पांडे जी, “बस बस इतनी सहानुभूति मत दिखाओ इन छोटे लोगों पर, पच्चीस रुपये लगते थे पहले कठौता चौक से घर के, इन रिक्शे वालों का दिमाग़ चढ़ गया है, सत्ताइस लेना शुरू कर दिया है। कोई कोई तो तीस के लिए भी मुंह फाड़ देता है. बेईमान है सब के सब। तुम जानती नहीं हो इन छोटे लोगों को, पैसे के लिए ये कुछ भी कर सकते हैं। आजकल जो इतनी लूटपाट बढ़ गयी न वो सब तुम्हारे ये बिचारे छोटे लोग ही कर रहे हैं।” तभी डोर बेल बजी तो पांडे जी सकपका गए उन्होंने मन बना लिया कि अगर रिक्शे वाला हुआ तो साफ़ मुकर जायेंगे कि वो नोट उनका है और उसे ज़ोर की डांट भी पिलायेंगे। दरवाज़ा खोला तो देखा पसीने से तर-ब-तर रिक्शे वाला ही खड़ा था। बड़े ही तल्ख अंदाज़ में पांडे जी ने बोला,“क्या है?” रिक्शे वाले ने हाथ में लिया बटुआ आगे बढ़ा दिया,“साहब माता जी का बटुआ रिक्शे में छूट गया था।” बटुआ पांडे जी के हाथ में रखकर वो पलट गया। फिर दो क़दम चलकर रुका और बोला,“साहब चेक कर लीजिये दस हज़ार रुपये और माता जी के सोने के कुंडल सही सलामत उसमें रखे हैं।” हाथ में बटुआ लिए पांडे जी स्तब्ध से खड़े थे। रिक्शे वाला जा चुका था हवा के ज़ोर से किवाड़ बार बार चरड़ चरड़ की आवाज़ के साथ खुल रहा था और बंद हो रहा था। शारदा तय नहीं कर पा रही थी किवाड़ रिक्शे वाले के बड़कपन पर ताली बजा रहा था या पांडे के छोटेपन की हंसी उड़ा रहा था ...।