कशमकश
कशमकश
रवि का निश्छल प्रेम पाकर स्मिता अपने आप को धन्य महसूस करती थी। 10 साल हो गए शादी के किन्तु रवि के प्रेम में कभी कमी नहीं हुई। बल्कि और गहरे होते गया है।
जब भी रवि का सानिध्य होता तो स्मिता का अतीत उसकी आँखों के सामने घूम जाता और एक अपराध बोध सा लगता। उसे लगता कि वो रवि को छलती आयी है, अपने अतीत को न बताकर। आखिर रवि कुछ भी तो नहीं छिपाता।
आज फिर उसे रवि की बाहों में अपना वही अतीत उसे नीचा दिखाने आ धमका। मन ही मन उसे आत्मग्लानी होने लगी।
उसने निश्चय किया कि रवि को मैं और अंधेरे में नहीं रखूंगी। आज सब बता दूंगी।
एक गहरी सांस लेते हुए स्मिता- "रवि ! आज मैं अपना एक बोझ हल्का करना चाहती हूँ।"
"तुम्हारा हर बोझ उठाने के लिए मैं तैयार हूँ जानेमन।" कहा रवि ने और उसकी बांहें अपनी मजबूती दिखाने में सक्षम हो रहा था।
स्मिता अपनी सांसों को काबू में करते हुए- "जब मैं सात साल की थी तो मेरे रिश्ते के चाचा ने मेरे साथ........।"
रवि की पकड़ एकदम से छूट गयी और वो उठकर बैठ गया। स्मिता को सवालिया नजरों से देखने लगा।
स्मिता ने अपने रुंधे हुए गले से आपबीती बता दी। उसे लगा जैसे वर्षों का बोझ उतर गया और वो अब ठीक से सांस ले पा रही है।
रवि ने उसकी सारी बातें सुनने के बाद उठकर पानी पिया। फिर आकर चुपचाप दूसरे करवट लेकर सोते हुए कहा- "सो जाओ अधिक रात हो गई।"
स्मिता ने घड़ी की ओर देखा तो साढ़े दस ही बज रहे थे।
उधर घड़ी की सुई टिक-टिक करके आगे बढ़ रही थी, इधर स्मिता की धड़कन अपराध बोध से उबरकर आगे आने वाले भंवर का अहसास करा रही थी।