अल्पविराम
अल्पविराम
कारगिल
हर जगह अंधेरा ही अंधेरा है, धुँआ ही धुँआ है और बस शोर ही शोर।
गोलियों का शोर, बारुदों का शोर। शोर इतना भयानक है की सब चीख पुकारें दब कर रह गई। अंधेरा इतना गहरा है कि कुछ दिखाई नहीं दे रहा।
मौसम की सर्दी को गोले बारुदों की गर्मी ने ढक लिया।
अचानक से धुआँ कम होने लगा और ये शोर भी बदल गया, शोर था पर उसमें कुछ खुशी थी।
अचानक मौसम की सर्दी वापस आने लगी। जरा गौर से देखा तो सामने की चोटी पर कुछ साथी जश्न मना रहे थे, तिरंगे के साथ।
आह आख़िर हमने फ़तेह हासिल कर ही ली। हमने दुश्मन को वापस खदेड़ ही दिया।
जैसे ही विशाल ने आगे कदम बढ़ाया तो ठोकर खा कर गिर पड़ा, ये क्या ! नीचे लाशो का अंबार लगा था।
नीचे विशाल के साथी निष्प्राण पड़े हैं। आगे बढ़ा तो एक निष्प्राण शरीर पर नज़र ठिठक गई और अचानक से एहसास हुआ की कुछ देर पहले जो सीने मे दर्द था वो बंद हो गया है, जो लहू रिस रहा था वो थम गया है।
थोड़ा पास गया और गौर से देखा तो मानो शरीर जम सा गया, अचानक से धुँआ फिर से गहराने लगा और अंधेरा होने लगा, तेज हवाएँ चलने लगी और लगा वो तेज हवाए उसे वहाँ से उड़ा ले गई रेत की तरह और सब फ़ना हो गया।
देहरादून
सीमा सीमा, कुछ तो बोल सीमा
सीमा देख ये क्या हो गया सीमा !
सीमा एक टक लगा कर विशाल को निहार रही थी। उसके कानों में ना अपने नाम की गुहार थी, ना ही रोने चीखने का शोर।
वो बस सामने तिरंगे मे लिपटे विशाल को एकटक देख रही थी और उसके हाथ मे डॉक्टर की रिपोर्ट थी जो कल ही उसे मिली।
ना जाने सीमा क्या सोच रही थी।
विशाल इस बात से अंजान ही रह गया कि वो पिता बनने वाला है।
या विशाल चला गया फिर वापस आने के लिए।