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Anjaan Mitra

Inspirational

5.0  

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ऑस्कर गर्ल पिंकी की नहीं बदली तकदीर: चरा रही है बकरी

ऑस्कर गर्ल पिंकी की नहीं बदली तकदीर: चरा रही है बकरी

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पाँच माह पहले लघु वृत्त चित्र ''स्माईल पिंकी'' को सर्वश्रेष्ठ डाक्यूमेन्ट्री फिल्म का ऑस्कर अवार्ड मिला था। ''स्माईल पिंकी'' को मिले ऑस्कर पुरस्कार के कारण इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाली 8 वर्षीय पिंकी भी रातों रात पूरे देश में सलेब्रिटी बन सुखिर्याें में आ गयी थीं। मीरज़ापुर जिले के अहरौरा थाना क्षेत्र अन्तर्गत रामपुर पिंकी अपने पिता और डॉ. सुबोध के साथ अमेरिका से दिल्ली, वाराणसी होते हुए 28 फरवरी के रात अपने घर पहुँची थी। रातों रात सुपर स्टार बनी पिंकी के घर वापसी के दौरान उसके स्वागत के लिए पूरा गाँव उमड़ पड़ा था, जगह-जगह आकर्षण तोरण द्वारा बनाये गये और कुछ स्थानों पर पिंकी का अभिनन्दन भी किया गया। पिंकी ने न सिर्फ अपने गाँव और जिले का नाम विश्व पटल पर पहुँचाया था, बल्कि ऑस्कर गर्ल बन प्रदेश और देश के गौरव में भी चार चाँद लगाये थे। घर वापसी के बाद पिंकी के सम्मान में जिले की विभिन्न सामाजिक संस्थाऐं, संगठन, राजनैतिक दल व राजनेता, विद्यालयों के प्राचार्य और कई दूसरे प्रतिष्ठान ने पिंकी को सम्मानित करने की होड़ सी लग गयी थी। एक दिन में दो-दो तीन तीन सम्मान समारोह का आयोजन किया जाता जहाँ पिंकी को फूल-मालाओं से लाद दिया जाता, उसे प्रस प्रशस्ति-पत्र और पाँच भाई बहनों में दूसरे क्रम की पिंकी पिता राजेन्द्र सोनकर और मां शिमला देवी की माली हालत खस्ताहाल थी। मेहनत मज़दूरी पेट पालने का मुख्य ज़रिया था। रहने के लिए दो कमरों का कच्चा खपरैलनुमा मकान था। ऐसे में बच्चों की अच्छी परवरिश और पढ़ाई लिखाई के बारे में सोचा ही नहीं जा सकता। फिर भी पिंकी की बड़ी बहन 11 वर्षीय रेखा गांव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ने जाया करती थी। परन्तु 5 साल की पिंकी का दाखिला स्कूल में नहीं हुआ था। इसके कई कारणों में एक बड़ा कारण था- पिंकी की जन्मजात शारीरिक विकृति दरअसल पिंकी के होंठ जन्म से कटे थे, इस कारण न तो वह वह ठीक से बोल पाती और न ही मुस्कुरा पाती, खाने में भी दिक्कत आती। गाँव के हम उम्र बच्चे होंठ कटिया कहकर चिढ़ाते, इसी हीन भावना से पिंकी का मन स्कूल जाने के लिए नहीं करता।

पिता राजेन्द्र की आमदनी इतनी नहीं थी कि बेटी के इस विकृति का इलाज करा पाता। पर कहते हैं न ऊपर वाला जब किसी को कुछ देना चाहता है तो रास्ता और माध्यम भी वही देता है। पिंकी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, एक दिन उसके गांव आये एक समाजसेवी डॉ. पंकज की नज़र उस पर पड़ी और उन्होंने उसके पिता राजेन्द्र को वाराणसी निवासी डॉ. सुबोध कुमार सिंह से सम्पर्क करने की सलाह दे दी। वाराणसी के महमूरगंज इलाके में स्थित जी.एस. मैमोरियल प्लास्टिक संर्जरी हॉस्पिटल एण्ड ट्रामा सेन्टर के संचालक डॉ. सुबोध सर्जरी के मास्टर है और ‘‘स्माइल ट्रेन‘‘ संस्था से जुड़े है जो देश-विदेश के उन लाखों बच्चे जिनके होंठ, तालू जन्म से कटे या जुड़े या अन्य विकृति लिये होते हैं उनकी सर्जरी करा उनके चेहरे पर मुस्कान लाती है। डॉ. सुबोध ने 19 मार्च 2007 को पिंकी का आपरेशन कर चेहरे पर मुस्कान लाये थे। 

यह भी एक देवीय संयोग ही कहा जायेगा जिस दौरान पिंकी डॉ. सुबोध के सम्पर्क में थी उसी समय एक विदेशी महिला मेगन मायलान कटे हुए ओठ तालू वाले बच्चों पर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाने के लिए भारत आयी थी और डॉ. सुबोध के सम्पर्क में थी। मेगन मायलान ने पिंकी को देखा और उसी को केन्द्रित करते हुए अपनी डाक्यूमेंट्री का फिल्मांकन कर डाला। ‘‘स्माइल पिंकी‘‘ में होंठ कटे पिंकी के आपरेशन से पूर्व हीन भावना में जी रही पिंकी ऑपरेशन के बाद खिलखिलाकर हंसने लगी। जिसे बाद में ऑस्कर पुरस्कार मिलता है।

पिंकी के पिता राजेन्द्र सोनकर के विश्वास का पिंकी के कारण न सिर्फ उसका बल्कि उसके पूरे परिवार की तकदीर और घर की तस्वीर बदल जायेगी। लेकिन जो सोचा था वैसा कुछ भी नहीं हुआ। महामाया योजना के अन्तर्गत एक आवास मिला लेकिन वह भी अभी रहने लायक नहीं है। छत और ज़मीन का फर्श पूरा कम्पलीट नहीं है। इस बरसात में पूरा छत से पानी टपकता है पिंकी को सम्मानित करते समय कई लोगों ने वादा किया था कि पिंकी की पढ़ाई का पूरा खर्च स्वयं उठायेंगे। विदित हो अमेरिका से लौटने के बाद उसके पिता राजेन्द्र सोनकर ने ख्वाब देखा था कि वह अपनी बेटी पिंकी को भी डॉ. बनायेंगे, स्वयं पिंकी भी डॉ. बनना चाहती है।

डाक्यूमेंट्री फिल्म स्माइल पिंकी ऑस्कर मिलने से इस फिल्म की नायिका पिंकी को आर्थिक मदद देने वालों की होड़ लग गयी थी। घर वापसी से पूर्व 25 फरवरी को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल टी.वी. राजेश्वर द्वारा पिंकी के नाम प्रेषित प्रशस्तिपत्र सबसे पहले उसकी माँ के पास पहुँचा था। पहली मार्च को इलाहाबाद बैंक अहरौरा शाखा के प्रबंधक बी.डी. विरह ने 5001/- रूपये का गिफ्ट चेक दिया और अपने बैंक में पिंकी का खाता भी खोला। पत्थर व्यवसायी गुलाब दास मौर्य ने भी 2500,00 नकद दिया, इण्डियन जस्टिस पार्टी के लोकसभा प्रत्याशी त्रिलोक सिंह वर्मा ने भी पिंकी को 5000 रूपये नकद दिये। कोलकाता निवासी जाने माने समाजसेवी विजय उपाध्याय भी 7 मार्च 2009 को कोलकाता से आकर पिंकी का सम्मान किया और 25 हजार की नकद धनराशि भी दी। विजय उपाध्याय ने भविष्य में भी पिंकी की हर प्रकार से मदद करने का भरोसा दिया था। भाजपा के लोकसभा प्रत्याशी अनुराग सिंह ने भी पिंकी को 25 हजार का चेक दिया था, वाराणसी के सुभाष सोनकर ने भी 10 हजार की सहायता की थी। वाराणसी के सुरभि शोध संस्थान द्वारा संचालित विद्यालय में कक्षा 11 तक पिंकी की पढ़ाई और रहने की व्यवस्था का आश्वासन देते हुए तमाम उपहारों के साथ 8 मार्च को ही 1100.00 रूपये नकद भी दिये, लखनऊ से भी 11000 रूपये की मदद मिली। पिंकी के पिता की माने तो कुछ ऐसे भी लोग थे जो मुंह से बड़ी-बड़ी बातें और वादे किये लेकिन घर से जाने के बाद सब भूल गये।

राजेन्द्र सोनकर का कहना है आर्थिक मदद के नाम पर जो कुछ भी धनराशि मिली वह सब घर की आवश्यक ज़रूरतों को पूरा करने और मकान के निर्माण में सोख गया। महामाया आवास के अन्तर्गत सरकार द्वारा 38500 रूपये दिये गये बाकी का पैसा हमें अपने पास से लगाना पड़ा तब भी मकान पूरा नहीं हो पाया। आज पिंकी को डॉक्टर बनाने का सपना पूरा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। यह पंक्ति लिखे जाने तक पिंकी का दाखिला किसी भी अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल में नहीं हुआ है। पिंकी शुरू में गाँव के ही प्राइमरी पाठशाला में दूसरी कक्षा तक की पढ़ाई की है। पर अमेरिका से लौटने के बाद उसके पिता ने सोचा था कि पिंकी का दाखिला किसी अच्छे स्कूल में करायेंगे पर वह अभी संभव नहीं हो पाया है। पिंकी घर के काम काज में मां का हाथ बंटाती है, बकरी चरा देती है, मुर्गी को दाना डाल देती है, बर्तन मांज देती है। क्या ऑस्कर गर्ल पिंकी के सुनहरे भविष्य के लिए कोई सामाजिक संस्था, समाज सेवी सामने आयेगा जो उसके पिता की चिन्ता दूर कर पिंकी के भविष्य को उज्जवल बनाने की ज़िम्मेदारी ले सके। पता चला है कि कोलकाता के समाजसेवी विजय उपाध्याय से सम्पर्क साधा जा रहा है जो पूर्व में पिंकी के घर जाकर उसे सम्मानित किया था और भविष्य में सहायता करने का वादा किया था। 


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